जागरण संवाददाता, सोनभद्र। काशी राजघराना की तरह सोनभद्र में विजयगढ़ राजघराने की रामलीला आज भी लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र है। विजयगढ़ राजघराने का रामलीला मंचन श्रीरामचरित मानस में वर्णित समय अगहन के शुक्ल पक्ष में आयोजित की जाती है। इस बार यह लीला 20 नवंबर के एक्कम तिथि से शुरू की जाएगी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
विजयगढ़ राज घराने का यह रामलीला वर्ष 1903 में शुरू किया गया था। जिसे रानी पृथ्वीराज कुंवर ने प्रारंभ कराया था। बताया कि पूर्व में नरसिंह भवन के सामने हनुमान मंदिर प्रांगण स्थित तालाब के भीटे पर मंचन का कार्य किया जाता था। समय के साथ जगह अभाव में यह मंचन अब नरसिंह भवन प्रांगण में होने लगा। वर्ष 1971 के पहले इस रामलीला में स्थानीय कलाकार मंचन करते थे, लेकिन इसके बाद से बाहर के कलाकार बुलाने का कार्य शुरू हो गया।
इन-इन दिनों में आयोजित होगा कार्यक्रम
नरसिंह भवन प्रांगण में होने वाले ऐतिहासिक धनुष यज्ञ रामलीला आज से प्रारंभ होगी। रामलीला कमेटी के अध्यक्ष देवी प्रसाद पांडेय ने बताया कि 20 नवंबर को देर शाम मुकुट पूजन व नारद मोह के साथ रामलीला का मंचन आरंभ हो जाएगा। 21 नवंबर को श्रीराम जन्म, 22 नवंबर को ताड़का वध, 23 नवंबर को फुलवारी, 24 नवंबर को धनुष यज्ञ, 25 नवंबर को श्रीराम सीता विवाह के पश्चात 26 नवंबर को राजा हरिश्चंद्र के नाटक मंचन के साथ रामलीला का समापन हो जाएगा। जय श्री काशी विश्वनाथ रामलीला मंडल क्षेत्र काशी लोहता वाराणसी से 20 सदस्यीय रामलीला कलाकारों की टीम कमेटी के मैनेजर चंदन पांडेय के नेतृत्व में बखूबी मंचन करेगी।
धनुष यज्ञ को देखने के लिए जुटती है हजारों की भीड़
नरसिंह कोठी में चलने वाले रामलीला में सबसे आकर्षण का केंद्र धनुष यज्ञ होता है। इसका मंचन देखने के लिए आसपास के कई गांव के लोग राजभवन पहुंचते हैं। यज्ञ के बाद रामगढ़ में रथयात्रा निकाली जाती है। जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं। पहले धनुष यज्ञ के दिन सार्वजनिक अवकाश भी घोषित किया जाता था, लेकिन समय के साथ यह बंद हो गया।
रामलीला के समय राजपरिवार रहता है कोठी में मौजूद
ऐतिहासिक रामलीला शुरू होने से पहले राजपरिवार नरसिंह कोठी में अपना ठिकाना बना लेता है। अमूमन राजपरिवार के अधिकांश सदस्य बाहर ही रहते हैं। जब तक रामलीला सम्पन्न नहीं होता परिवार के सदस्य यहीं पर रहते हैं। राजा चंद्र विक्रमपद्म शरण शाह इस दौरान हर गतिविधि पर नजर रखते हैं।
दादी मां रानी पृथ्वीराज कुंवर ने इस परंपरा को शुरू किया था। जिसको राजपरिवार बदस्तूर जारी रखे हुए है। प्रयास रहता है कि इस परंपरा में किसी तरह की कोई कमी न आने पाए।
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- चंद्र विक्रम पद्म शरण शाह, राजा विजयगढ़। |