राजस्व के बिना अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकते नगर निकाय (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि राजस्व सृजन के बिना नगर निकायों से अपने कार्यों को जारी रखने और अपने वैधानिक दायित्वों को पूरा करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इन कर्तव्यों में किसी भी प्रकार की चूक से अराजकता, बीमारियों का प्रसार और आम तौर पर नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने बांबे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के उस आदेश को रद कर दिया, जिसमें अकोला नगर निगम द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत संपत्तियों पर 16 साल के अंतराल के बाद संपत्ति कर बढ़ाने के फैसले को रद कर दिया गया था।
पीठ ने कहा, \“\“राजस्व सृजन के बिना नगर निकायों से इन सभी कार्यों को जारी रखने और अपने वैधानिक दायित्वों को पूरा करने की उम्मीद नहीं की जा सकती। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि इन सभी गतिविधियों/कार्यों की लागत समय के साथ बढ़ती है और इसलिए बढ़ती लागतों के अनुरूप नियमित आधार पर कर ढांचे में संशोधन अपरिहार्य है।\“
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, \“\“यदि बुनियादी ढांचे, मानव संसाधन आदि की लागत में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए करों में संशोधन नहीं किया गया तो इससे नगर निकाय निष्क्रिय हो जाएंगे।\“\“ इसमें कहा गया है कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि प्रत्येक नगर निकाय को सौंपे गए कार्यों में शहरी नियोजन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, अपशिष्ट प्रबंधन, आवश्यक सेवाओं का प्रविधान और शहरों/कस्बों के बुनियादी ढांचे का रखरखाव शामिल है।
\“\“ये गतिविधियां जन कल्याण और प्रत्येक शहर या कस्बे में नागरिकों के जीवन स्तर को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये स्वास्थ्य और सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करने के लिए मौलिक हैं, जो नागरिकों के प्रति संवैधानिक दायित्वों की मूल आवश्यकताएं हैं।\“\“
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