गांव की ‘बकरी’ हुई ग्लोबल, यूरेशिया फिल्म फेस्टिवल में चयनित।
जागरण संवाददाता. रेवाड़ी। हरियाणा की मिट्टी से निकले खिलाड़ी और पहलवान के बाद अब यहां दशकों पुरानी जातिगत परंपराओं पर आधारित एक ऐसी ही फिल्म ‘बकरी’ की चर्चा देश देश-विदेश में हो रही है, गांव की बकरी ग्लोबल हो चुकी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
शार्ट फिल्म ‘बकरी’ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। इस फिल्म का चयन दुनिया के बड़े फिल्म फेस्टिवल्स में शुमार यूरेशिया इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में हुआ है। 16 मिनट की यह फिल्म अहीरवाली भाषा में है।
इतना ही नहीं पूरी फिल्म 1990 के दशक के ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित है। ग्रामीण पृष्ठभूमि को दर्शाने के लिए ही इस फिल्म में किसी बड़े कलाकार की बजाए स्थानीय लोगों को मौका दिया गया और शूटिंग तक स्थानीय स्तर पर हुई है।
दरअसल, ओम कौशिक फिल्म्स के बैनर तले बनी इस फिल्म की कहानी 12 वर्षीय लड़के सोनू के इर्द-गिर्द घूमती है, जो लंबे समय से बीमार है और अपनी बीमारी के चलते उदास रहता है। एक वैद्य उसके पिता को बकरी का दूध पिलाने की सलाह देते हैं।
लेकिन दादी जातिगत परंपराओं के चलते इसका विरोध करती हैं। आखिरकार बच्चे की सेहत बिगड़ने पर दादी अपने पोते को बकरी का दूध पिलाने को तैयार हो जाती है। बकरी का मालिक हर दिन बच्चे को दूध पिलाने के लिए उसके घर पर लेकर आता है।
बच्चा बकरी का दूध पीने के बाद स्वस्थ तो हो जाता है। लेकिन बच्चे को बकरी से इतना प्रेम हो जाता कि वह एक भी दिन उसके बगैर नहीं रह पाता। इधर, बकरी का मालिक उसे कसाई के पास बेच देता है। जैसे ही बच्चे को इसका पता चलता है, तो वह फिर से बीमार पड़ जाता है।
दादी अपनी रूढ़िवादी सोच को बदल अपने पोते के लिए उसी बकरी को कसाई खाने से बचाकर लेकर आती है, यानी पैसे में खरीद कर अपने घर ले आती है। फिल्म अंत में सामाजिक समरस्ता संदेश देती है। फिल्म का निर्माण सुरेश यादव ने किया है।
कहानी बालीवुड में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले हरिओम कौशिक ने लिखी है, जबकि संवाद और पटकथा आरजे भारद्वाज द्वारा लिखे गए हैं। फिल्म में दिविज कौशिक (सोनू), बिमला आर्य (दादी), सुरेश यादव (पिता ) और अन्य कलाकारों ने अभिनय किया है।FPI outflow,foreign portfolio investors,Indian stock markets,September FPI data,NSE data,FPI selling,global uncertainty,US tariffs,debt investments,rupee depreciation
फ़िल्म का निर्देशन कोसली उपमंडल के गांव झाल के रहने वाले रोहित (आरजे भारद्वाज) ने किया है। ‘बकरी’ उनके निर्देशन की डेब्यू फिल्म है। निर्देशन से पहले वे संवाद लेखन से जुड़े रहे हैं और उन्होंने जिला महेंद्रगढ़, बहू काले की, मेवात, ग्रुप डी, मिड नाईट जैसी फ़िल्मों में काम किया है।
साथ ही वे राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म ‘फौजा’ का भी हिस्सा रहे हैं। फ़िल्म की तकनीक सुपवा रोहतक के विधार्थियों की है। सुपवा के विद्यार्थियों को इसलिए फिल्म में शामिल किया गया, क्योंकि ग्रामीण पृष्ठभूमि पर फिट बैठते थे।
यूरेशिया जैसे बड़े फेस्टिवल में चयन होना मेरे गांव, माता-पिता व गुरु हरिओम कौशिक, उनके क्षेत्र और पूरी टीम के लिए सम्मान की बात है।
इस फिल्म का निर्माण 2024 में हुआ था। इस पर करीब 12 लाख रुपये का खर्च आया है। फिल्म की शूटिंग को पहले राजस्थान के कुछ इलाकों में शूट करने की मंशा थी लेकिन उस पर ज्यादा खर्च आता। उपर से फिल्म की ग्रामीण पृष्ठभूमि भी दिखानी थी।
ऐसे में पूरी फिल्म की शूटिंग रेवाड़ी के गांव झाल और महेंद्रगढ़ के गांव घाड़ा में की गई। केंद्र सरकार की तरफ से अभी हाल में वेब करने को लेकर उनसे संपर्क किया गया था।
हालांकि केंद्र सरकार की इस योजना को लेकर उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं है। उनसे फिल्म से जुड़ी कुछ अहम जानकारी मांगी गई थी, जिसे वह बहुत जल्द उन्हें भेज देंगे।
-सुरेश यादव, बकरी फिल्म के निर्माता
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