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जालंधर में खुलेआम चल रहा अवैध पटाखों का गोरख धंधा, पंजाब पुलिस ने क्यों मूंदी आंखें?

deltin33 2025-10-10 04:36:34 views 1197

  

कानपुर में धमाके के बाद भी जालंधर में अवैध पटाखे का कारोबार जारी है (फोटो: जागरण)



जागरण टीम, जालंधर। कानपुर में स्कूटर से पटाखे ले जाते समय हुए धमाके के बाद भी जालंधर में अवैध तरीके से पटाखे स्टोर करने वालों ने कोई सबक नहीं लिया है। पठानकोट चौक स्थित सर्कस ग्राउंड में पटाखा मार्केट को मंजूरी मिलने के बावजूद बाजारों में बने गोदामों में अवैध रूप से पटाखे स्टोर किए जा रहे हैं, लेकिन पुलिस मौन है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

अवैध पटाखे बेचने वाले विक्रेताओं के तर्क भिन्न-भिन्न हैं। कुछ विक्रेता बताते हैं कि उन्होंने महीनों पहले पटाखे मंगवा लिए थे, जबकि अन्य लाइसेंस न मिलने को अपनी मजबूरी बताते हैं। ये विक्रेता अपनी पहचान उजागर करने से बचते हैं और जब लाइसेंस के बिना पटाखे बेचने पर पाबंदी की बात की जाती है तो वे झगड़करने पर भी उतारू हो जाते हैं।

पुलिस अधिकारी हर वर्ष की तरह अवैध पटाखा बेचने वालों पर कार्रवाई की योजना बना रहे हैं। एडीसी (जनरल) अमनिंदर कौर ने कहा कि अब पुलिस की जिम्मेदारी है। दैनिक जागरण की टीम ने माडल हाउस, किशनपुरा, अटारी बाजार, भार्गव कैंप और गढ़ा रोड का जायजा लिया, जहां पटाखे खुलेआम बिकते हुए पाए गए।

हालांकि दुकानों के बाहर डिस्प्ले में वैरायटी कम थी, लेकिन ग्राहकों को स्टोर के अंदर से पटाखे दिए जा रहे थे। अवैध कारोबार करने वाले विक्रेता बड़ी सावधानी बरतते हैं। संदिग्ध ग्राहक को देखकर वे पटाखे देने से मना कर देते हैं और छोटे बच्चों के पटाखों की बात करते हैं।

पठानकोट चौक के नजदीक सर्कस ग्राउंड की जगह तय किए जाने के बावजूद पटाखा विक्रेताओं की तरफ से बाजारों में बने गोदामों से पटाखों की सप्लाई शुरू कर दी गई है। इस संबंध में अभी जिला प्रशासन ने अभी कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। जिला प्रशासन ने त्योहारों के दौरान पटाखे बेचने के लिए व्यापारियों को 20 लाइसेंस जारी किए हैं, लेकिन सर्कस ग्राउंड में 60 से अधिक दुकानें लगाने की तैयारी चल रही है। शुक्रवार से ग्राउंड में शेड डालने का कार्य शुरू हो रहा है।

विक्रेताओं का तर्क है कि लाइसेंस नहीं मिलने के कारण वे मजबूर हैं। माडल हाउस व किशनपुरा में पटाखे बेचने वाले विक्रेताओं का कहना है कि हर वर्ष वे पटाखे बेचते हैं और यही उनकी कमाई का मुख्य स्रोत है। वे त्योहारों के दो महीने पहले ही आर्डर कर देते हैं। विश्वसनीय ग्राहकों को पटाखे देने के लिए वे अपने कारिंदों के साथ गोदाम में भेज देते हैं और मोबाइल का इस्तेमाल करने वालों पर विशेष नजर रखते हैं।

अटारी बाजार के एक दुकानदार ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि सभी दुकानदारों को अवैध पटाखा बेचने की जानकारी है। दुकानदार एक-दूसरे की मदद करते हैं और कभी-कभी जांच की सख्ती से पहले ही दुकानें बंद कर देते हैं। अवैध पटाखे बेचने के लिए राजनीतिक संरक्षण की आवश्यकता होती है। विवाद होने की सूरत पर समझौता ही होता है।

डीसीपी नरेश डोगरा ने कहा कि जितने लाइसेंस हैं, उतनी ही दुकानें होंगी। जिनके पास लाइसेंस नहीं है और वे पटाखे बेचते हैं, उन पर कार्रवाई की जाएगी। पुलिस ऐसे पटाखा व्यापारियों की जांच के लिए अभियान शुरू करने जा रही है। इसको लेकर पुलिस अधिकारियों की बैठक शनिवार को है।


पहले भी हुए हैं हादसे

- वर्ष 2018 : सेंट्रल टाउन से सटे रियाजपुरा के घर में अवैध पटाखों के कारण विस्फोट हुआ था। खजान सिंह के घर में सायं साढ़े तीन बजे धमाका हुआ। हादसे में वहां काम करने वाली 18 वर्षीय लड़की राधिका की मौत हो गई थी और तीन अन्य घायल हुए थे। धमाका भारी तादाद में रखे पटाखों कारण हुआ था। यहां अवैध पटाखा फैक्ट्री चल रही थी।


- वर्ष 2000 : गुरदेव नगर के एक घर में भारी मात्रा में पटाखा स्टोर की गई थी, जिस कारण घर में आग लग गई। आग से सारा सामान तो जला ही, घर के चार सदस्य गंभीर रूप से झुलस गए थे।

दिवाली के दौरान फायर ब्रिगेड की भूमिका अहम रहती है। दिवाली की रात जिले में कई जगह आग लगने की घटनाएं होती हैं। जिले में फायर ब्रिगेड के पास 28 गाड़ियां (10 गाड़ियां कस्बों की) हैं। जालंधर नगर निगम के फायर ब्रिगेड स्टेशन के 18 अग्निशमन वाहनों में से बस स्टैंड, दादा कालोनी, कैंट और दोमोरिया पुल के सब स्टेशन पर एक-एक गाड़ी खड़ी होती है, बाकी गाड़ियां जेल चौक स्थित हेड आफिस में खड़ी रहती हैं। निगम पटाखा मार्केट में भी आग बुझाने के लिए टीम तैनात करता है।

देहात में करतारपुर में दो, आदमपुर-फिल्लौर में तीन-तीन, नकोदर-शाहकोट में भी एक-एक गाड़ी है। नगर निगम जालंधर फगवाड़ा, कपूरथला व होशियारपुर से भी तालमेल करता है, ताकि जरूरत पड़ने पर एक दूसरे की मदद की जा सके। फायर ब्रिगेड में स्टाफ की कमी है। बड़ी गिनती में आउटसोर्स के कर्मचारी ही जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। ऐसे में आग लगने पर कस्बों में राहत पहुंचाना मुश्किल हो जाता है।
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