अलगाववाद वाली 25 किताबों पर पाबंदी, सुनवाई के लिए बनेगी तीन जजों की पीठ (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। जम्मू कश्मीर व लद्दाख हाई कोर्ट ने मंगलवार को प्रदेश सरकार द्वारा 5 किताबों पर प्रतिबंध लगाने व उन्हें जब्त करने के दिए गए फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए तीन जजों की एक विशेष पीठ बनाने का निर्णय लिया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
बता दें कि जम्मू कश्मीर सरकार ने पांच अगस्त 2025 को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएनएसएस), 2023 के तहत कश्मीर की राजनीति, सामाजिक व अन्य मुद्दों से संबंधित 25 किताबों पर प्रतिबंध लगाया है। गृह विभाग द्वारा जारी और आधिकारिक गजट में प्रकाशित इस जब्ती आदेश में, सूचीबद्ध किताबों पर आतंकवाद को महिमामंडित करने, सुरक्षा बलों की छवि खराब करने, ऐतिहासिक तथ्यों को गलत दिखाने और अलगाववाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया है।
यह दावा किया गया है कि यह किताबें जम्मू-कश्मीर में युवाओं को राष्ट्रविरोधी ,अलगाववादी गतिविधियों के लिए उकसाते हुए उनके भीतर कट्टरपंथी मानसिकता को पैदा करती हैं। प्रतिबंधित किताबों में अरुंधति राय की आजादी, संवैधानिक विशेषज्ञ एजी नूराणी की द कश्मीर डिस्प्यूट 1947-2012 और डा सुमंत बोस की कश्मीर एट द क्रासरोड्स शामिल हैं।
सूची में अन्य लेखकों में हफसा कंजवाल, अतहर जिया, डेविड देवदास, , सीमा काजी और तारिक अली शामिल हैं। इनमें से कई किताबें आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, रूटलेज और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस जैसे प्रमुख शैक्षणिक प्रकाशन संस्थानों द्वारा प्रकाशित की गई हैं। जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा 25 किताबों पर पाबंदी के खिलाफ रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल कपिल काक, राजनीतिक विश्लेषक डा. सुमंत बोस, डॉ. राधा कुमार और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह की ओर से वकील वृंदा ग्रोवर ने याचिका दायर की है।
उन्होंने पांच अगस्त के सरकारी नोटिफिकेशन (एसओ 203) को चुनौती दी है, जिसमें कथित रूप से गलत बातें और अलगाववाद फैलाने के आरोप में 25 किताबों को प्रतिबंधित करते हुए उन्हें जब्त करने के लिए कहा है बीएनएसएस की धारा 99 और 528 के तहत दायर अपनी याचिका में, लेखकों और अन्य याचिकाकर्ताओं का कहना है कि जब्ती का आदेश मनमाना और बिना किसी कारण का है, और यह धारा 98 की कानूनी शर्तों को पूरा नहीं करता। supaul-crime,Supaul news,Neeraj Kumar Singh Bablu,death threat,Bihar minister,FIR filed,objectionable video,Rahul Gandhi threat,Congress legal cell,Araria antisocial elements,IT Act case,Bihar news
उनका तर्क है कि नोटिफिकेशन में सिर्फ कानूनी भाषा और मनमाने दावे दोहराए गए हैं, इसमें किताबों के उन विशिष्ट अंशों का उल्लेख नहीं है, जो कथित रूप से अलगाववाद को भड़काते हैं या राष्ट्रीय एकता को खतरा पैदा करते हैं। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के नारायण दास इंदुराखया बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1972) के फैसले का हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया था कि बिना ठोस आधार बताए कानूनी प्रावधानों का हवाला देना कोई तर्कसंगत आदेश नहीं है।
याचियों के अनुसार, बीएनएसएस में तय प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को प्रशासनिक शब्दों के लंबे-चौड़े बयानों से नहीं बदला जा सकता। उन्होंने कहा कि आदेश में तथ्यों, अंशों या सामग्री विश्लेषण का कोई संदर्भ नहीं है। याचिका में हरनाम दास बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अरुण रंजन चौधरी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामलों का भी हवाला दिया गया है, जिनमें कहा गया था कि जब्त करने के आदेश में प्रकाशनों के प्रभाव, परिणाम या प्रवृत्ति का विशिष्ट संदर्भ होना चाहिए।
सरकार ने प्रकाशनों को जब्त करने के लिए बीएनएसएस की धारा 98 का इस्तेमाल किया और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएसएस, 2023 की धारा 152, 196 और 197 का हवाला देते हुए कहा कि किताबें भारत की संप्रभुता और अखंडता को खतरे में डालती हैं।
आदेश में अधिकारियों को नोटिस के परिशिष्ट में सूचीबद्ध सभी भौतिक और डिजिटल प्रतियां जब्त करने का अधिकार दिया गया है। जम्मू कश्मीर व लद्दाख उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के अरुण पल्ली के अनुसार बीएनएसएस की धारा 99 के तहत, ऐसी याचिकाओं के लिए तीन जजों के पैनल की आवश्यकता होती है, इसलिए बेंच बनाने के लिए जल्द ही आदेश जारी किया जाएगा।
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