बिहार चुनाव: सीमांचल में क्यों है मतदान का इतना उत्साह?
अरविंद शर्मा, जागरण, नई दिल्ली। अगर मतदाताओं की सक्रियता और लोकतंत्र के प्रति जागरूकता को समझना हो तो बिहार के सीमांचल का रुख करना पड़ेगा। यहां का मतदान प्रतिशत राज्य के बाकी हिस्सों से हर चुनाव में आगे निकल जाता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
दिलचस्प बात है कि यह बढ़त किसी संयोग का परिणाम नहीं, बल्कि लगातार बनी रहने वाली प्रवृत्ति है, जो बताती है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में वोटिंग के प्रति सजगता और भागीदारी कितनी गहरी है। इसके विपरीत, पटना शहर की विधानसभा सीटें कुम्हरार, बांकीपुर और दीघा लगातार सबसे निचले पायदान पर रहती हैं।
राजधानी पटना से अधिक सीमांचल में पड़ते हैं वोट
यह विरोधाभास राजनीति की दिलचस्प कहानी कहता है। राजधानी के मतदाता जहां उदासीन नजर आते हैं, वहीं सीमांचल जैसे पिछड़े और मुस्लिम बहुल इलाके लोकतंत्र के प्रति सबसे अधिक संजीदा हैं। सीमांचल में किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया जिले के 24 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। यह वह भूभाग है, जहां मुस्लिम आबादी सबसे अधिक है। दो लोकसभा चुनावों के आंकड़े साफ संकेत देते हैं कि सीमांचल की राजनीतिक भागीदारी राज्य के अन्य हिस्सों से कहीं ज्यादा है।
पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़े क्या कहते हैं?
पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो तस्वीर स्पष्ट हो जाती है। कटिहार में 2009 में जहां 57 प्रतिशत वोट पड़े थे, जो 2024 में बढ़कर 64 प्रतिशत हो गया। किशनगंज में 2009 का मतदान 53 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में 63 प्रतिशत तक पहुंचा। अररिया में 56 से बढ़कर 62.31 प्रतिशत और पूर्णिया में 54 से बढ़कर 63 प्रतिशत वोट पड़े।
यह वृद्धि सिर्फ संख्या नहीं है, बल्कि यह बताती है कि मतदाता, खासकर मुस्लिम और महिलाएं, मतदान को अपने अधिकार और असर दोनों के रूप में देख रहे हैं। महिलाओं की भागीदारी इस रुझान की सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरी है। जिन सीटों पर मतदान प्रतिशत अधिक होता है, वहां महिला वोटरों की हिस्सेदारी भी ज्यादा होती है।
सीमांचल की मुस्लिम महिलाएं जमकर करती हैं वोटिंग
सीमांचल की मुस्लिम महिलाओं ने पिछले चुनावों में बड़ी संख्या में मतदान कर यह दिखाया कि सामाजिक और राजनीतिक बदलाव की बुनियाद अब गांव-मोहल्लों की जागरूक महिलाएं रख रही हैं। राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार के अनुसार इसके पीछे बढ़ती जागरूकता के साथ ईवीएम और मतदान प्रक्रिया में पारदर्शिता भी एक बड़ा कारण है। उन्हें यह बात खास लगती है कि सीमांचल में मतदान का यह उत्साह ऐसे समय में देखने को मिलता है जब यह क्षेत्र बाढ़, बेरोजगारी और पलायन जैसी चुनौतियों से लगातार जूझता रहा है। बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए बाहर जाते हैं, फिर भी वोटिंग का प्रतिशत सबसे अधिक रहता है।
यह प्रवृत्ति केवल बिहार तक सीमित नहीं है। देश के अन्य मुस्लिम बहुल इलाकों जैसे असम के धुबरी और बंगाल के मालदा में भी यही रुझान दिखता है, जहां मतदान का प्रतिशत सर्वाधिक रहता है।विधानसभा चुनावों में यह तस्वीर और साफ हो जाती है। वर्ष 2010, 2015 और 2020 के चुनावों में भी सबसे ज्यादा मतदान इन्हीं क्षेत्रों में हुआ।
2015 सबसे अधिक ठाकुरगंज में हुआ था मतदान
2015 में बिहार की शीर्ष आठ विधानसभा सीटें मतदान प्रतिशत के मामले में सीमांचल की थीं। सबसे ज्यादा ठाकुरगंज में 70 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था। इसी तरह बरारी, कोढ़ा, कस्बा, प्राणपुर, किशनगंज, बलरामपुर और पूर्णिया के मतदाताओं ने वोटों की बरसात की। वर्ष 2020 में भी रुझान बरकरार रहा। कटिहार जिले की कोढ़ा और बरारी सीटें मतदान में सबसे आगे रहीं। अधिकतम मतदान के लिहाज से शीर्ष 20 सीटों में से 14 सीमांचल की थीं। |