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प्रशांत किशोर: दूसरों की जीत की स्क्रिप्ट लिखने वाला, खुद लिख पाएगा अपनी विजय गाथा? रणनीतिकार और राजनेता बनने में है काफी अंतर!

deltin33 2025-11-14 11:47:19 views 61

प्रशांत किशोर यानी PK, वो नाम जिसने 2014 में नरेंद्र मोदी के ऐतिहासिक चुनाव अभियान को नए सांचे में ढाला था। मोदी की जीत के पीछे उनकी रणनीति को “गेम चेंजर” माना गया। इसके बाद PK ने नीतीश कुमार से लेकर अरविंद केजरीवाल तक कई नेताओं को सत्ता की सीढ़ी चढ़ाई। लेकिन अब रणनीतिकार से नेता बने PK खुद बिहार के सियासी मैदान में हैं और इस बार “कैंपेन” नहीं कन्फ्रंटेशन उनका असली टेस्ट है। सवाल ये है कि जिसने दूसरों की जीत की स्क्रिप्ट लिखी, क्या वो अपनी विजय गाथा खुद लिख पाएगा? क्योंकि एग्जिट पोल का अनुमान साफ है कि बिहार चुनाव में जन सुराज पार्टी का “खाता भी नहीं खुलेगा”। ऐसे में लगता है, दूसरों के लिए राजनीतिक रणनीति बनाने और खुद राजनीति करने में काफी अंतर है।



PK का शुरुआती जीवन



किशोर का जन्म बिहार के सासाराम में रोहतास जिले के कोनार गांव में हुआ। बाद में वे बक्सर चले गए, जहां उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की। उनके पिता डॉक्टर श्रीकांत पांडे और माता सुशीला पांडे हैं। उनकी पढ़ाई लिखाई और पब्लिक हेल्थ के प्रति उनका जागरुकता ने उनके करियर की शुरुआत का रास्ता खोला।




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किशोर ने संयुक्त राष्ट्र के पब्लिक हेल्थ प्रोग्राम में काम करते हुए अपने करियर की शुरुआत की। 2011 तक वे इसी में रहे और उन्होंने योजना बनाना, प्रोग्राम का कॉर्डिनेशन करना और समुदाय की भागीदारी जैसे काम किए। इसके बाद उन्होंने राजनीतिक रणनीति बनाने का काम शुरू किया, तब तक वे किसी भी राजनीतिक दल से औपचारिक रूप से नहीं जुड़े थे। शुरू में वे 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में BJP के अभियान का समर्थन करते रहे।



2014 में चलाया BJP का चुनावी कैंपेन



2013 में, किशोर ने सिटिजन्स फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (CAG) को सह-स्थापना की, जो एक मीडिया और प्रचार कंपनी थी, ताकि 2014 लोकसभा चुनावों की तैयारी की जा सके। उन्होंने नरेंद्र मोदी के अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहां उन्होंने चाय पे चर्चा, 3D रैलियों, रन फॉर यूनिटी और मंथन जैसे कैंपेन को शुरू किया, साथ ही सोशल मीडिया प्रोग्राम भी चलाए। इस अभियान ने 2014 के आम चुनावों में BJP की पूर्ण बहुमत की जीत में योगदान दिया।



इस सफलता के बाद, किशोर ने भारत के कई दलों के लिए काम किया। वे 2015 में बिहार में नीतीश कुमार की महागठबंधन जीत में सहायक रहे और बाद में 2018 में JD(U) के उपाध्यक्ष बने। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, अरविंद केजरीवाल की AAP, पंजाब के अमरिंदर सिंह, आंध्र प्रदेश के Y.S. जगन मोहन रेड्डी, ममता बनर्जी की TMC, और एमके स्टालिन के DMK की भी मदद की।



PK ने रणनीतिकार से लिया रिटायरमेंट



2021 के पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु चुनावों के बाद, किशोर ने राजनीतिक रणनीति से रिटायरमेंट की घोषणा की। 2022 में उन्होंने अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी लॉन्च करने का संकेत दिया और उसके बाद बिहार में 3000 Km की पदयात्रा की। अक्टूबर 2, 2024 को उन्होंने औपचारिक रूप से जन सुराज पार्टी की घोषणा की, जिससे उनका चुनावी राजनीति में आधिकारिक प्रवेश हुआ।



ये तो था PK का रणनीतिकार से राजनेता बनने तक का सफर, लेकिन इस नए सफर में कई ट्विस्ट और टर्न भी हैं। प्रशांत किशोर ने अपने तान सालों के काम का हवाला देते हुए कहा, “तीन साल से मैंने (अपनी) हड्डी जला दी है।“ वे बिहार में JDU और RJD के अलावा एक नया फ्रंट बनने का दम तो भरते हैं, लेकिन उनकी तीन साल की इस मेहनत को लेकर तभी सवाल उठ गए, जब उन्होंने खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।



कहां कमजोर दिखे PK और उनकी जनसुराज



जन सुराज ने अपनी स्थापना के एक साल के भीतर इस विधानसभा चुनाव में 116 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए, हालांकि, बाद में तीन ने नामांकन वापस लिया और एक का नामांकन रद्द कर दिया गया।



प्रशांत किशोर कहते आए हैं कि वे उन लोगों के लिए एक नया विकल्प दे रहे हैं, तो बिहार में बदलाव चाहते हैं। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्या अलग किया, जो दूसरों ने नहीं किया, तो किशोर कहते हैं, “मैंने कठिन परिश्रम किया, और कुछ नहीं। मेहनत करके नीचे से अपनी पहचान बनाई, घर-घर गया।“



PK 2025 के चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाले नामों में से एक हैं। वे किसी खास उपनाम, अपनी कोई खास जाति या कोई विरासत नहीं रखते, लेकिन वे शिक्षा, बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दों पर सबसे मुखर आवाज माने जाते हैं, जिन्होंने 2025 के चुनावी विमर्श को काफी हद तक प्रभावित किया है।



शुरू में पकड़ी रफ्तार चुनाव के आखिर में पड़ी धीमी



उन्होंने दावा किया कि उनकी पार्टी के प्लेटफार्म पर रोजाना 30 करोड़ से ज्यादा लोग जन सुराज के वीडियो देखते हैं। प्रशांत किशोर का कहना है कि युवाओं में बदलाव की एक लहर दौड़ रही है, उनका आत्मविश्वास बिहार लौटे उन माइग्रेंट्स पर ज्यादा निर्भर है, जो दीपावली और छठ पूजा के दौरान वापस आए। किशोर का अनुमान है कि \“50 से 70 लाख\“ उनमें से बिहार में ही रुके हैं और कम से कम दो-तिहाई वोट उनकी पार्टी को ही देंगे।



पटना की राजनीतिक हलकों में कुछ लोग मानते हैं कि किशोर की रफ्तार \“शुरुआती उत्तेजना\“ के बाद \“कम हो गई\“ और चुनाव के अंतिम चरण में लड़ाई NDA और महागठबंधन के बीच ही सिमट के रह गई।



रही सही कसर 11 नवंबर दूसरे चरण की वोटिंग के बाद आए एग्जिट पोल ने पूरी कर दी, जिसमें ज्यादातर ने अनुमान लगाया कि हो सकता है प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी कहीं खाता भी न खोल पाए, हालांकि, एक पोल में उसे 2-4 सीटें मिलने की संभावना जरूरी जताई गई।



फिर भी असली तस्वीर तो 14 नवंबर को आने वाले नतीजों के बाद ही साफ होगी कि PK राजनीतिक डेब्यू सुपर हिट रहता है या फिर फ्लॉप होता है।



पिछले 11 सालों में प्रशांत किशोर ने डेटा, सोशल मीडिया और नई-नई तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, एम के स्टालिन, अमरिंदर सिंह, जगन मोहन रेड्डी और अरविंद केजरीवाल की मदद की है। कुछ हद तक यह काम इसलिए भी सफल हुआ, क्योंकि उनके पास मौजूदा संगठनात्मक ढांचा था। PK ने इसके उलट एक नया संगठन बनाया, वो भी बिहार जैसे राज्य में जहां असली मुद्दों पर जाति और धर्म ज्यादा हावी रहते हैं।
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