विजेंद्र प्रसाद यादव, मिन्नतुल्लाह रहमानी और अनिल कुमार सिंह
भरत कुमार झा, सुपौल। सीमांचल और कोसी की राजनीति में सुपौल विधानसभा सीट का अपना अलग महत्व है। यह सीट न केवल जिले की सियासी दिशा तय करती है, बल्कि यहां से उठने वाली राजनीतिक लहरें प्रदेश की सत्ता तक असर डालती हैं। यह सीट सामाजिक संतुलन, संगठन की मजबूती और जन विश्वास की बुनियाद पर खड़ी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
हर दौर में यहां के मतदाताओं ने ऐसे प्रतिनिधि चुने हैं जिन्होंने सिर्फ विधानसभा नहीं, बल्कि राज्य की राजनीति में भी अपनी छाप छोड़ी। इस बार फिर मैदान में हैं जदयू के वरिष्ठ नेता और मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव, जिनकी राजनीतिक जड़ें गहरी हैं।
उनके सामने हैं कांग्रेस प्रत्याशी मिन्नतुल्लाह रहमानी, जो अपने दलीय गठबंधन के बीच जोश और नई उम्मीद का चेहरा बने हुए हैं। वहीं जनसुराज पार्टी से अनिल कुमार सिंह तीसरा कोण बनाने की पुरजोर कोशिश में हैं।
विजेंद्र प्रसाद यादव अपने संगठन और वर्षों की निष्ठा पर भरोसा कर रहे हैं। उनका दावा है कि काम बोलता है, जनता देख रही है। वहीं, मिन्नतुल्लाह रहमानी गांव-गांव घूमकर मतदाताओं से संवाद साध रहे हैं।
वे कहते हैं सुपौल बदलाव चाहता है, अब बारी नई सोच की है। सुपौल विधानसभा का समीकरण जातीय और सामाजिक संतुलन पर आधारित रहा है। यादव, ब्राह्मण, दलित, मुस्लिम, वैश्य, पिछड़ा अति पिछड़ा और राजपूत यहां निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
स्थानीय अशोक कुमार कहते हैं, यहां का मतदाता अब काफी सजग हो गया है। जाति के साथ काम और साख भी देखता है। वहीं, फजलुर रहमान का कहना है, मिन्नतुल्लाह रहमानी अच्छी पकड़ बना रहे हैं, लेकिन विजेंद्र जी की पहचान कामकाज से भी है।
ग्राउंड पर लोगों के बीच प्रमुख मुद्दे हैं बेरोजगारी, बाढ़ और पलायन। संतोष कुमार कहते हैं कि सड़कें तो बनीं, लेकिन रोजगार नहीं बढ़ा। युवा अब विकास के नए माडल की बात करते हैं। वहीं आशा देवी का कहना है, बाढ़ हर साल आती है, पर इसका स्थाई निदान नहीं हो पाता है। हमें चाहिए जो संकट में साथ दे।
सुपौल शहर से लेकर पंचायतों तक चुनावी माहौल गरमा गया है। चाय की दुकानों पर सुबह से लेकर रात तक बहस जारी रहती है। युवा इंटरनेट मीडिया पर अपने पसंदीदा प्रत्याशी के समर्थन में सक्रिय हैं। ग्रामीण इलाकों में महिलाएं भी खुलकर चर्चा कर रही हैं कि कौन करेगा विकास, कौन सुनेगा हमारी बात।
इस बार मुकाबला अनुभव बनाम नई उम्मीद का है। विजेंद्र प्रसाद यादव का क्षेत्र का निरंतर विकास, संगठनात्मक आधार और अनुभव एक तरफ है, तो मिन्नतुल्लाह रहमानी का जोश और युवाओं का समर्थन दूसरी तरफ। एक बुजुर्ग मतदाता रामजी यादव ने कहा सुपौल का वोटर हमेशा सोच-समझकर फैसला करता है।
नतीजा जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि सुपौल का यह चुनाव प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर नई दिशा दिखाने वाला साबित होगा। सुपौल सीट पर यादव, ब्राह्मण, दलित, मुस्लिम, वैश्य, पिछड़ा अति पिछड़ा और राजपूत मतदाताओं का संतुलित प्रभाव है। यहां एक तरफ विकास का मुद्दा है तो दूसरी तरह बदलाव को भी जोर। मतदाता का रूख किस ओर होता है, यह चुनाव परिणाम ही बताएगा।
सुपौल का राजनीतिक इतिहास
कोसी की प्रमुख सीट सुपौल पर लंबे समय तक कांग्रेस और समाजवादी विचारधारा का प्रभाव रहा, लेकिन 1990 के बाद समीकरण बदल गए। विजेंद्र प्रसाद यादव ने 1990 में पहली जीत के साथ यहां अपनी पकड़ बनाई और तब से यह सीट उनके नाम पर दर्ज रही है। इससे पहले सुपौल में लहटन चौधरी, परमेश्वर कुमर और उमा शंकर सिंह जैसे नेताओं का प्रभाव रहा।
2020 चुनाव के नतीजे
विजेंद्र प्रसाद यादव (जदयू) -86174
मिन्नतुल्लाह रहमानी (कांग्रेस) -58075
जीत का अंतर-28099
मतदाताओं की संख्या
- पुरुष मतदाता-154621
- महिला मतदाता-138459
- अन्य-0
- कुल मतदाता-293080
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