1956 में ही बनारस से सीधे जुड गया था बालीवुड।
गौतम चटर्जी, वाराणसी। काशी और बंगाल का संबंध तो एक सरीखा ही रहा है। बनारस तब मिनी बंगाल ही था जब सत्यजित रे ने अपनी दूसरी फिल्म ‘अपराजितो’ की शूटिंग यहां के घाटों पर करने की तैयारी की थी। मार्च 1956 में वह बनारस आए लोकेशन देखने, अप्रैल में शूट किया। अक्टूबर में फिल्म पूरी होकर रिलीज हो गई। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
यानी उसी समय आज से 69 वर्ष पूर्व ही बालीवुड बनारस से जुड़ गया था। इसके पूर्व बनारस में किसी भी भाषा में फिल्म शूट करने का सिलसिला शुरू नहीं हुआ था। यदि किसी फिल्म में यहां का जिक्र होता था तो स्टाक शाट से बनारस के कुछ दृश्य दिखा दिए जाते थे। जैसे राजघाट का पुल या घाट।
‘अपराजितो’ की ग्यारह दिनों की शूटिंग के बाद धीरे-धीरे हिंदी फिल्मकारों का ध्यान इस शहर की ओर गया लेकिन पहल हिंदी की जगह भोजपुरी ने की। बंबई में फिल्मकार आश्वस्त नहीं थे कि हिंदी भाषा में वे सफल हो सकते थे। उन्हें लगा यूपी बिहार में इधर की बोली ही चलेगी, और चली भी। 1963 में ‘गंगा मइया तोहें पियरी चढ़ईबो’ और ‘बिदेसिया’ ने भोजपुरी फिल्मों का प्रस्थान तय कर इतिहास रच दिया।
1968 में दो फिल्मों की शूटिंग हिंदी भाषा में यानी हिंदी स्क्रिप्ट के अनुसार हुई। ‘संघर्ष’ और ‘विद्यार्थी’। हालांकि ‘संघर्ष’ की शूटिंग मदनपुरा और चौक में थोड़ी ही हुई लेकिन दिलीप कुमार के कारण फिल्म चर्चा में आ गई। एचएस रवैल की इस फिल्म की पटकथा नबेन्दु घोष ने लिखी थी। फिल्म ‘विद्यार्थी’ को यह लाभ नहीं मिला क्योंकि एसएन श्रीवास्तव की इस फिल्म में सज्जन और सुलोचना को छोड़ सभी कलाकार बनारस के थे, नए थे।
दूसरी हिंदी फिल्म जो चर्चा में आई वह थी ‘शराफत’। यह 1970 में प्रदर्शित हुई। फिल्म में एक दृश्य बनारस के मदनपुरा क्षेत्र में रखा गया था नजीर बनारसी के घर। बग्घी आकर रुकती है और कलाकार इस घर में प्रवेश करता है। इसके बाद के हेमा मालिनी के सारे दृश्य बंबई में शूट हुए। कुछ समय पहले वे गंगा महोत्सव में दुर्गा नृत्य नाटिका प्रस्तुत करने के बाद ‘शराफत’ के दिनों को याद करने लगीं। उनका कहना था वे यहां शूट के लिए आने को तैयार थीं लेकिन प्रशासन तैयार नहीं था। सभी जानते हैं कि 70, 71 के दौर में वे शीर्ष की नायिका थीं।meerut-city-crime,Meerut News,acid attack on nurse,love affair crime,acid attack case, attack over relationship,revenge crime, UP Crime News,मेरठ समाचार,Uttar Pradesh news
1979 में सत्यजित रे यहां फिर आए। ‘जय बाबा फेलुनाथ’ की शूटिंग की और कहा, अब वे यहां कभी नहीं आयेंगे। अस्सी के दशक से सिलसिले ने जोर पकड़ लिया। गुरुदत्त के भाई आत्माराम यहां तुलसीदास पर फिल्म बनाने आए और महीना भर शूट करते रहे लोकल कलाकारों को लेकर।
फिल्म प्रदर्शित हुई तो कलाकार तो सभी थे लेकिन आवाज उनमें से किसी की नहीं थी। आवाज डब कर ली गई थी बंबई में वहां के कलाकारों के जरिए। नब्बे के दशक से तो बनारस शूटिंग का केंद्र बनता चला गया। सनी देओल, अमरीश पुरी आदि जब तब शूट के लिए तो आते ही, बंगला, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम फिल्मों की शूटिंग की यहां बाढ़ सी आ गई।
पहले यहां के लोगों में शूटिंग देखने का आकर्षण था जो क्रमशः मद्धिम पड़ता गया। इसी समय यहां दीपा मेहता की फिल्म ‘वाटर’ की शूटिंग को लेकर विवाद हुआ। विवाद दो महीने तक चला। शबाना आजमी, नंदिता दास, जावेद अख्तर ने नगर में लंबे समय तक रहकर विवाद को सुलझाने की कोशिश की लेकिन शूट अंततः नहीं हो पाई। ‘बनारस’ नाम से ही फिल्म यहां बनी उर्मिला मातोंडकर को लेकर।
पिछले दो दशकों से अब बनारस हिंदी फिल्म शूट का नियमित लोकेशन है। यहां के दर्शक किसी उत्कृष्ट फिल्म की प्रतीक्षा में हैं जिसकी शूटिंग तो यहां हो लेकिन उसका स्तर ‘अपराजितो’ सा हो।
(लेखक, सिने निर्माता निर्देशक, लेखक, शिक्षक व समीक्षक हैं।) |