साधुओं को नपुंसक बनाने के मामले में राम रहीम के खिलाफ गवाह की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जिरह को मंजूरी (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत सिंह और अन्य के खिलाफ दर्ज यौन शोषण व नपुंसक बनाने के मामले में एक महत्वपूर्ण आदेश देते हुए गवाह हंस राज चौहान की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (वीसी) के जरिए जिरह की अनुमति बरकरार रखी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
जस्टिस अमन चौधरी की पीठ ने आरोपी डॉ. महेंद्र प्रताप सिंह की याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में पंचकूला स्थित सीबीआई अदालत के विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा 2 अगस्त 2025 को दिए गए आदेश को चुनौती दी गई थी।
पूरा मामला क्या है?
यह केस डेरा सच्चा सौदा के लगभग 400 साधुओं को कथित तौर पर नपुंसक बनाए जाने से जुड़ा है। हाई कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने 23 दिसंबर 2014 को एफआईआर दर्ज की थी। जांच पूरी होने के बाद सीबीआई ने गुरमीत सिंह, डॉ. पंकज गर्ग और डॉ. महेंद्र प्रताप सिंह के खिलाफ आईपीसी की धारा 120-बी, 417, 326 और 506 के तहत आरोप तय किए।
डॉ. महेंद्र प्रताप सिंह की ओर से वरिष्ठ वकील ने दलील दी कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से जिरह अभियुक्त के अधिकारों के खिलाफ है। उनका कहना था कि इससे गवाह के व्यवहार (डिमीनर) का सही आकलन नहीं हो पाएगा, जो न्याय की प्रक्रिया का अहम हिस्सा है।bhagalpur-general,Bhagalpur news,Nitish Kumar,Bihar development projects,Solar power initiative,Khagaria development,Bihar government schemes,Lalu-Rabri regime,NDA alliance Bihar,Satish Prasad Singh,Sadanand Singh,Bihar news
हाई कोर्ट ने सभी दलीलों को किया खारिज
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया जिसमें माना गया था कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हंस राज चौहान की गवाही दर्ज करना सीआरपीसी की धारा 273 की शर्तों को पूरा करता है। यह “आभासी मौजूदगी” भी प्रत्यक्ष मौजूदगी के समान मानी जाएगी। पीठ ने कहा कि यह तर्क गलत है कि वीसी से गवाह के व्यवहार का अध्ययन नहीं हो सकता।
अदालत में भीड़ में गवाह को देखने की तुलना में वीडियो माध्यम से उतनी ही स्पष्टता से गवाह को देखा और परखा जा सकता है। अदालत ने कहा कि संबंधित गवाह ने जान के खतरे के चलते देश छोड़ दिया था। यह कदम स्वाभाविक था और गवाह को सुरक्षा भी उपलब्ध कराई गई है।
हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निचली अदालत ने सभी परिस्थितियों को देखते हुए और कानून का पालन करते हुए ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से गवाह की जिरह की अनुमति दी थी। इसलिए आदेश को बरकरार रखा जाता है। इस मामले में सीबीआइ की तरफ से रवि कमल गुप्ता ने पैरवी की। |