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भारत और पाकिस्तान, आपसी लड़ाई को क्रिकेट के ...

deltin55 2025-10-3 16:27:25 views 555


दुबई में खेले गए एशिया कप फाइनल में भारत और पाकिस्तान के बीच दुश्मनी के नए तेवर दिखे. जो हुआ, उसने फिर दिखाया कि जब ये दोनों देश आपस में क्रिकेट खेलते हैं, तो यह बस खेल नहीं रह जाता है.  
पिछले सप्ताह भारत और पाकिस्तान के बीच एशिया कप का फाइनल खेला गया. मैच में भारत की जीत हुई. यह मैच इस बात का भी गवाह बना कि किस तरह ये दोनों धुर प्रतिद्वंद्वी देश क्रिकेट समेत हर चीज को दशकों से चली आ रही अपनी दुश्मनी का अखाड़ा बना देते हैं.  




  
भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट मैच को एक बड़ी भिडंत की तरह देखा जाता रहा है. एक "युद्ध" जैसा, जहां देश के गौरव के लिए जीत जरूरी मानी जाती है.  
  
हालांकि, दुबई में हुए टूर्नामेंट में क्रिकेट पीछे कहीं ओझल हो गया. दोनों देशों के बीच हुए एक सशस्त्र संघर्ष को लेकर दोनों ओर के नेताओं ने तनाव भड़काया.  
  
90 मिनट के इंतजार के बाद ट्रॉफी के बिना लौटी भारतीय टीम  
टूर्नामेंट की शुरुआत से पहले भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान सूर्य कुमार यादव ने पाकिस्तान के नेता मोहसिन नकवी और पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान सलमान अली आगा के साथ हाथ मिलाया और फोटो खिंचाई. इसकी भारत में काफी आलोचना हुई.  




  
नकवी एशियाई क्रिकेट परिषद (एसीसी) के प्रमुख होने के साथ ही पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) के अध्यक्ष भी हैं. वह पाकिस्तान के गृहमंत्री भी हैं.  
  
इस प्रकरण के बाद भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ियों के बीच टूर्नामेंट के 19 दिनों में यह दोस्ताना रुख नहीं दिखा. भारतीय टीम ने फाइनल समेत तीनों मैचों में पाकिस्तानी खिलाड़ियों के साथ हाथ मिलाने से इंकार कर दिया.  
  
जीत के जश्न में अक्रामकता, बहिष्कार की धमकियों और विरोध प्रदर्शनों ने माहौल को और अधिक तनावपूर्ण बनाने का काम किया. हालांकि, एशिया कप का सबसे बड़ा स्कैंडल तब सामने आया जब दुबई में खेले गए फाइनल मैच में भारत ने पाकिस्तान को पांच विकेट से हरा दिया. जीत के बाद भारतीय खिलाड़ियों ने नकवी से ट्रॉफी और मेडल लेने से इंकार कर दिया.  




  
जवाब में पाकिस्तानी मंत्री भी कथित तौर पर अड़े रहे कि पुरस्कार वितरण उनके हाथों ही होगा. दोनों पक्ष अपने-अपने रुख पर अड़े रहे और इसकी वजह से पुरस्कार वितरण समारोह 90 मिनट देरी से शुरू हुआ. आखिरकार, एसीसी ने ट्रॉफी को पोडियम से हटा दिया और भारतीय टीम के हाथ ट्रॉफी आई ही नहीं.  
  
नरेंद्र मोदी ने क्रिकेट फील्ड पर भी 'ऑपरेशन सिंदूर' को सराहा  
इस बीच भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीम की जीत को 'ऑपरेशन सिंदूर' से जोड़ते हुए उसे सराहा. भारत ने कश्मीर में हुए आतंकी हमले के बाद मई में पाकिस्तानी ठिकानों पर बमबारी की थी, जिसे 'ऑपरेशन सिंदूर' नाम दिया गया. मोदी ने अपनी पोस्ट में लिखा, "खेल के मैदान पर भी ऑपरेशन सिंदूर. नतीजा भी वैसा ही रहा, भारत की जीत हुई."  




  
इसपर पाकिस्तानी मंत्री नकवी ने पलटवार किया. उन्होंने एक्स पर लिखा, "अगर युद्ध ही जीत का आपका पैमाना था, तो इतिहास में पहले ही पाकिस्तान के हाथों आपकी अपमानजनक हारें दर्ज हैं. कोई क्रिकेट मैच सच को बदल नहीं सकता. खेल में युद्ध को घसीटना केवल हताशा को सामने लाता है और खेल भावना का अपमान करता है."  
  
अब और 'क्रिकेट डिप्लोमेसी' नहीं?  
भारत और पाकिस्तान के बीच अतीत में एक ऐसा दौर भी था, जब क्रिकेट के प्रति उनके प्रेम का इस्तेमाल आपसी रिश्तों में जमी बर्फ को पिघलाने के लिए किया जाता था.  

  
पाकिस्तानी नेता और जनरल जिया-उल-हक ने 1987 में भारत के जयपुर में अपनी यात्रा के दौरान "क्रिकेट डिप्लोमेसी" का इस्तेमाल किया. उस समय सैन्य तनाव अपने चरम पर था. उनके बाद जनरल परवेज मुशर्रफ ने भी साल 2005 में भारत यात्रा के लिए क्रिकेट मैच को ही बहाना बनाया था.  
  
'ऑपरेशन सिंदूर' पर बॉलीवुड में फिल्म बनाने की होड़  
  
दक्षिण एशिया में शांति एवं सुरक्षा मामलों की भारतीय विशेषज्ञ राधा कुमार ने डीडब्ल्यू को बताया, "भारत- पाकिस्तान के बीच शांति प्रक्रिया में क्रिकेट डिप्लोमेसी ने अहम भूमिका निभाई है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब दोनों देशों के बीच की दुश्मनी में क्रिकेट को भी शत्रुता का हिस्सा बना दिया गया है."  

  
कराची के खेल पत्रकार फैजान लखानी भी राधा कुमार से सहमति जताते हैं. उनका कहना है, "यह बहुत ही अप्रत्याशित और दुर्भाग्यपूर्ण है कि खेल के मैदान को सियासी नफरत फैलाने का मंच बनाया जा रहा है." लखानी ने इस बात पर जोर दिया कि "2004 से 2008 के बीच क्रिकेट के खेल से लोगों को नई उम्मीद मिल रही थी. इसी के कारण अब राजनीति करने वाले लोगों के निशाने पर खेल हैं क्योंकि उन्हें डर है कि खेल, नफरत की उनकी इस कहानी को नष्ट कर सकता है."  

  
एक निर्णायक पहलू बना मोदी का ट्वीट  
भारतीय टीम ने 2008 के बाद से पाकिस्तान जाने से इंकार कर दिया था. यह फैसला मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद लिया गया, जिसके बारे में भारतीय अधिकारियों का मानना है कि उसे पाकिस्तान ने अंजाम दिया था. इसके अलावा दुनिया की सबसे बड़ी और अमीर क्रिकेट लीग मानी जाने वाली इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में भी पाकिस्तानी क्रिकेटरों के हिस्सा लेने पर बैन लगा हुआ है.  
  
भारत प्रशासित कश्मीर में इस साल अप्रैल में हुए हमले के लिए भी नई दिल्ली इस्लामाबाद को ही दोषी मानती है. इस हमले में 26 सैलानियों की जान गईं थी. भारतीयों में इस हमले को लेकर काफी गुस्सा नजर आया.  

  
हालांकि, इस्लामाबाद ने इस हमले में अपनी भूमिका से इंकार किया है.  
  
पाकिस्तान 'शांति' पर बातचीत को तैयार, तो भारत के लिए 'आतंकवाद' है मुद्दा  
  
पाकिस्तान में भी गुस्सा और हताशा का माहौल है. प्रशंसकों और समीक्षकों का कहना है कि भारत ने पाकिस्तानी क्रिकेटरों के साथ हाथ न मिलाकर क्रिकेट का राजनीतिकरण किया है.  
  
कई लोगों का यह भी कहना है कि भारत ने अपनी जीत हिंसा के पीड़ितों और भारतीय सेना को समर्पित की, जिससे इस भावना को और बल मिला कि खेल राजनीतिक मुद्दों में उलझ गया है.  

  
पाकिस्तानी पत्रकार फैजान लखानी ने कहा, "एक आदर्श स्थिति में पाकिस्तानी खिलाड़ियों के किसी गलत व्यवहार के लिए मैं उनकी भी निंदा करता. मगर अब अति हो गई है. हम किसी एक बोर्ड को ये इजाजत नहीं दे सकते कि वे हमें तंग करें और दुनिया को भी हमारा अपमान करने के लिए उकसाते रहें. यह समय था कि ट्रोल्स और परेशान करने वालों को उसी भाषा में जवाब दिया जाए, जिसे वे समझते हैं. जाहिर तौर पर अगर हमारे खिलाड़ियों ने भी मैदान पर और अच्छा खेला होता, तो यह और भी करारा जवाब होता."  

  
सैन्य कार्रवाई में भारत आगे लेकिन कूटनीति में पाकिस्तान को मिली जीत  
  
पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के पूर्व प्रमुख नजम सेठी कहते हैं कि 'मैदान पर भारतीयों की हर एक अस्वीकार्य राजनीतिक हरकत' का पाकिस्तान ने भरपूर जवाब दिया. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "लेकिन मोदी के ट्वीट ने आधिकारिक तौर पर खेल में राजनीति का घालमेल कर दिया. इसके बाद आईसीसी और एससीसी उतने प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पाएंगे."  
  
खेलों में उभरता हुआ राष्ट्रवाद  

पूर्व भारतीय कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन का मानना है कि जब तक दोनों देशों के बीच संबंध नहीं सुधर जाते, तब तक भारत और पाकिस्तान को एक-दूसरे के साथ नहीं खेलना चाहिए. उन्होंने कहा, "मैं इस तरह के टूर्नामेंटों में चुनिंदा भागीदारी करना, लेकिन द्विपक्षीय संबंधों को निलंबित रखना असंगत मानता हूं. मेरा मानना है कि जब तक राजनीतिक समस्याएं सुलझ नहीं जातीं, तब तक इस तरह के सभी क्रिकेट संपर्कों को रोक देना चाहिए."  

  
पाकिस्तान को लेकर मोदी इतने आक्रामक क्यों हैं?  
  
पूर्व क्रिकेटर और क्रिकेट प्रशासक वेंकट सुंदरम ने भी भारत और पाकिस्तान की सरकारों से गुजारिश की है कि वे अपने मुद्दों को सुलझाएं, बजाय इसके कि उनसे खेलों पर असर हो. सुंदरम ने कहा, "क्रिकेट और राष्ट्रवाद के एक-दूसरे पर जटिल रूप से असर छोड़ने के कारण दोनों देशों के बीच की राजनीति ज्यादा राष्ट्रवादी बन गई है और क्रिकेट का अधिक राजनीतिकरण हो गया है."  

  
कराची के पत्रकार लखानी का भी यही विचार है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "खेलों को राजनीति से हमेशा अलग रखना चाहिए. जिस घड़ी आप खेल में राजनीति घसीटते हैं, तो आप उसे बहुत गंदा बना देते हैं."









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