रिश्वत लेते ASI को हल्की सजा पर भड़के जज (प्रतीकात्मक फोटो)
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा पुलिस की जवाबदेही और अनुशासन व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अदालत ने उस घटना पर सख्त रुख दिखाया जिसमें एक सहायक उप-निरीक्षक (एएसआई) का रिश्वत लेते हुए वीडियो वायरल हुआ था, फिर भी उसे न केवल मामूली सजा दी गई बल्कि उसकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) में “ईमानदार और विश्वसनीय अधिकारी” जैसी सर्वोत्तम टिप्पणियां भी दर्ज की गईं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
जस्टिस जगमोहन बंसल की पीठ के समक्ष यह मामला उस समय आया जब एएसआई बिजेंद्र सिंह ने 20 अगस्त 2025 के एक आदेश को चुनौती दी। याचिकाकर्ता की एसीआर को डाउनग्रेड किया गया था, जो 10 अक्तूबर 2020 को दी गई निंदा की सजा के आधार पर किया गया।
बिजेंद्र सिंह का वीडियो वर्ष 2020 में वायरल हुआ था, जिसमें वह बिना हेलमेट दोपहिया वाहन चला रहे एक नाबालिग लड़के को रोककर उसके पीछे बैठी महिला से 1,000 रुपये लेते हुए नजर आया विभागीय जांच में यह आरोप सिद्ध हो गया कि उसने अवैध रूप से पैसे लिए।
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हालांकि, अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए भी कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की और केवल निंदा की सजा देकर कार्यवाही समाप्त कर दी। यही नहीं, उसी अवधि यानी अप्रैल 2020 से दिसंबर 2020 की एसीआर में उसी अधिकारी ने बिजेंद्र सिंह को “ईमानदार और भरोसेमंद” बताते हुए सर्वोत्तम टिप्पणियां दर्ज कर दीं।
हाईकोर्ट ने इस विरोधाभास को गंभीर मानते हुए कहा कि एक ओर रिश्वत लेने का दोष साबित हुआ और दूसरी ओर रिकॉर्ड में उसे एक आदर्श अधिकारी के रूप में दर्ज कर दिया गया। अदालत ने टिप्पणी की कि यह पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली और आंतरिक जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है।
जस्टिस बंसल ने कहा कि ऐसे मामलों में विभागीय जांच का उद्देश्य मात्र औपचारिकता पूरी करना नहीं होना चाहिए, बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ स्पष्ट और कड़ा संदेश देना चाहिए। अदालत ने हरियाणा के डीजीपी को निर्देश दिया कि वे उस पुलिस अधीक्षक के आचरण और आदेशों की जांच करें, जिन्होंने न केवल मामूली सजा दी बल्कि एसीआर में विरोधाभासी टिप्पणियां दर्ज कीं। डीजीपी को 14 अक्तूबर तक इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है।
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