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Jagran Film Festival Varanasi : महेश भट्ट 20 वर्ष की आयु में संघर्ष के दिनों में आए थे काशी, तांत्रिक ने दी रहस्यमयी वस्तु_deltin51

cy520520 2025-9-27 19:36:30 views 907

  जीवन की तरह आगमन नहीं सिनेमा, यह हमेशा एक यात्रा : महेश भट्ट





जागरण संवाददाता, वाराणसी। सिनेमा पचपन वर्षों से मेरा साथी रहा है। मैंने इसे अनंत रूप से बदलते देखा है। ब्लैक एंड व्हाइट से रंगीन, रील से डिजिटल, सिंगल स्क्रीन से मल्टीप्लेक्स, और अब, आपकी मुट्ठी में मंच। सितारे उगते और डूबते हैं, रुझान खिलते और लुप्त होते हैं, फिर भी एक सच्चाई बनी रहती है, सिनेमा का जीवन की तरह कभी आगमन नहीं होता, यह हमेशा एक यात्रा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

ये बातें बालीवुड के दिग्गज निर्माता निर्देशक महेश भट्ट ने कही। वह जागरण फिल्म फेस्टिवल के उद्घाटन समारोह में माडरेटर मयंक शेख्रर व दर्शकों के प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे। कहा कि जागते रहना ही जीवित रहना है



दीप जलाना केवल अंधकार को दूर भगाना नहीं है। बल्कि उस ज्योति का सम्मान करना है। वह बेचैन चिंगारी जो भस्म करती है और सृजन करती है। काशी में जागरण फिल्म महोत्सव का उद्घाटन करने के लिए आगे बढ़ते हुए, मुझे लगता है कि मेरे भीतर की ज्योति बाहर की ज्योति का उत्तर दे रही है।

  

20 वर्ष की आयु में संघर्ष के दिनों में आए थे काशी, तांत्रिक ने दी रहस्यमयी वस्तु



महेश भट्ट ने अपने शुरुआती संघर्ष के दौर को याद करते हुए बताया कि जब वह 20 वर्ष के थे तो अपने एक मित्र के साथ बोधगया जा रहे थे, वहां फिल्म बनाने के लिए एक जमीदार से फंड लेना था। मित्र ने बताया कि काशी में एक गुरुजी हैं, उनका आशीर्वाद लेकर चलते हैं। हम लोग मुगलसराय स्टेशन पर उतरकर बनारस आए। सुबह का समय था, मंदिरों की घंटियां बज रही थीं।

कचाैड़ी जलेबी की सुगंध माहौल में भरी थी, अद्भुत दृश्य था। काशी वैसे ही हिंदुत्व का केंद्र है। हम लोग एक जगह पहुंचे, वहां एक तांत्रिक शराब की बोतल लिए नाच रहा था, काफी लोग भीड़ लगाए हाथ जोड़े खड़े थे। मैं भी कौतूहल से उसे देख रहा था, उसकी दृष्टि मुझ पर पड़ी ताे वह समझ गया, इस लड़के का विश्वास मुझ पर नहीं है। फिर वह हम लोगों को अंदर बलाया और एक वस्तुु फूंक हमारे मित्र को दिया, कहा कि जिसके पास जा रहे हो, उसे यह खिला देना, तुम्हारा काम हो जाएगा।



  

मैने पूछा कि यह क्या है, तो बताया कि यह अधजले शव का मांस है। हम लोग उसे लेकर गया पहुंचे, वहां वह जमींदार मच्छरदानी के अंदर ही रहता था, चारों ओर बंदूक लिए उसके सुरक्षाकर्मी थी। उससे दूर से ही ख़ड़े होकर बात करनी थी। अब उसे तांत्रिक का प्रसाद कैसे खिलाएं तो मैं एक बनारसी पान लेकर गया, उसी में डालकर मच्छरदानी के अंदर उसे दिया और खा लेने का निवेदन किया। वह बोला, हम पान नहीं खाते, खैर, हमारे आग्रह पर खा लिया। मैं तो मुंबई वापस लौट गया। डेढ़-दो माह बाद जब मित्र वापस लौटा तो पता चला तांत्रिक की युक्ति काम नहीं आई।



गाडमैन कहकर गाली मत दीजिए

जब माडरेटर वरिष्ठ पत्रकार मयंक शेखर ने उन्हें बतौर फिल्म मेेकर गाडमैन कहा तो महेश भट्ट ने कहा कि फ्राडमैन कह लो लेकिन गाडमैन कहकर गाली मत दो, मैं के साधारण इंसान हूं। बस यह है कि ईश्वर ने गुनगुनाती जिंदगी को पकड़ लेने का हुनर दे रखा है और इससे बहुत सी नवोदित प्रतिभाओं को अवसर दिलवाया।

हर पीढ़ी का होता है अपना एक दृष्टिकोण



जब आप अज्ञानी बनकर रहते हैं तो सीखने की संभावनाएं हमेशा बनी रहती हैँ। युवा पीढ़ी हमेशा हमेशा ऊर्जा से भरपूर होती है, हर पीढ़ी का अपना एक नया दृष्टिकोण होता है।, उसे अज्ञानी बनकर पढ़िए, सीखिए। अगर इन दशकों ने मुझे कोई एक सबक दिया है, तो वह है, न जानना ही सबसे अच्छा। जिस क्षण आप सोचते हैं कि आप जानते हैं, आप समाप्त हो जाते हैं। जो मन निष्कर्ष निकालता है वह कब्रिस्तान बन जाता है। जो मन स्वीकार करता है, “मैं नहीं जानता,“ वह जीवित, संवेदनशील और युवा रहता है। इसी अनिश्चितता से कला का जन्म होता है। मैं हमेशा नौजवानों से सीखता हूं, इसलिए मेरे पास बहुत सी कहानियां हैं। युवा पीढ़ी को भी चाहिए कि वह नया सोचे और बड़ों से सीखे। जब मन में अहंकार आए तो गंगा पर एक नजर डाल लीजिए, इसके किनारे सभी भस्मीभूत होते हैं और यह हमेशा बहती रहती है, यही जीवन है।



  

कलाकार संवेदनाओं से जुड़ें

हर दौर के आडियंस बदलते हैं, उनकी सोच, रहन-सहन का तरीका, लाइफ स्टाइल बदलती है लेकिन एक चीज हजारों साल से एक ही है उनका दुख-दर्द, वह नहीं बदलता। उनकी संवेदनाएं वही रहती हैं जब हम किसी के दुख-दर्द को अपने से जोड़ लेते हैं तो वह कहानी में उतर आती है, वही फिल्म दर्शकों तक पहुंच पाती है।



खूब सपने देखें युवा, मान के चलिए आप जैसा बच्चा दूसरा नहीं पैदा हुआ

मास कम्युनिकेशन के छात्र सौहार्द्र ने उनसे पूछा कि आपकी जिंदगी कैसी रहीे और युवाओं से क्या कहना चाहेंगे तो जवाब मेें कहा कि युवाओं को खूब सपने देखना चाहिए, वह देश गरीब हो जाता है जो सपने देखनाा बंद कर देता है। प्यास होगी तो पानी कहीं न कहीं मिल ही जाएगा, पहले प्यास जगाओ। कहीं भी रेड कार्पेट बिछी नहीं मिलती, संघर्ष तो सबको करना पड़ता है। यह मानकर चलिए कि आपके जैसा बच्चा दूसरा नहीं पैदा हुआ, इसलिए आप दूसरे की तरह बनने की कोशिश न करें, आप जो है, वही बनिए। सवाल न पूछिए, उतर पड़िए पानी में। दरवाजे खुलते नहीं हैं, दस्तक देनी पड़ती है।



भारतीय सिनेमा का ठेकेदार नहीं है बालीवुड

युवा फिल्म मेकर उज्ज्वल ने पूछा कि क्या अच्छी फिल्म बनाने के लिए मुंबई आना आवश्यक है। हम जहां रहते हैं, उस परिवेश में अच्छी फिल्म नहीं बना सकते। महेश भट्ट ने जवाब दिया, तकनीक का जमाना है, जहां तकनीक हैं, सोच है, कुछ करने का जज्बा है, लगाने को पैसा है, वहीं कर सकते हैं। पंजाबी फिल्म, बंगाली फिल्म, मलयालम फिल्म इंडस्ट्री क्या मुंबई के भरोसे है। फिल्म बनाने के लिए मुंबई जाना जरूरी नहीं है, बालीवुड पूरे भारतीय सिनेमा का ठेकेदार थोड़े ही है।

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कारपोरेट फिल्म हिट होने की गारंटी नहीं

एक प्रश्न के उत्तर में महेश भट्ट ने कहा कि पहले एक फाइनेंसर होता था, पैसा लगाता था तो सभी कहानियों पर मेहनत करते थे, सोच थी कि इसका पैसा सूद सहित वापस करना है। वह भी फिल्मों पर नजर रखता था, उसके प्रति जवाबदेही होती थी। अब कारपोरेट में कोई जवाबदेही नहीं है, कंपनियां हैं, फिल्म में पैसा लगा रही हैं। उनके रिसर्चर बाजार की मांग के अनुसार कहानी पर काम करने को कह रहे हैं, फिल्म पिट जा रही है तो दोष निर्माता निर्देशक का देकर अपनी जिम्मेदारी से बच लेते हैं। केवल पैसे से फिल्म नहीं बनती, इसके लिए आम आदमी की संवेदना से जुड़ना होता है।



  

जेन-जी आडियंस के पास समय की दरिद्रता

छात्रा आकांक्षा पांडेय के प्रश्न के उत्तर में कहा कि जेन-जी के पास सब कुछ है, नई सोच, नई ऊर्जा लेकिर समय की दरिद्रता है। इसी बात पर मुझे रोना आता है। यहां पत्रकार लोग बैठे हैं पहले 2000 शब्दों का लेख लिखते थे, फिर 900 पर आए। अब हर स्टोरी 350 शब्द में लिखते हैं, फोटो जरूर लगाते हैं क्योंकि किसी के पास पढ़ने का समय नहीं है। आजकल लोग निमंत्रण तक नहीं पढ़ते।

फिल्म देख दर्शक हुए भावुक तो जागा सपनों को पूरा करने का उत्साह भी

जागरण फिल्म फेस्टिवल में पहले दिन महेश भट्ट की फिल्म ‘तू मेरी पूरी कहानी’ रिलीज की गई। इसके प्रीमियर शो के अवसर पर पूरी कास्ट उपस्थित थी। बिना किसी बड़े सितारे के बनी यह फिल्म यह साफ-सुथरी मनोरंजक व भाव प्रधान रही, जो दर्शकों के दिल व दिमाग को छू गई। इसमें एक लड़की के आसमान पाने के सपनों के संघर्ष की कहानी है जिसने लोगों को भावुक किया तो अपनी मंजिल पाने के लिए दृढ़ संकल्प का उत्साह भी भरा। आज के दौर में जब हिंदी सिनेमा अक्सर बड़े सितारों और चकाचौंध भरे प्रमोशन पर निर्भर हो चुका है, ‘तू मेरी पूरी कहानी’ अपने सादगी भरे मगर गहरे असर से अलग खड़ी दिखाई दी।

महेश भट्ट की परंपरा और अनु मलिक के संगीत का संगम, साथ में नई प्रतिभाओं का आत्मविश्वासी प्रदर्शन… यह फिल्म एक सुखद ताजगी लाती है। फिल्म में अनिका (हिरण्या ओझा) एक महत्वाकांक्षी लड़की है, जो अपने सपनों को साकार करने के लिए परिवार की परंपराओं और समाज की बंदिशों से लड़ती है। उसे राह में मिलता है रोहन (अरहान पटेल), जो संगीत का दीवाना है और अपनी आवाज से लोगों के दिल जीत लेता है। दोनों की मोहब्बत शुरुआत में सरल लगती है, लेकिन फिर सामने आता है समाज का दबाव, पिता (तिग्मांशु धूलिया) का सख्त रवैया, और एक खतरनाक जुनूनी खलनायक राज (शम्मी दुहान)।

  

कहानी बार-बार आपको सोचने पर मजबूर करती है- क्या इंसान को मोहब्बत को चुनना चाहिए या शोहरत को। हिरण्या ओझा ‘अनिका’ के किरदार में जो निडरता दिखाई देती है, वह काबिल-ए-तारीफ है। एक पल वह विद्रोही लगती हैं और दूसरे ही पल बेहद मासूम. ‘रोहन’ के रूप में अरहान पटेल का अभिनय भी भावपूर्ण है। खासकर वह दूश्य, जहां उनका किरदार अपने परिवार की परेशानियों से जूझ रहा होता है। राज के रूप में शम्मी दुहान का जुनून डराता भी है और आकर्षित भी करता है। पहली ही फिल्म से उनके अभिनय की परिपक्वता दर्शकों को देखने को मिली है। तिग्मांशु धूलिया और जूही बब्बर अपने छोटे-छोटे लेकिन गहरे दृश्यों में पूरी ईमानदारी से खरे उतरे हैं।

गुमशुदा : द ट्रैजिक एनकाउंटर में दिखा बनारस के कलाकारों का उम्दा काम ‘तू मेरी पूरी कहानी’ के बाद दो लघु फिल्मों भी पहले दिन प्रदर्शन किया गया। लघु फिल्म गुमशुदा तो बनारस के ही कलाकारों ने बनाया है। उनका काम उम्दा और विषय गंभीर है। दोे मासूम एक गलती और उस गलती को छिपाने के लिए की गई एक और गलती। इसी के इर्द-गिर्द कहानी का ताना बाना बुना गया है। एक ऐसी कहानी है है जिसमे न विलेन पूरी तरह बुरा है, ना सिस्टम पूरी तरह सही। सिर्फ एक चीज है जो कुछ लोगों की उम्मीदों को जिंदा रखती है, वह है सच पर भरोसा।

कुछ लोगों को लगता है, सबूत जला देने से सब कुछ नष्ट हो जाएगा और कहानी खत्म हो जाएगी लेकिन कहानी वहीं से शुरू होती है। द डार्क फिल्म की यह पेशकश काफी उम्दा है। कहानी और निर्देशन अमन सिंह का है। संगीत अंशल शौर्य ने दिया है। फिल्म में विक्रांत सेठ, प्रिंस सिंह, अनम यादव, विष्णु भारद्वाज, रौनक केशरी, देवा, आशीष सेठ झलक विश्वकर्मा, रिशू गुप्त, हर्ष वर्मा, गायिक दिव्या मिश्रा, शुभम जायसवाल का काम सराहनीय है। इसके बाद टर्किश फिल्म ‘इन टेन सेकंड्स’ भी दिखाई गईं। जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया।

आज की फिल्में व स्टार सुबह 9:00 बजे

बाल फिल्म ‘दोस्तबुक’ व ‘करामती पौधा’ का प्रदर्शन। सुबह 11 बजे - ब्राजील की डाक्युमेंटरी ‘सीइंग बियांड साइट- द जर्नी आफ एडनिल्सन सैक्रामेंटो’ का प्रदर्शन। दोपहर 12:15 बजे - फिल्म छावा के अभिनेता विनीत सिंह से सिनेमा में उत्तरजीविता पर बातचीत। 1:15 बजे - रजीनगंधा अचीवर फिल्म ‘छावा’ का प्रदर्शन। 4:15 बजे - मास्टर क्लास आन वीएफएक्स एंड एआइ शाम 5:15 बजे - अभिजीत गुहा व सुदेशना राय की बंग्ला फिल्म ‘आपिश’ का प्रदर्शन। शाम 7:15 बजे - मनोहर भट्ट निर्देशित हिंदी फीचर फिल्म ‘दुआ कुबूल’ का प्रदर्शन। रात 9:15 बजे - अंग्रेजी लघु फिल्म ‘ट्रायन’ व इसके बाद हिंदी लघु फिल्म ‘चित्र’ का प्रदर्शन।

  

जागरण फिल्म फेस्टिवल के 13वें संस्करण में पूरे पूर्वांचल भर से उमड़ पड़े सिने प्रेमी

दुनिया का अपनी तरह का अनूठा सिने समारोह जागरण फिल्म फेस्टिवल का इंतजार शुक्रवार को खत्म हो गया। इसका शुभारंभ तो शाम चार बजे सितारों की जुटान से हुआ लेकिन, सिगरा स्थित आइपी माल में दोपहर से ही चहल-पहल बढ़ गई। सभी को आडी नंबर तीन तक पहुंचने की जल्दी थी। किसी को फिल्मी सितारों से मिलना था।

कोई फिल्म देखने आया था तो बहुत से ऐसे थे जिन्हें फिल्म में करियर का जुनून यहां खींच लाया था। विशेष यह कि जिसने जो चाहा वह पाया। नए-नवेले लेकिन मंझे सितारों की पहली बार पर्दे पर उतर रही फिल्म तो संदेशपरक शार्ट्स भी देखने को मिली। सर्वाधिक रोमांचकारी रहा पर्दे के पीछे से फिल्मों को आकार देने वाले अनगिन कलाकारों को कला का संसार देने वाले ख्यात फिल्म निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट से मिलना।

उनसे संघर्ष, अनुभव, सफलता की कहानी सुनना और हृदय की कोटरों में बैठी फिल्म संबंधित जिज्ञासाओं का समाधान पाना। इस उम्र में फिल्मों की लंबी फेहरिश्त से इसका भान तो था कि वे अनुभवों की खान होंगे, लेकिन युवाओं से कहीं अधिक अथाह ऊर्जा ने दिल जीत लिया। एक पारस की तरह जो भी उनसे टकराया सोना बना दिया। इनमें से एक रही फिल्म ‘तू मेरी पूरी कहानी’ की स्टार कास्ट।

इसमें सुहृता दास के लेखक-निर्देशक व हिरण्या के फिल्म अभिनेत्री बनने की कहानी तो मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के एक अनजान से गांव बरखेड़ा के किसान परिवार को नौजवान अरहान की एक सामान्य सी नौकरी से फिल्म अभिनेता बन जाने का सपना साकार होने की कहानी ने रोमांच जगाया। स्कैम 1992, मडगांव एक्सप्रेस, फुले, दो और दो प्यार फेम प्रतीक गांधी के इंजीनियर से इंटरटेनर बनने की कहानी भी शब्द-संवाद के साथ दिल में उतरती चली गई।

किस तरह उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी निभाते हुए रोजगार के बीच राह बनाई और सपनों को ऊंचाई देते हुए सपनों की मंजिल पाई फिल्मों में करियर बनाने के लिए प्रयासरत हुआ को प्रोत्साहित किया। उनके हर अनुभव को प्रेरणा बना दिया।

  

जागरण फिल्म फेस्टिवल के मंच पर पहुंचे अरहान पटेल

अपनी पहली फिल्म तू मेरी पूरी कहानी को जागरण फिल्म फेस्टिवल के मंच पर पहुंचे अरहान पटेल ने दैनिक जागरण और काशी को धन्यवाद दिया। दर्शकों से स्वयं की जिंदगी की पूरी कहानी सुनाई। कहा, मैं गांव के किसान परिवार से निकलकर मुंबई में एक कंपनी में नौकरी कर रहा था। कुछ लोगों ने कहा कि तुम्हारे पास हीरो का चेहरा है। मैं लगा निर्देशकों का चक्कर लगाने। इसी संघर्ष के दौरान मैं निर्देशिका सुहृता दास से मिला। उन्होंने महेश भट्ट सर से मिलाने का आश्वासन दिया। वहां से लौटा और दो रेड लाइट क्रास ही किया था कि सुहृता मैडम का फोन आ गया। उन्होंने बुलाया और मैं महेश भट्ट सर के सामने था। इसके बाद उनको पाकर मैं रोने लगा। चुप हुआ तो उन्होंने कहा कुछ बोलो। मैंने कहा बोलना तो चाहता हूं लेकिन बोल नहीं पा रहा तब उन्होंने कहा तो फिर रो लो। उन्होंने पता नहीं मेरे आंसुओं में क्या देखा कि मुझे मौका दिया। इस प्रकार मेरी फिल्मी जिंदगी की शुरुआत आंसुओं से हुई। यह कहते हुए वे भावुक हो गए और उनका गला रुंध गया।

मैंने कहा लव नहीं, करियर प्रथम

हिरण्य ओझा : जागरण फिल्म फेस्टिवल में अपनी पहली फिल्म तू मेरी पूरी कहानी की अभिनेत्री हिरण्य ओझा ने कहा कि मेरी महेश भट्ट से मुलाकात बड़ी ही रोचक रही। सुहृता मैडम ने मुझे कहा बास से मिलना है। मैंने सोचा कोई होगा। मैं सोफे पर पैर कर पालथी मार बैठ गई। उनसे जेन जी, लव स्टाेरी की स्टोरी आदि के विषय में बातें हुईं। बातों-बातों में मैंने बहुत ही बेरुखी से कह दिया लव नहीं मेरा करियर प्रथम है। इसके बाद एक 22 साल की लड़की को उन्होंने फिल्म के अलग-अलग प्रसंगों में कहानियां सुनाकर मेरे अंदर के कलाकार को निखार दिया। वह हमेशा कहते रहे तुम महेश भट्ट मत बनो, तुम, तुम बनकर दिखाओ।

मेरी 11 साल की अधूरी कहानी बन गई ‘तू मेरी पूरी कहानी’

सुहृता दास : तू मेरी पूरी कहानी की निर्देशक सुहृता दास ने कहा कि महेश भट्ट कोलकता एक दुर्गापूजा पंडाल का उद्घाटन करने आए थे। मैंने उन्हें पूरा पंडाल घुमाया। उसके बाद मैंने उनसे कहा कि मैं एक हाथ से कटिंग और दूसरे से राइटिंग करती हूं। बताया कि मैं कटिंग के साथ 11 साल की उम्र से लिख रही हूं। कुछ दिनों बाद महेश भट्ट ने मुझे एक स्त्री के संघर्ष की कहानी लिखने को दिया। बस यहीं से मेरी 11 साल की अधूरी कहानी तू मेरी पूरी कहानी के रूप में परिणित हुई।

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