Guru Nanak Jayanti 2025: गुरु नानक देव जी के अनमोल विचार
दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। गुरु नानक देव जी सिख धर्म के प्रथम गुरु और विश्व मानवता के प्रतीक माने जाते हैं। इस वर्ष 5 नवंबर को गुरु नानक जयंती मनाई जाएगी, जो उनके प्रकाश पर्व के रूप में समर्पित है। उन्होंने अपने जीवन से यह संदेश दिया कि ईश्वर एक है और वह हर हृदय में बसता है। उनके उपदेशों में सत्य, करुणा, समानता और सेवा का गहरा भाव निहित है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वास, पाखंड और जाति-पांति के भेदभाव का विरोध किया तथा प्रेम और एकता के मार्ग को अपनाने की प्रेरणा दी। गुरु नानक देव जी का सम्पूर्ण जीवन ईश्वर-भक्ति, सत्यनिष्ठा और मानव कल्याण के लिए समर्पित रहा। उनकी शिक्षाएं आज भी मानवता के लिए मार्गदर्शक प्रकाश बनी हुई हैं।
गुरु नानक देव जी का परिवार और बचपन (Guru Nanak Dev Ji)
गुरु नानक देव जी के पिता मेहता कालू चंद स्थानीय राजस्व अधिकारी थे, जबकि माता तृप्ता देवी धार्मिक और दयालु स्वभाव की थीं। उनकी बड़ी बहन बेबे नानकी ने बचपन से ही उनमें आध्यात्मिकता और भक्ति की भावना जागृत की। गुरु नानक देव जी का विवाह माता सुलखनी जी से हुआ, जो एक धर्मनिष्ठ और सौम्य स्वभाव की महिला थीं। विवाह के बाद उनके दो पुत्र हुए जिनका नाम श्रीचंद और लक्ष्मीदास रखा गया। उन्होंने सदैव ईमानदारी, सत्य और करुणा का पालन किया।
गुरु नानक देव जी का बचपन अत्यंत अद्भुत और प्रेरणादायक था। वे छोटी सी उम्र से ही गहन चिंतनशील और ईश्वर-भक्त प्रवृत्ति के थे। जहां उनकी आयु के बच्चे खेलकूद में आनंद लेते थे, वहीं नानक जी सृष्टि, सत्य और आत्मा के रहस्यों पर विचार करते थे। पांच वर्ष की आयु में उन्होंने शिक्षा आरंभ की, परंतु जल्दी ही यह अनुभव किया कि वास्तविक ज्ञान केवल अक्षरों में नहीं, बल्कि मानवता की सेवा, करुणा और भक्ति में है। वे कहते थे कि जो व्यक्ति सच्चे हृदय से ईश्वर को जानने का प्रयास करता है, वही वास्तव में ज्ञानी कहलाता है।
गुरु नानक देव जी की चार उदासियां (teachings of Guru Nanak)
गुरु नानक देव जी ने सत्य, समानता और ईश्वर-भक्ति के संदेश को फैलाने के लिए चार प्रमुख यात्राएं कीं, जिन्हें उदासियां कहा जाता है। इन यात्राओं के दौरान वे भारत, नेपाल, तिब्बत, श्रीलंका, अरब, मक्का, बगदाद और अफगानिस्तान जैसे अनेक स्थलों पर गए। उन्होंने हर जगह लोगों को जात-पात, अंधविश्वास और पाखंड से ऊपर उठकर सत्य और सेवा का मार्ग अपनाने की प्रेरणा दी। इन यात्राओं का उद्देश्य था मानवता में एकता स्थापित करना और यह संदेश देना कि ईश्वर एक है, जो सभी के भीतर समान रूप से विद्यमान है।
नाम जपना: गुरु नानक देव जी ने सिखाया कि ईश्वर का नाम जपना जीवन का सबसे पवित्र कर्म है। इसका अर्थ केवल शब्दों से स्मरण नहीं, बल्कि हृदय से प्रभु को अनुभव करना है। जब व्यक्ति हर कार्य में ईश्वर को याद रखता है, तो उसका मन शुद्ध, शांत और प्रेममय बन जाता है।
किरत करना: किरत करना का अर्थ है ईमानदारी, मेहनत और सत्य के मार्ग पर चलते हुए अपनी जीविका अर्जित करना। गुरु नानक देव जी ने बताया कि जो व्यक्ति परिश्रम से कमाता है और किसी का अहित नहीं करता, वही सच्चा भक्त है। कर्मयोग के माध्यम से ही जीवन में आत्मिक संतोष प्राप्त होता है
वंड छकना: वंड छकना का संदेश निस्वार्थ सेवा और साझेदारी की भावना को दर्शाता है। इसका अर्थ है कि अपनी कमाई का एक हिस्सा जरूरतमंदों, गरीबों और समाज के कल्याण में लगाना। गुरु नानक देव जी ने बताया कि बांटने से न केवल दूसरों का भला होता है, बल्कि आत्मा को भी शांति मिलती है।
सेवा और करुणा: उनका संदेश था कि भक्ति केवल पूजा में नहीं, बल्कि सेवा और करुणा में भी है। उन्होंने करतारपुर नगर की स्थापना की, जहां सभी लोग समानता से भोजन करते थे। यहीं से लंगर परंपरा का आरंभ हुआ, जो आज भी सिख धर्म की एकता और समानता का प्रतीक है।
अंतिम समय और विरासत (Guru Nanak life story)
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष करतारपुर में व्यतीत किए, जहां उन्होंने लंगर की परंपरा और सेवा का आदर्श स्थापित किया। 22 सितंबर 1539 को यहीं उनका देहावसान हुआ। अपने अंतिम समय में उन्होंने अपने शिष्य भाई लहणा जी को उत्तराधिकारी नियुक्त किया, जो आगे चलकर गुरु अंगद देव जी, सिख धर्म के दूसरे गुरु बने। उन्होंने मानवता को यह सिखाया कि ईश्वर एक है, सत्य एक है, और जाति-धर्म से ऊपर उठकर सभी को एक-दूसरे से प्रेम करना चाहिए। उनकी जयंती गुरु नानक जयंती या प्रकाश पर्व के रूप में श्रद्धा और उत्साह से मनाई जाती है।
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लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें। |