तीसरी घोषणा 20 फरवरी 2024 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने की। File
एजेंडा संसोधित== रेडी टू पेस्ट== तीन-तीन मुख्यमंत्रियों ने की घोषणा, आखिर कब राजस्व गांव बनेगा बिंदुखत्ता
लोगो=== घोषणाओं को धरातल का इंतजार==
= 70 हजार की आबादी वाले बिंदुखत्ता वालों के भरोसे पर वर्षों से हो रही सिर्फ राजनीति
= 2009 से अधर में लटकी आरक्षित वन की अधिसूचना रद कर राजस्व गांव की मांग
प्रकाश जोशी, जागरण. लालकुआं: उत्तराखंड अपने गठन की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है। सरकारी स्तर पर जश्न का माहौल है लेकिन सैनिक व पूर्व सैनिकों का गांव बिंदुखत्ता अब भी राजस्व क्षेत्र बनने की प्रतीक्षा में है। वर्ष 2009 से तीन-तीन मुख्यमंत्री राजस्व गांव बनाने की घोषणा कर चुके हैं। बावजूद आज भी इस क्षेत्र की करीब 70 हजार आबादी स्वयं को शरणार्थी जैसा महसूस करती है। हर दिन बेहतरी की उम्मीद में जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों पर निगाहें टिकी रहती हैं लेकिन आखिर में उनके हिस्से आती है सिर्फ कोरी राजनीति। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाने की पहली घोषणा वर्ष 2009 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने की थी लेकिन कुछ समय बाद शासन में बैठे जिम्मेदार अधिकारियों इस आदेश को ही गायब कर दिया। दूसरी घोषणा वर्ष 2011 में मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने की थी। अब तीसरी घोषणा 20 फरवरी 2024 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने की। इसके घोषणा से एक बार फिर उम्मीद जगी कि राजस्व गांव बन जाएगा। इसके बावजूद अभी तक प्रक्रिया अधर में ही लटकी है।
इससे पहले की स्थिति देखें तो वर्ष 2002 में तत्कालीन जिलाधिकारी उत्पल कुमार सिंह ने भी बिंदुखत्ता को राजस्व गांव घोषित करने की पैरवी की थी। 14 मई 2004 को उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्य सचिव डा. आर.एस. टोलिया ने भी बिंदुखत्ता समेत अन्य खत्तों को राजस्व गांव बनाने के प्रस्ताव केंद्र को भेजे थे। अब आखिर में 19 जून 2024 को जिला स्तरीय समिति ने वन अधिकार अधिनियम के तहत बिंदुखत्ता के लोगों के सामूहिक दावों को स्वीकृत कर शासन को भेज दिया था। इसमें 1932 के बसासत प्रमाण भी प्रस्तुत किए थे।
कांग्रेस की पालिका को जनता ने किया अस्वीकार
25 जनवरी 2015 को कांग्रेस सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बिंदुखत्ता को नगर पालिका घोषित किया था। जनता की राजस्व गांव की मांग और नगर पालिका के भारी विरोध के बाद आठ दिसंबर 2016 को यह निर्णय निरस्त कर दिया गया।
ऐसे फंसा वन भूमि का मामला
वर्ष 1966 में गौला और लालकुआं (वर्तमान बिंदुखत्ता क्षेत्र) को वन विभाग ने बिना बंदोबस्ती की प्रक्रिया पूरी किए आरक्षित वन घोषित कर दिया। जबकि भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा चार से 20 के तहत स्थानीय बसासत और लोगों के अधिकार तय करना आवश्यक था। वर्ष 1993 में बंदोबस्ती शुरू हुई लेकिन विभागीय लापरवाही से प्रक्रिया अधूरी रह गई। अब लोगों की मांग है कि सरकार आरक्षित वन की अधिसूचना रद कर बंदोबस्ती प्रक्रिया पूरी करे जिससे कि लोगों को वैध राजस्व अधिकार मिल सके।
70 हजार की आबादी, अशोक चक्र विजेता का भी घर
बिंदुखत्ता में 70 हजार की आबादी है। यहां पर स्कूल, बैंक, स्वास्थ्य केंद्र, सड़क, बिजली समेत लगभग सभी सुविधाएं मौजूद हैं लेकिन राजस्व श्रेणी में दर्ज न होने से ग्रामीण केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं से वंचित हैं। पंचायत चुनावों में मतदान का अधिकार नहीं होने से ग्रामीण आज भी खुद को शरणार्थी जैसा महसूस करते हैं। जबकि इसी क्षेत्र में रहने वाले अशोक चक्र विजेता शहीद मोहन नाथ गोस्वामी समेत 18 वीर सैनिकों की भूमि बिंदुखत्ता आज भी अपने हक के लिए संघर्ष कर रही है। यहां की 65 से 70 फीसदी आबादी सैनिक और पूर्व सैनिक परिवारों की है।
बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाने के लिए सरकार कटिबद्ध है। इसके लिए लगातार प्रयास कर रहा हूं। उम्मीद है बिंदुखत्ता राजस्व गांव बन जाएगा। - डा. मोहन सिंह बिष्ट, विधायक लालकुआं |
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