नार्को टेररिज्म बड़ा खतरा, हर राज्य को बनानी होगी एसआईए NIA के पूर्व डीजी दिनकर गुप्ता (फाइल फोटो)
जागरण विशेष: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही जी-20 में नार्को टेररिज्म को दुनिया का सबसे बड़ा खतरा बताया। जाहिर है यह सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती बन गई है और इसमें क्रिप्टो करेंसी भी शामिल हो गई है। नार्को टेररिज्म से निपटना आसान नहीं होगा, इसके लिए कई स्तरों पर काम करने की जरूरत है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इन चुनौतियों और उससे निपटने के उपायों पर नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (एनआइए) के पूर्व महानिदेशक, पंजाब के पूर्व डीजीपी और केंद्रीय गुप्तचर एजेंसियों में लंबे समय तक काम करने वाले दिनकर गुप्ता से दैनिक जागरण के पंजाब ब्यूरो प्रमुख इन्द्रप्रीत सिंह ने लंबी बातचीत की। प्रस्तुत है इसके अंश...
नार्को टेररिज्म दुनिया के साथ-साथ भारत के लिए कितना बड़ा संकट मानते हैं?
हमारे देश के लिए नार्को-टेररिज्म बड़ा खतरा है। इससे देश की सुरक्षा जुड़ी हुई है। यह युवाओं को बर्बाद करके उन्हें खोखला कर रहा है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा बन गया है। ड्रग्स एक ऐसा माध्यम है जिसमें भारी पैसा शामिल है और जो न केवल संगठित अपराध को बढ़ा रहा है बल्कि गैंगस्टरवाद बढ़ाते हुए आतंकी गतिविधियों को भी पोषित कर रहा है।
इससे निपटना कितनी बड़ी चुनौती है?
इसमें भारी पैसा शामिल है जो हमारी संस्थाओं को भ्रष्ट कर रहा है। वहीं, इनके लिंक स्थापित करना ही सबसे मुश्किल काम है। एक उदाहरण देता हूं। कोरोना काल के दौरान हमने पंजाब में सीमा पर एक केस पकड़ा जिसमें हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकी एजाज अहमद नाइकू ड्रग्स मनी के 25 लाख रुपये लेने के लिए सीमा पर आया था। उसके फोन के जरिए जब हमने विभिन्न पहलुओं की जांच की तो इस केस की परतें खुलने लगीं। पता चला कि आतंकी रंजीत चीता भी इसमें शामिल है। रंजीत चीता के माड्यूल को ध्वस्त करने से नार्को टेररिज्म का लिंक मिला। इस केस को गृह मंत्रालय ने भी बहुत गंभीरता से लिया और पहली बार किसी गृह मंत्री ने हमारे एक एएसपी अभिमन्यु राणा को निजी तौर पर फोन करके बधाई दी।
इतनी एजेंसियां होने के बाद भी नाको टेररिज्म कैसे बढ़ता जा रहा है?
कोई भी चीज न तो एकदम से शुरू होती है और न ही खत्म होती है। इसके पनपने के पीछे कई वर्षों के बहुत से कारक होते हैं। पंजाब में जब सीमा पर कंटीली तार नहीं थी, तब यहां सोने की तस्करी होती थी। कंटीली तार लगने के बाद यह काम रुका तो ड्रग्स की तस्करी शुरू हो गई, हथियार आने लगे। पंजाब ने आतंकवाद का लंबा दौर देखा। उसके बाद भी सीमा पार से छिटपुट घटनाओं के माध्यम से पंजाब को अस्थिर करने के प्रयास हुए, पर लोगों ने इससे दूरी बनाए रखी। लेकिन ड्रग्स के मामलों में पकड़े गए युवकों और जेलों में बंद गैंग्स्टरों ने इनका काम आसान कर दिया। जेलों में ही इनके बीच बड़ा नेक्सस बन गया।
जेल नार्को टेररिज्म के नेक्सस को बढ़ावा देने का काम कर रही हैं इसका क्या अर्थ है?
नार्को टेररिज्म, गैंग्स्टर के फलन-फूलने में जेलें ही सबसे कमजोर कड़ी साबित हुई हैं। सुरक्षा एजेंसियां जब गैंग्स्टरों , आतंकियों या मादक पदार्थों के तस्करों को पकड़कर जेलों में डालती हैं तब वहां इनके आपस में संपर्क बनते हैं। फोन टेक्नोलाजी, वीपीएन ने इनका काम और आसान कर दिया है। इसलिए सबसे ज्यादा ध्यान जेलों की ओर देने की ही जरूरत है। हमने भी गृह मंत्रालय को लिखा था कि अधिकांश सिक्योरिटी जेलें वहां बनाई जाएं, जहां टावर आदि न हों ताकि जिन लोगों को सजा हो जाए, उनका बाहरी संपर्क टूट जाए। जम्मू में ऐसी एक जेल बनाई जा रही है। बठिंडा जेल बनाते समय भी इन बातों को ध्यान में रखा गया था। असल में जेलों को लेकर बड़े सुधार की आवश्यकता है। इनकी सुरक्षा पैरामिलिट्री फोर्स को दी जानी चाहिए, जिन्हें हर छह महीने बाद बदल दिया जाए। अन्यथा अंदर बैठे गैंगस्टर जेल कर्मियों को ही धमकाते रहते हैं।
पंजाब में तो सीमा पार से मिल रही सहायता इसके फलने-फूलने का कारण बनी है, परंतु दूसरे राज्यों में यह क्यों बढ़ रहा है?
नार्थ ईस्ट में भी यही हाल है। वहां भी पुराने आतंकी ग्रुप हैं, जिन्हें मदद देकर अस्थिरता पैदा करने का प्रयास किया जाता है। मादक पदार्थों के व्यापार से पैसा एकत्रित करके आतंकियों को हथियारों आदि के लिए देने के कारण ही यह बढ़ रहा है। इसलिए बड़े पैमाने पर मादक पदार्थों का कारोबार बढ़ाया जा रहा है।
हर राज्य ने आतंकियों, तस्करों आदि को पकड़ने के लिए एंटी गैंग्स्टर, एंटी नारकोटिक्स आदि अलग-अलग विंग बनाए हैं , फिर भी हम इन्हें क्यों नहीं रोक पा रहे?
आतंकियों, नशा तस्करों ,गैंग्स्टरों को पकड़ना ही काफी नहीं होता। ये बार-बार जमानत पर रिहा होकर आ जाते हैं और फिर से वही अपराध करने लगते हैं। दरअसल इनमें खाकी का कोई खौफ नहीं है। आइपीसी को हटाकर नए बनाए गए बीएनएस में जांच में तेजी का प्रविधान किया गया, लेकिन असल में राज्यों को एनआइए एक्ट की जगह एसआइए बनाने की जरूरत है, जिसमें न केवल जांच, सुनवाई आदि के विशेष प्रविधान हैं, बल्कि अभियोजन के भी विशेषज्ञ हैं। संरक्षित गवाह का भी प्रविधान है, जो पर्दे के पीछे रहकर ही गवाही देते हैं ताकि उनकी पहचान न हो सके। ड्रग्स आदि के केसों के लिए विशेष अदालतें बनानी चाहिए, जिसमें हर रोज सुनवाई हो और सजा पाने वालों को दूर-दराज के क्षेत्रों की जेलों में डाला जाए। इसी से आतंक का यह ईको सिस्टम टूटेगा। हमें हर घटक को ध्वस्त करना होगा। उनके फंडिंग के स्रोत भी इसमें शामिल हैं।
आपने कहा कि खाकी का डर होना जरूरी है, तो क्या आप योगी माडल की बात कर रहे हैं?
बात कानून के भय की है। एनआइए में जिस प्रकार से जांच, विशेष अदालतें और सजा का प्रविधान किया गया है, वह काफी है। इसके परिणाम भी सामने आने लगे हैं। एनआइए की तर्ज पर जम्मू कश्मीर में एसआइए बनाई गई, जिसमें इस नेक्सस से जुड़े सपोर्ट सिस्टम जिसमें वकील, सोशल मीडिया के लोग आदि भी आते हैं, उन पर भी शिकंजा कसा गया। पत्थरबाजी की घटनाओं को रोकने के लिए हमने इसी ईको सिस्टम को तोड़ा ।
क्या अब जम्मू कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं होती हैं? हमें केवल कुछ लोगों को ही सजा देनी है, बाकियों को उसका डर ही अपराधों से दूर रखेगा। इसलिए मैं कह रहा हूं कि हर राज्य को इस नेक्सस को तोड़ने के लिए एनआइए की तर्ज पर एसआइए बनानी चाहिए। एफएटीएफ ने अपनी रिपोर्ट में आतंकी फंडिंग के लिए क्रिप्टो करंसी के इस्तेमाल पर चिंता जताई है।
क्या एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बचने के लिए क्रिप्टो करंसी के माध्यम से टेरर फंडिंग हो रही है?
देखिए, किसी चीज की फिजिकल उपस्थिति हो तो उसे पकड़ना आसान होता है, पर जो चीज है ही नहीं, उसका क्या करें? निश्चित रूप से यह जांच एजेंसियों के लिए बड़ी मुश्किल है। रामेश्वरम के एक कैफे में हुए बम धमाके की जांच में क्रिप्टोकरंसी के जरिए फंडिंग का पता चला। अब प्ले स्टोर आदि पर आसानी से मिलने वाली चीज को रेगुलेट करने के लिए रेगुलेटरी सिस्टम बनाना पड़ेगा। |