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सातवें दिन भी IPS पूरन कुमार के शव पोस्टमार्टम नहीं, परिवार ने पहले पत्र का कोई जवाब नहीं दिया तो चंडीगढ़ पुलिस ने दूसरी बार चेताया

cy520520 7 day(s) ago views 366

  

आईपीएस पूरन कुमार का शव पीजीआई की मॉर्चरी में रखा गया है।



जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। हरियाणा काडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार के शव का सातवें दिन भी पोस्टमार्टम नहीं हो सका है। शव अब भी पीजीआई की मार्चरी में रखा हुआ है, जबकि पुलिस ने रविवार को आईपीएस की पत्नी अमनीत पी. कुमार को पत्र भेजकर चेताया था कि यदि समय रहते पोस्टमार्टम नहीं कराया गया तो साक्ष्यों के नष्ट होने का खतरा बढ़ जाएगा और पोस्टमार्टम रिपोर्ट अधूरी या त्रुटिपूर्ण हो सकती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

पुलिस के पहले पत्र पर परिवार ने कोई ठोस जवाब नहीं दिया था। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि उन्हें थोड़ा और समय चाहिए। सोमवार शाम पुलिस ने परिवार को दूसरा पत्र सौंपा, जिसमें फिर वही चेतावनी दोहराई गई कि देरी से शव की स्थिति बदल सकती है और इससे जांच पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। पुलिस सूत्रों के अनुसार यह पत्र औपचारिक रिकाॅर्ड के रूप में जारी किया गया है ताकि आगे चलकर किसी भी प्रकार की प्रक्रियागत आपत्ति न उठे।

पुलिस अधिकारियों के अनुसार सात दिन तक शव का पोस्टमार्टम न होना जांच के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है। पोस्टमार्टम जितनी देर से होता है, आंतरिक साक्ष्य उतने ही नष्ट होने लगते हैं। इससे मौत के वास्तविक कारणों की पुष्टि कठिन हो जाती है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि यदि परिवार आगे भी सहमति नहीं देता है तो पुलिस मैजिस्ट्रेट की निगरानी में कानूनी प्रक्रिया के तहत पोस्टमार्टम कराया जा सकता है।
कानून क्या कहता है

वकील दीक्षित अरोड़ा ने बताया कि आत्महत्या, हत्या या संदिग्ध मृत्यु की स्थिति में पुलिस दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 174 के तहत कार्यकारी मजिस्ट्रेट को सूचित करने और जांच कराने के लिए बाध्य है। उन्होंने कहा कि यदि मृत्यु का कारण प्राकृतिक या स्पष्ट नहीं है, तो कार्यकारी मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी कानूनी रूप से शव का पोस्टमार्टम कराने के लिए अधिकृत हैं, भले ही परिवार अनुमति न दे।

सूत्रों के मुताबिक पुलिस विभाग आंतरिक रूप से प्लान बी पर भी विचार कर रहा है। यानी अगर परिवार की सहमति नहीं मिलती, तो मैजिस्ट्रेट की अनुमति लेकर पोस्टमार्टम करवाया जा सकता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि शव से मिलने वाले वैज्ञानिक और फारेंसिक साक्ष्य सुरक्षित रह सकें।
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