सोनपुर मेले में हाथियों और पशुपालन के गौरवशाली इतिहास से जुड़ी विरासत अब यादों में
संवाद सहयोगी, सोनपुर(वैशाली)। हरिहर क्षेत्र में आयोजित होने वाला सोनपुर मेला कभी हाथियों और अन्य पशुओं के लिए प्रसिद्ध था। गाय, बैल और भैंसों के साथ-साथ हाथी इस मेले का मुख्य आकर्षण होते थे। कथाओं के अनुसार, यह स्थल भगवान विष्णु के भक्त की रक्षा के दौरान गज ग्राह के घटनाक्रम से जुड़ा हुआ है। तभी से यह स्थान हाथी पालकों के लिए एक प्रकार का तीर्थस्थल बन गया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पुराने लोगों के अनुसार, एक समय में मेले में 2000 से अधिक हाथियों का आगमन होता था। बिहार और उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के हाथी पालक अपने हाथियों को यहां लाते थे, जबकि केरल और असम के व्यापारी भी ट्रक और रेल मार्ग से खरीदारी के लिए आते थे।
मेला क्षेत्र के गंडक नदी किनारे हाथियों का बाजार खुला होता था, जिसे देश-विदेश के पर्यटक देखने आते थे।
जापान, यूके, ब्राज़ील और यूरोप से आने वाले पर्यटक हाथियों की तस्वीरें अपने कैमरे में उतारते थे और नारायणी नदी में हाथियों के स्नान का दृश्य उनकी यादों में आज भी बसा हुआ है।
लेकिन समय के साथ सरकार ने पशु क्रूरता अधिनियम के तहत हाथियों की खरीद-बिक्री और गिफ्टिंग पर रोक लगा दी।
इसके बाद मेले में हाथियों का बिल्कुल दिखना बंद हो गया। धीरे-धीरे गाय, बैल और भैंस भी गायब हो गए। 2007 के बाद असम से भैंस लाने पर रोक लगी और पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश से दूधारू गायों का आना भी बंद हो गया।
परिणामस्वरूप, पशु प्रधान मेला अब केवल एक सामान्य मेला बनकर रह गया।
सोनपुर मेला कभी पशुपालन विभाग के कार्यक्रमों, राज्यपाल और डीजीपी के पुरस्कार वितरण समारोहों का स्थल भी रहा।
इन आयोजनों में पशुपालकों और बहादुर नागरिकों को सम्मानित किया जाता था। अब यह परंपरा इतिहास का हिस्सा बन चुकी है।
हालांकि, आज भी मेले के प्रतीक रूप में हाथियों की झांकियां और छत्तरी मौजूद हैं, लेकिन मेले की वास्तविक पहचान और गौरवशाली अतीत अब केवल यादों में जीवित है। |