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Bihar Politics: केवटी में राजद और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर का इतिहास, इस बार कौन मारेगा बाजी?_deltin51

cy520520 2025-9-27 01:06:32 views 753

  केवटी में राजद व भाजपा के बीच कांटे की टक्कर का इतिहास





विजय कुमार राय, केवटी (दरभंगा)। मधुबनी लोकसभा क्षेत्र में आने वाली दरभंगा की केवटी विधानसभा सीट (Keoti Assembly Seat) बिहार की राजनीति में हमेशा से अहम मानी जाती रही है। इस सीट का चुनावी इतिहास बताता है कि यहां पर सत्ता परिवर्तन अक्सर कांटे की मुकाबले के बाद होता है। कभी गुलाम सरवर के नाम से मशहूर रही यह सीट 2005 के बाद राजद और भाजपा के बीच लगातार टकराव का गवाह बनती रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
विधानसभा सीट का चुनावी इतिहास:

1990 और 1995 में जनता दल और फिर राजद के टिकट पर गुलाम सरवर ने जीत दर्ज कर अपनी मजबूत पकड़ दिखाई थी। 2000 में भी राजद के खाते में यह सीट गई, लेकिन 2005 का चुनाव इस परंपरा को तोड़ गया, जब भाजपा के डॉ. अशोक कुमार यादव ने गुलाम सरवर को चुनावी समर में मात दी।



इसके बाद 2010 तक भाजपा ने इस सीट पर कब्जा बनाए रखा। हालांकि, 2015 में डॉ. फराज फातमी की जीत के साथ राजद ने वापसी की और सियासी समीकरण फिर से बदल गए। 2020 का विधानसभा चुनाव इस सीट के लिए बेहद रोचक रहा।

भाजपा ने अपने प्रत्याशी मुरारी मोहन झा के माध्यम से बिहार के पूर्व वित्त मंत्री और राजद के कद्दावर नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी को 5126 मतों से शिकस्त दी। इस चुनाव में डॉ. झा को 76372 मत मिले जबकि सिद्दीकी को 71246 मत हासिल हुए।

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खास बात यह रही कि वोट शेयर में भाजपा को 46.75 फीसद और राजद को 43.61 फीसद समर्थन मिला। वहीं तीसरे स्थान पर रहे निर्दलीय प्रत्याशी योगेश रंजन को मात्र 3304 वोट मिले और 2968 मतदाताओं ने नोटा दबाकर अपनी नाराजगी जताई।
विधानसभा सीट का जातीय समीकरण:

इस सीट का जातीय समीकरण भी चुनावी नतीजों में बडी़ भूमिका निभाता है। यहां यादव, ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। रविदास और पासवान समुदाय का मत भी प्रत्याशियों की भाग्य का फैसला तय करता है।



केवटी प्रखंड की 26 और सिंहवाड़ा प्रखंड की 12 पंचायतों को मिलाकर बना केवटी विधानसभा क्षेत्र की मतदाताओं की कुल संख्या 3,11,126 है, जिनमें 1,62,083 पुरुष, 1,49,041 महिला और 2 मंगलामुखी मतदाता शामिल हैं।

इस तरह, केवटी सीट का इतिहास बताता है कि यहां की सियासत कभी एकतरफा नहीं रही। 2025 के चुनाव से पहले भी यह सीट बिहार की राजनीति में चर्चा का केंद्र बनी हुई है, क्योंकि यहां हर बार टक्कर राजद और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर होती रही है। आने वाला चुनाव यह तय करेगा कि क्या भाजपा अपना किला बचा पाएगी या राजद एक बार फिर मजबूत वापसी करेगी।

  

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