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देश का इकलौता गांव: एक ही जगह हर जातियों के अलग-अलग मंदिर, पूजा के लिए कोई रोक-टोक नहीं

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सीतामढ़ी जहां अलग-अलग जातियों के हैं दर्जनभर मंदिर। फोटो जागरण



अजय कुमार गुप्ता, मेसकौर (नवादा)। बिहार के नवादा जिले के मेसकौर प्रखंड अंतर्गत सीतामढ़ी में दशकों से प्रत्येक वर्ष अगहन पूर्णिमा के अवसर पर साप्ताहिक मेला का आयोजन किया जाता है। यह मेला नवादा जिले मे सर्वाधिक राजस्व देने वाला मेला है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

वैसे सीतामढ़ी गांव जगत जननी माता सीता की निर्वासन स्थली और लव-कुश की जन्मस्थली के रूप में विख्यात है। इन सबके अलावा यह गांव एक अलग मायने में अनोखा है।

संभवतः यह देश का पहला गांव होगा, जहां अलग-अलग जातियों के एक दर्जन से अधिक मंदिर एक ही स्थान पर मौजूद हैं। सभी समाज के मंदिर अलग-अलग बने हुए हैं। जहां समाज के लोग पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं।
मेला को लेकर मंदिरों की रंगाई-पुताई शुरू

अगहन पूर्णिमा के एक सप्ताह पहले से ही सभी मंदिरों के समिति के द्वारा मेला प्रारंभ होने से पूर्व मंदिरों का रंग रोगन का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है ताकि मेला से पहले मंदिरों को आकर्षक रूप दिया जा सके।

खास बात यह है कि मंदिर समिति अपने मंदिर में किसी के भी प्रवेश पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाती है, यानी आपसी सौहार्द का संदेश यहां से मिलता है। सभी श्रद्धालु मंदिर पहुंचकर दर्शन और पूजन करते हैं।

यहां आज तक कभी किसी जाति के लोगों में तकरार जैसी नौबत नहीं आई है। जातिगत मंदिरों के साथ एक अच्छा पहलू यह जुड़ा हुआ है कि यहां उसी जाति के पुजारी होते हैं। मंदिर सिर्फ पूजन के हो काम नहीं आता बल्कि यहां से सामाजिकता का भी बखूबी निर्वाह किया जाता है।
सामाजिक सम्मेलन से आपसी पहचान को मजबूत करने का मिलता संदेश

अगहन पूर्णिमा के अवसर पर सामाजिक सम्मेलन आयोजित कर आपसी पहचान को मजबूती देने का काम भी किया जाता है। इसके साथ ही सीतामढ़ी मेला में आने वाले जातिगत लोग वैवाहि तय कर रिश्ताबंदी को भी सुदृढ़ करते हैं।

सीतामढ़ी में मुख्य रूप से माता सीता का मंदिर एकलौता ऐसा मंदिर है जहां सभी जाति के लोग पूजने को आते हैं। सीता मां में सभी की अपार आस्था है। इसके अलावा अन्य सभी मंदिरों में उसी जाति के लोग पूजा-अर्चना करते हैं। वैसे किसी जाति का कोई भी व्यक्ति किसी अन्य जाति के मंदिर में बेहिचक आ-जा सकते हैं।
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