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Ghatshila By-Election: आंकड़ों की बिसात पर पिता की विरासत और पुरानी अदावत, सोमेश के सामने बड़ी चुनौती

LHC0088 2025-11-11 02:37:45 views 945

  

घाटशिला उपचुनाव में कड़ा मुकाबला। (जागरण)



जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। समय का पहिया घूम चुका है और घाटशिला विधानसभा का सियासी अखाड़ा एक बार फिर सज गया है।

नवंबर 2024 के विधानसभा चुनाव में जो दो चेहरे आमने-सामने थे, उनमें से एक अब यादों में है। तब झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कद्दावर नेता रामदास सोरेन ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बाबूलाल सोरेन को एक बड़ी शिकस्त दी थी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

आज, रामदास सोरेन के निधन के कारण हो रहे उपचुनाव में भाजपा के बाबूलाल सोरेन के सामने उनके बेटे सोमेश सोरेन हैं, जो अपने पिता की राजनीतिक विरासत को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
पिछली जीत का आईना

पिछले विधानसभा चुनाव के आंकड़े इस उपचुनाव की पटकथा लिख रहे हैं। नवंबर 2024 में हुए चुनाव में झामुमो के रामदास सोरेन ने 98,356 वोट हासिल कर शानदार जीत दर्ज की थी, जबकि भाजपा के बाबूलाल सोरेन को 75,910 वोटों से संतोष करना पड़ा था।

जीत का यह 22,446 वोटों का बड़ा अंतर इस बार झामुमो के लिए आत्मविश्वास का कारण है, तो वहीं भाजपा के लिए यह एक बड़ी चुनौती है, जिसे पाटने के लिए उसे प्रखंड-वार समीकरणों को साधना होगा।
प्रखंडों का गणित और मतों का मिजाज

हालांकि, चुनाव आयोग प्रखंड-वार आधिकारिक मत प्रतिशत जारी नहीं करता, लेकिन मतदान केंद्र-वार आंकड़ों का विश्लेषण पिछले चुनाव की तस्वीर बिल्कुल साफ कर देता है।

झामुमो की जीत का आधार मुसाबनी और घाटशिला के शहरी व अर्ध-शहरी इलाके बने थे। विश्लेषण के अनुसार, इन दोनों प्रखंडों में झामुमो को अनुमानतः 55 से 60 प्रतिशत वोट मिले थे। यहां मिली भारी बढ़त ने ही जीत का बड़ा अंतर पैदा किया था।

दूसरी ओर, डुमरिया और गुड़ाबांदा जैसे विशुद्ध ग्रामीण प्रखंडों में भाजपा का दबदबा रहा। इन क्षेत्रों में भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए अनुमानतः 55 प्रतिशत के करीब वोट हासिल किए थे। लेकिन यहां कुल मतदाताओं की संख्या शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम होने के कारण यह बढ़त झामुमो की बड़ी लीड को काटने में नाकाम रही।
इस बार की चुनौती: समीकरण वही, चेहरे नए

इस उपचुनाव में दोनों दलों के सामने पुरानी चुनौतियां नए रूप में खड़ी हैं। झामुमो प्रत्याशी सोमेश सोरेन के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने पिता की तरह ही शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 55% से अधिक के वोट शेयर को बनाए रखने की है। उन्हें सहानुभूति की लहर का फायदा तो है, लेकिन पिता की राजनीतिक विरासत का भारी बोझ भी उनके कंधों पर है।

झामुमो को यह सुनिश्चित करना होगा कि मुसाबनी और घाटशिला में उनकी बढ़त कायम रहे और डुमरिया-गुड़ाबांदा जैसे ग्रामीण इलाकों में भाजपा के प्रभाव को कम किया जा सके।

वहीं, भाजपा के बाबूलाल सोरेन के लिए यह चुनाव करो या मरो जैसा है। उन्हें पिछली हार के अंतर को पाटने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में अपने वोट प्रतिशत को और बढ़ाना होगा, साथ ही शहरी वोट बैंक में भी बड़ी सेंध लगानी होगी।

भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती झामुमो के पारंपरिक आदिवासी वोट बैंक में अपनी पैठ बनाना है, जो पिछले कई चुनावों से निर्णायक साबित होता आया है। इस चुनावी रण में झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) के रामदास मुर्मू की भूमिका भी अहम होगी, जो दोनों दलों के समीकरण बिगाड़ने का माद्दा रखते हैं।
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