सिद्धार्थ विहार में सड़क पर उड़ती धूल से हो रहा प्रदूषण। जागरण
राहुल कुमार, गाजियाबाद। बेहतर सुविधाओं के सपने लेकर लोग एनसीआर में रह रहे हैं, लेकिन यहां की महंगी इमारतों में रहकर भी सिस्टम की लापरवाही से उनकी सांसों पर संकट छाया हुआ है। वायुमंडल में प्रदूषण के चलते रात-दिन स्माग छाए रहने से जहरीली हवा में लोगों की सांसें फूल रही हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
प्रदूषण की समस्या कोई एक-दो वर्ष में नहीं बनी है। हर वर्ष केवल कागजों में योजना बनने व जमीन पर कार्य नहीं होने के कारण ये स्थिति उत्पन्न हुई है। अब गाजियाबाद के लोगों को भी प्रदूषण की समस्या स्थायी लगने लगी है। क्योंकि वह भी जान चुके हैं कि यहां प्रदूषण रोकथाम के लिए तमाम दावे तो किए जाते हैं, जमीन पर कुछ नहीं होता। प्रदूषण के कारक स्थायी रूप ले चुके हैं।
यही कारण है कि अक्टूबर में गाजियाबाद देश में तीसरा सबसे प्रदूषित शहर रहा था। पहले नंबर पर हरियाणा का धारूहेड़ा व रोहतक दूसरे नंबर पर रहा था।
औद्योगिक उत्सर्जन
गाजियाबाद में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण अवैध औद्योगिक फैक्ट्रियों का संचालन है। इन औद्योगिक इकाइयों से जहरीला धुआं निकलता है, जो लोगों की सांसों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है। वर्तमान में लोनी, भोपुरा, साहिबाबाद में हजारों अवैध औद्योगिक फैक्ट्रियों का संचालन किया जा रहा है।
ग्रेप (ग्रेडेड रेस्पांस एक्शन प्लान) लागू होने के बाद से अभी तक केवल 10 अवैध फैक्ट्रियों को नोटिस देकर मुख्यालय को रिपोर्ट भेजी गई है।
सड़कों व फुटपाथ पर उड़ती धूल
शहर में प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा कारक सड़कों व फुटपाथों पर उड़ती धूल को माना जाता है। इसका कारण सड़कों का टूटना है और उन पर पानी का छिड़काव न होना है। जबकि ग्रेप के नियमों के अंतर्गत अधिक धूल वाली सड़कों पर रोजाना पानी का छिड़काव होना चाहिए। इसके बाद भी इक्का-दुक्का गाड़ी ही पानी पर छिड़काव करते दिखाई देती है।
नगर निगम का दावा है कि 15 एंटी स्माग गन व 40 वाटर स्प्रिंकलर मशीन से छिड़काव किया जा रहा है।
जगह-जगह जलता कूड़ा
शहर की सड़कों के किनारे जगह-जगह कूड़ा डाला जा रहा है। कूड़े का ढ़ेर बड़ा होते ही उसमें आग लगा दी जाती है। हालांकि नगर निगम व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अभी तक ये पता नहीं कर पाए कि आग कौन लगाता है। पूछने पर केवल एक जवाब मिलता है इसका पता कर कार्रवाई की जाएगी। रोजाना कहीं न कहीं कूड़ा जलने की घटनाएं शहर में प्रदूषण का स्तर बढ़ा रही हैं। अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
वाहनों से निकलने वाला धुआं और जाम
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी वाहनों से निकलने वाले धुएं को भी प्रदूषण का बड़ा कारक मानते हैं, हालांकि उसकी भागीदारी कितनी है इसकी अभी कोई सर्वे रिपोर्ट नहीं है। बड़ीं संख्या में ऐसे भी वाहन है जिनकी उम्र पूरी हो चुकी है और वह सड़कों पर दौड़ रहे हैं। वहीं, लालकुआं, मोहननगर, मेरठ रोड आदि मुख्य मार्गों पर जाम लगता है।
इन सभी के कारण वाहनों से निकलने वाली कार्बन मोनो आक्साइड गैस प्रदूषण को बढ़ाती है।
निर्माण कार्यों से उड़ने वाली धूल
ग्रेप के पहले चरण की पाबंदियां लागू हैं। इसके अंतर्गत निर्माण कार्य करते व ध्वस्त करते समय धूल न उड़े इसके लिए पानी का छिड़काव करना जरूरी है, लेकिन नियमों को ताक पर रख राजनगर एक्सटेंशन, इंदिरापुरम, वसुंधरा समेत जगह-जगह खुले में निर्माण कार्य किए जा रहे हैं। इनके निकलने वाले धूल के कण प्रदूषण बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
प्रदूषण रोकथाम के लिए सभी विभागों को जिम्मेदारी सौंपी गई हैं। प्रदूषण बोर्ड का कार्य निगरानी व कार्रवाई का है। इसके लिए चार टीमें कार्य कर रही हैं। पालन नहीं कर रहे उन पर कार्रवाई की जा रही है। -
अंकित सिंह, क्षेत्रीय अधिकारी, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड। |