जागरण संवाददाता, आगरा। कभी सिगरेट, बीड़ी पीने से होने वाली क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) की समस्या अब वायु प्रदूषण से होने लगी है। एसएन मेडिकल कालेज में पहुंच रहे सीओपीडी से पीड़ित 50 प्रतिशत मरीज ऐसे हैं जो सिगरेट और बीड़ी नहीं पीते हैं, लेकिन उनकी सांस नलिकाओं में स्थायी सिकुड़न आ चुकी है। सर्दी में सीओपीडी की समस्या और बढ़ जाती है। बुधवार को सीओपीडी दिवस पर चिकित्सक लोगों को बीमारी से बचाव और इलाज के लिए जागरूक करेंगे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
एसएन मेडिकल कालेज के रेस्पिरेटरी विभाग के डा. जीवी सिंह ने बताया कि ओपीडी में 300 से अधिक मरीज प्रतिदिन आते हैं। सर्दियों में ओपीडी में 25 से 30 प्रतिशत मरीज सीओपीडी के होते हैं। पहले ऐसे लोग जो लंबे समय तक सिगरेट व बीड़ी पीते हैं उनकी सांस नलिकाओं में स्थायी सिकुड़न आ जाती थी।
सर्दियों में सिकुड़न बढ़ने लगती है और खांसी, बलगम के साथ ही सांस फूलने की समस्या होती है। पिछले पांच वर्षों से 35 से 50 की आयु के मरीज जिनमें सीओपीडी की पुष्टि हो रही है, उनकी काउंसलिंग करने पर सामने आ रहा है कि वे किसी भी तरह का धूमपान नहीं करते हैं। इसके बाद भी सीओपीडी की समस्या हो रही है।
ये लोग ऐसी जगह पर रहते हैं जहां वायु प्रदूषण ज्यादा रहता है। बाहर ज्यादा घूमते हैं। प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने से सांस नलिकाओं में सिकुड़न की समस्या होने की आशंका बढ़ जाती है। 50 प्रतिशत नान स्माकर्स सिगरेट, बीड़ी सहित धूमपान न करने वाले में सीओपीडी की समस्या मिल रही है।
इन मरीजों को प्रदूषण से बचने की सलाह देने के साथ ही उपचार के लिए ब्रोंको डायलेटर इन्हेलर दिए जाते हैं। इससे सांस संबंधी समस्या नहीं होती है। दुनियाभर के 17 प्रतिशत सीओपीडी के मरीज भारत में हैं और सीओपीडी से सबसे अधिक 27 प्रतिशत मौत भारत में हो रही हैं। इसका कारण सीओपीडी के मरीजों का बीच में इलाज बंद कर देना और सही दवा नहीं लेना है।
सीओपीडी के मरीजों में हार्ट अटैक का खतरा
सीओपीडी के मरीजों में आक्सीजन का स्तर कम होने लगता है। इससे हृदय पर दबाव ज्यादा बढ़ता है और हार्ट अटैक का खतरा सामान्य मरीजों की तुलना में अधिक रहता है। जिन मरीजों को सीओपीडी की समस्या है, उन्हें सर्दियों में हार्ट अटैक होने की आशंका ज्यादा रहती है।
ये हैं लक्षण
-खांसी और बलगम की समस्या बनी रहना।
-सांस फूलना, सीने में जकड़न महसूस होना।
-थकान महसूस होना, कार्य क्षमता प्रभावित होना।
-फेफड़ों में संक्रमण, वजन कम होना। |