डिजिटल टीम, नई दिल्ली। योगगुरु स्वामी रामदेव ने हाल ही में आचार्यकुलम् यूनिवर्सिटी, जिसे पतंजलि गुरुकुलम के नाम से भी जाना जाता है, का विस्तृत भ्रमण किया और वहाँ पढ़ रहे छात्रों से बात की। इस दौरान उन्होंने न केवल आधुनिक शिक्षा और प्राचीन गुरुकुल परंपरा के अद्भुत संगम को दिखाया, बल्कि यह भी समझाया कि किस तरह यहां ऋषि-ऋषिकाओं के योग्य उत्तराधिकारी तैयार किए जा रहे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
प्राचीन परंपरा और आधुनिक शिक्षा का मेल
पतंजलि गुरुकुलम का मूल उद्देश्य केवल डिग्री देना नहीं, बल्कि ऐसे व्यक्तित्वों का निर्माण करना है जो ज्ञान, संस्कार, स्वास्थ्य और नेतृत्व, चारों क्षेत्रों में उत्कृष्ट हों। यहाँ छात्रों को वेद, उपनिषद, संस्कृत और भारतीय ज्ञान परंपरा की शिक्षा दी जाती है लेकिन इसके साथ ही आधुनिक विषय जैसे विज्ञान, तकनीक, गणित को भी उतनी ही प्राथमिकता दी जाती है। इसके साथ ही उन्हें 10 से ज़्यादा भाषाएं और 100 से अधिक दक्षताएं भी सिखाई जाती हैं। स्वामी रामदेव का मानना है कि आज भारत को ऐसे युवा चाहिए जो अपने मूल्यों से जुड़े हों और आधुनिक चुनौतियों का सामना भी कर सकें।
स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और मजबूत चरित्र
अपने भ्रमण के दौरान स्वामी रामदेव ने बच्चों से योग, ध्यान और प्राणायाम के अभ्यास के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि गुरुकुलम का जीवन सिर्फ पढ़ाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यहाँ का अनुशासन, दिनचर्या और वातावरण बच्चों के संपूर्ण व्यक्तित्व को गढ़ता है। योग और आयुर्वेद यहाँ की शिक्षा का आधार हैं। छात्र रोज़ सुबह योगाभ्यास करते हैं, जिससे उनमें एकाग्रता और मानसिक शक्ति बढ़ती है। उनका खाना भी सात्त्विक और स्वास्थ्यवर्धक रखा जाता है, ताकि उनका शरीर और मन दोनों शुद्ध रहें।
दिव्य नेतृत्व का निर्माण
स्वामी रामदेव ने कहा कि भारत की अगली पीढ़ी को केवल नौकरीपेशा नहीं, बल्कि नेतृत्वकर्ता, नवोन्मेषी विचारक और संवेदनशील नागरिक बनना होगा। गुरुकुलम में छात्रों को नेतृत्व, सामाजिक सेवा, पर्यावरण संरक्षण और राष्ट्रनिर्माण से जुड़े कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल किया जाता है। यहाँ ‘दिव्य नेतृत्व’ का अर्थ है-
● सत्य और नैतिकता पर आधारित निर्णय
● समाज के प्रति जिम्मेदारी
● आध्यात्मिक दृष्टि
● ज्ञान के साथ करुणा
● संस्कार ही असली धन
स्वामी रामदेव ने छात्रों को समझाया कि डिग्री ज़रूरी है, पर उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है संस्कार, चरित्र और आत्मबल। उन्होंने कहा कि गुरुकुलम के छात्र भविष्य में चाहे डॉक्टर, वैज्ञानिक, प्रशासक या सन्यासी बनें लेकिन उनका मूल उद्देश्य समाज और राष्ट्र की सेवा होना चाहिए।
गुरुकुलम- एक पुनर्जागरण का केंद्र
पतंजलि गुरुकुलम आज केवल एक विद्यालय नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण का केंद्र बन रहा है। यहाँ यह प्रयास हो रहा है कि भारत की आने वाली पीढ़ियाँ न केवल वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी हों, बल्कि अपनी जड़ों से भी गहराई से जुड़ी रहें। स्वामी रामदेव का संदेश स्पष्ट है- “दिव्य व्यक्तित्व, दिव्य चरित्र और दिव्य नेतृत्व के साथ ही भारत विश्वगुरु बन सकता है।” |