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बाबा नीम करोली का विशाल भंडारा आज, 50 हजार से ज्यादा लोग करेंगे प्रसाद ग्रहण

cy520520 2025-11-28 14:37:03 views 178

  

बाबा नीम करोली महाराज आश्रम में पूजन करते डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक।



संवाद सूत्र, टूंडला (फिरोजाबाद)। बाबा नीम करोरी महाराज के दामाद जगदीश प्रसाद भटेले ने बताया कि बाबा के प्राकट्योत्सव पर शुक्रवार को विशाल भंडारे का आयोजन मंदिर के निकट किया जाएगा। इसके देश भर से 50 हजार श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

डेढ़ बीघा जगह में वाहन पार्किंग बनवाई गई है। तीन बीघा जगह और पंडाल में टाट पट्टी बिछा कर लोगों को प्रसाद खिलाया जाएगा। एक बार में दो हजार से अधिक लोग प्रसाद ग्रहण कर सकेंगे। ऐसे लोग जो जमीन पर नहीं बैठ सकते उनके लिए कुर्सी-मेज की व्यवस्था की गई है।  

  
बाबा ने दिया जीवन

मूल रूप से नैनीताल के रहने वाले डा. निर्मल ने बाबा नीम करोरी महाराज के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कोरोना काल के बाद से वह कनाडा में रहते हैं। वर्ष 1950 में जब उनका जन्म हुआ तब उनके शरीर में कंपन नहीं हो रहा था। कोई भी अंग काम नहीं कर रहा था।

स्वजन गोद में लेकर रो रहे थे। इस बीच बाबा नीम करोरी महाराज उनके घर पहुंचे। वह तख्त पर बैठ गए। उन्होंने मुझे अपने लिटाया और अपने पैर के दाहिने अंगूठे से मेरे होठों को छुआ।

अंगूठे के स्पर्श के बाद शरीर में हलचल शुरू हो गई। यह उनके जीवन का साक्षात चमत्कार था।

  
आगरा में बस गए थे बाबा नीम करोरी

बाबा नीम करोरी महाराज के नाती डा. धनंजय शर्मा ने बताया कि 13 वर्ष तक उन्हें अपने बाबा नीम करोरी महाराज का सानिध्य मिला था। 1973 में उन्होंने शरीर छोड़ा था। धनंजय ने बताया कि बाबा उनसे कहते थे- तुम डाक्टर बनोगे।

उनकी कृपा से वह सरकारी डाक्टर बन गए थे। अब सेवानिवृत होने के बाद वह उन्हीं का चिंतन कर रहे हैं।

  
बाबा महाराज को बाल्यकाल से थी अध्यात्म में रुचि

बाबा नीम करोरी महाराज के दामाद जगदीश प्रसाद भटेले ने बताया कि बाबा की बाल्यकाल से ही अध्यात्म में रुचि थी। वह 17 वर्ष की आयु में अकबरपुर से गुजरात चले गए थे। वहां कुछ दिन ठहरने के बाद फर्रूखाबाद आ गए।

वहां तालाब में खड़े होकर तपस्या की थी। वहीं से उन्हें सिद्धि की प्राप्ति हुई। कोई भी उनसे कुछ मांगता था, वह तुरंत दे देते थे। वहीं उन्होंने हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की। वहां तमाम लोग उनके शिष्य बन गए। बाद में वह उत्तराखंड के कैंचीधाम में आश्रम की स्थापना की।
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