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Ahoi Ashtami 2025: अहोई अष्टमी आज, क्या है महत्व व शुभ मुहूर्त; ज्योतिषाचार्य की विधि से करें पूजा

LHC0088 2025-10-13 15:36:32 views 1243

  

प्रस्तुतीकरण के लिए सांकेतिक तस्वीर का प्रयोग किया गया है।



जागरण संवाददाता, आगरा। कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला अहोई अष्टमी व्रत 13 अक्टूबर को श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाएगा। इस पर्व माताएं अपनी संतान की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और मंगल की कामना के लिए उपवास रखकर शाम को तारों की छांव में अहोई माता की आराधना करती हैं। सोमवार को पूजन का शुभ मुहूर्त सायं 5:51 बजे से 7:06 बजे तक एक घंटा 15 मिनट की अवधि के लिए रहेगा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

  
अहोई अष्टमी व्रत आज, सोमवार को दोपहर 12:24 बजे से लग रही है अष्टमी तिथि

  

ज्योतिषाचार्य पं. चंद्रेश कौशिक ने बताया कि अष्टमी तिथि प्रारंभ सोमवार 13 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 24 मिनट पर हो रहा है, जो 14 अक्टूबर सुबह 11 बजकर नौ मिनट पर संपन्न होगी। रात्रि पूजन की मान्यता के कारण इसे सोमवार को मनाना शुभ होगा। अहोई अष्टमी व्रत का विशेष महत्व यह है। महिलाएं दिनभर निर्जला या फलाहार उपवास रखकर संतान की कुशलता के लिए प्रार्थना करेंगी। शाम को आकाश में तारे दिखाई देने पर उन्हें अर्घ्य अर्पित कर व्रत का पारण करेंगी। शाम को तारों के दर्शन सवा छह बजे से होंगे। कुछ महिलाएं चंद्रदर्शन के बाद व्रत का पारण करती हैं, लेकिन इसका अनुसरण कठिन होता है, क्योंकि अहोई अष्टमी के दिन चंद्रोदय विलंब से होता है। चंद्रोदय दर्शन रात्रि 11 बजकर 21 मिनट पर होगी।


ऐसे होगी पूजा

  


महिलाएं अहोई माता का चित्र पारंपरिक रूप से गेरू से दीवार पर बनाती हैं। इसमें माता अहोई, सेह (साही) और उसके सात पुत्रों का चित्रण किया जाता है। पूजा के समय दीपक, फूल, फल, मिठाई और पूजन सामग्री माता के समक्ष रखकर आराधना की जाती है। महिलाएं बच्चों की दीर्घायु और स्वास्थ्य की कामना करती हैं और तारे निकलने के बाद पूजा संपन्न कर व्रत खोलती हैं।

मान्यता है कि श्रद्धापूर्वक अहोई अष्टमी का व्रत करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और घर में सुख, समृद्धि तथा सौभाग्य का वास होता है। अहोई अष्टमी को अहोई आठें नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली के आठ दिन पूर्व मनाया जाता है। परंपरानुसार यह व्रत मातृत्व प्रेम, त्याग और आस्था का प्रतीक माना गया है, जो सनातन संस्कृति की पारिवारिक एकता को सुदृढ़ करता है।
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