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एक साल बीतने पर भी जल निकायों को नहीं किया गया अतिक्रमण मुक्त, NGT ने अधिकारियों को लगाई फटकार

LHC0088 2025-9-26 06:36:23 views 1094

  एक साल बीतने पर भी नहीं हुई जल निकायों को अतिक्रमण मुक्त करने पर कार्रवाई।





विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। मुंडका स्थित जल निकायों को अतिक्रमण मुक्त कराने से लेकर पुनर्जीवित करने के तमाम निर्देश के बावजूद भी जमीनी स्तर पर कार्रवाई नहीं हो रही है। दिल्ली आर्द्रभूमि प्राधिकरण द्वारा अक्टूबर 2024 में इस बाबत जारी किए आदेश के बावजूद भी एजेंसियों ने कार्रवाई करना जरूरी नहीं समझा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

वहीं, दूसरी तरफ अपना-अपना पल्ला झाड़ते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में अस्पष्ट, अपुष्ट और अधूरी रिपोर्ट दाखिल कर दी। दिल्ली में जल निकायों पर हो रहे अतिक्रमण और उनकी बहाली में देरी को देखते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने (एनजीटी) रिकार्ड पर पेश किए गए तथ्यों को देख एनजीटी ने न सिर्फ नाराजगी व्यक्त की, बल्कि अधिकारियों की उदासनीता पर फटकार भी लगाई।



एनजीटी चेयरमैन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि विभिन्न एजेंसियों द्वारा मामले में अपुष्ट, अस्पष्ट और अधूरी रिपोर्ट दाखिल की गई। उक्त तथ्यों को देखते हुए एनजीटी ने अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से या वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से अगली सुनवाई पर उपस्थित होने का निर्देश दिया है। मामले की सुनवाई तीन नवंबर को होगी।moradabad-city-crime,moradabad news, UP news, Uttar Pradesh News ,Uttar Pradesh news

एनजीटी ने स्टेट वेलैंड अथारिटी सचिव, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) उपाध्यक्ष, दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, दिल्ली राज्य औद्योगिक एवं ढांचागत विकास निगम (डीएसआइआइडीसी) के प्रबंध निदेशक, पश्चिमी दिल्ली जिलाधिकारी को मामले में पूर्ण रिपोर्ट के साथ पेश होने का कहा। एनजीटी ने एजेंसियों को यह भी बताने को कहा कि जल निकायों की पहचान, अतिक्रमण हटाने और उनके पुनर्जीवन के लिए क्या कदम उठाए गए।



एनजीटी ने रिकार्ड पर लिया कि अतिक्रमण हटाने व जल निकायों की बहाली के संबंध में 30 अक्टूबर 2024 को दिल्ली आर्द्रभूमि प्राधिकरण द्वारा स्पष्ट आदेश जारी किए गए थे, लेकिन इस पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। एनजीटी ने यह भी कहा कि यह मामला 29 अप्रैल 2022 से लंबित है और एनजीटी अधिनियम की धारा 18(3) के तहत छह महीने में मामले को निर्धारित करने की समयसीमा का उल्लंघन है।
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