स्वदेश कुमार, नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर आजकल गैस चैंबर में तब्दील हो चुका है। हवा की गुणवत्ता के आंकड़ों के खेल से इतर ये प्रदूषण हर उम्र के लोगों पर चोट कर रहा है। खासकर बच्चों पर अधिक प्रभाव हो रहा है, जिनका इस प्रदूषण में कोई दोष नहीं है। जन्म के साथ ही उन पर प्रदूषण की काली छाया पड़ जा रही है। नतीजतन शारीरिक ही नहीं मानसिक बीमारियां भी उन पर हावी हो रही हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
द लैंसेट पत्रिका की 2023 की एक रिपोर्ट में तो यहां तक दावा किया गया है कि भारत में हर साल प्रदूषण के कारण पांच साल से कम उम्र के 1.7 लाख बच्चों की मौत हो रही है।
पिछले एक महीने से दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर बढ़ा है। इसी अनुपात में अस्पतालों में मरीजों की भीड़ भी बढ़ी है। इसमें खांसी-जुकाम के साथ अस्थमा और सांस लेने में तकलीफ के मामले अधिक हैं। इनमें भी आठ साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या अधिक है।
पहले खांसी-जुकाम पांच से सात दिनों में ठीक हो रहे थे। लेकिन प्रदूषण के कारण इनकी अवधि बढ़ गई है। कई मामलों में ठीक होने के तुरंत बाद फिर से असर दिखने लगा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, छोटे बच्चों में बीमारियों से लड़ने की शक्ति कम होती है।
वहीं, ऐसे में प्रदूषण की चोट उन पर गहरा प्रभाव छोड़ती है। प्रदूषण की मार बाहर ही नहीं, घर में भी पड़ रही है। बाहर से धूल पहुंचने के साथ घर में रसोई से निकले कण भी बच्चों के स्वास्थ्य पर असर डाल रहे हैं। उनके मुताबिक तात्कालिक और दूरगामी दोनों तरह के प्रभाव से मासूमों को बचाना बड़ी चुनौती बन गई है।
क्या-क्या आ रही समस्याएं
जुकाम, खांसी
यह संक्रामक रोग है। प्रदूषण के कारण यह गंभीर हो सकता है। अस्पतालों में ऐसे मरीजों की संख्या पिछले कुछ समय में 40 प्रतिशत तक बढ़ी है।
अस्थमा
छोटे बच्चों में अस्थमा जैसे लक्षण पाए जा रहे हैं। इन्हें अस्थमा नहीं कहा जा सकता है। लेकिन कई सालों तक प्रभाव में रहने के कारण अस्थमा भी हो सकता है।
निमोनिया
लंबे समय तक खांसी, जुखाम और सांस लेने में तकलीफ की समस्या निमोनिया में भी बदल जा रही है।
फेफड़ों पर असर
प्रदूषण फेफड़ों पर सीधा असर कर रहा है। फेफड़ों का विकास कम हो रहा है। इसका दूरगामी असर फेफड़ों की खराबी के रूप में सामने आ सकता है।
काला दमा (सीओपीडी)
यह बीमारी धूमपान करने वालों को होती है। लेकिन प्रदूषण के कारण अन्य लोगों को भी हो सकता है।
आंखों पर प्रभाव
आंखों में जलन, सूखापन और धुंधलेपन की शिकायतें सामने आ रही है। दो सप्ताह में आंखों से पीड़ित मरीजों की संख्या 60 प्रतिशत तक बढ़ गई है। फेफड़ों में कैंसर भी सामने आने लगे हैं।
मस्तिष्क का विकास धीमा
प्रदूषण का असर बच्चों के मस्तिष्क पर भी पड़ रहा है। इसका विकास धीमा हो जाता है। इस वजह से चिड़चिड़ापन सहित अन्य बीमारियां हो सकती हैं। स्ट्रोक का भी खतरा होता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
अब सात से आठ लीटर देना पड़ रहा ऑक्सीजन
प्रदूषण की चपेट में आने के कारण कई बच्चों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है। अमूमन ऐसे बच्चों को एक से डेढ़ लीटर आक्सीजन देने की जरूरत पड़ती थी। लेकिन अभी सात से आठ लीटर तक आक्सीजन मशीन के जरिये देना पड़ रहा है। प्रदूषण की वजह से फेफड़े कमजोर हो रहे हैं। यह छोटे बच्चों पर भी असर कर रहा है। एक डेढ़ माह से लेकर सात- आठ साल के बच्चे भी पीडियाट्रिक वार्ड में पहुंच रहे हैं। - डा. एसएस बिष्ट, विभागाध्यक्ष, बाल रोग विभाग, स्वामी दयानंद अस्पताल
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर जितना ज्यादा हो रहा है। उतना ही स्वास्थ्य पर खतरा बढ़ रहा है। कम उम्र के बच्चों पर इसका अधिक असर देखा जा रहा है। धूमपान से दूर होने के बाद भी बच्चों में वो लक्षण देखे जा रहे हैं जो धूमपान करने वालों में होते हैं। फेफड़ों की शक्ति कम हो रही है। अधिक समय तक प्रदूषण में रहने की वजह से फेफड़े पूरी तरह से खराब हो सकते हैं। जब तक सरकार प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं करती, तब तक हम लोगों को ही इससे बचने के उपाय करने होंगे। -
डा. राहुल शर्मा, पुल्मोनोलाजिस्ट और एडिशनल डायरेक्टर, फोर्टिस, नोएडा
गर्भ पर भी है प्रदूषण का साया
सेंटर फार साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वायु प्रदूषण मां के गर्भ से ही बच्चे के स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहा है। जब गर्भवती प्रदूषित हवा में सांस लेती है तो हवा में मौजूद छोटे, जहरीले कण शरीर से होते हुए गर्भ में पल रहे भ्रूण तक पहुंच जाते हैं। उसे सही मात्रा में आक्सीजन और जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते। इस वजह से कई बार गर्भ में ही बच्चे की मौत हो जाती है। समय से पहले प्रसव हो जाता है। समय पूर्व प्रसव के कारण नवजात कमजोर होता है। वह बीमारियों से लड़ नहीं पाता है।
नोएडा के चाइल्ड पीजीआइ में पहुंच रहे 100 बाल मरीज
वरिष्ठ चिकित्सक डा. भानु किरण का कहना है कि अस्थमा क्लिनिक में श्वास संबंधी 90 से 100 मरीज आते हैं। 20-30 बच्चों को भर्ती भी करना पड़ता है, जो बीमारी पहले पांच से सात दिन में ठीक होती थी। अब उसमें 15 से 20 दिन का समय लग रहा है। प्रदूषण से बच्चों के सांस लेने में प्रभाव पर मैं और मेरे साथियों ने दो साल तक शोध भी किया है, जिसमें पता चला कि 80 से ऊपर एक्यूआइ में 16 साल तक के बच्चों को सांस की गंभीर दिक्कत हो जाती है।
जागरण सुझाव
- प्रदूषण बढ़ने पर स्कूलों में आनलाइन पढ़ाई की सुविधा शुरू की जाए
- एयर प्यूरिफायर घर के साथ स्कूलों में भी लगने चाहिए
- बच्चे जब घर से बाहर हों तो अभिभावक उनके लिए एन-95 का प्रयोग सुनिश्चित करें
- प्रदूषण अधिक हो तो बाह्य गतिविधियां कम से काम हों।
- वायु प्रदूषण से निपटने में सरकार के साथ जनता का भी सहयोग करे
- जागरूकता अभियान बड़े पैमाने पर चलाने की जरूरत है
बच्चे बीमार, अभिभावक परेशान
मेरी बेटी चौथी कक्षा में पढ़ती है। उसे कई दिनों सर्दी है। कफ निकल रहा है। डाक्टर को दिखा रहे हैं लेकिन दवाओं का असर नहीं हो रहा है। डाक्टर ने बताया है कि अभी समय लगेगा। इस कारण दो सप्ताह से उसे स्कूल नहीं भेज पा रहे हैं। उससे छोटी एक और बेटी है। उसे भी सुरक्षित रखने की चुनौती है। - दिवाकर कुमार, दिल्ली
मेरी पोती कक्षा एक में पढ़ती है। उसे भी खांसी और जुकाम था। करीब एक सप्ताह स्कूल नहीं जा पाई। इसके बाद मेरे बेटे ने अन्य अभिभावकों के साथ मिलकर कक्षा में एयर प्यूरिफायर का इंतजाम कराया है। इसके बाद अब उसे स्कूल भेज रहे हैं। - बिंदु झा, दिल्ली
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मेरा 3.5 साल का बेटा है दक्ष। प्रदूषण से बचने के लिए मैंने घर में एयर प्यूरिफायर भी लगवा दिया है। इन दिनों दक्ष की सभी बाहर गतिविधियां बंद कर दी हैं। जरूरत पड़ने पर बाहर जाते समय मास्क जरूरत लगाते हैं। स्कूल से आने पर उसकी आंखों को पानी से साफ कराते हैं। - योगेश सिंह, जेपी अमन सोसायटी, सेक्टर 151, नोएडा
मेरा बेटा सिद्धार्थ चौहान पांच साल का है। दो साल पूर्व प्रदूषण बढ़ने पर उसे सांस की दिक्कत हुई। डाक्टर ने एनसीआर छोड़कर चंडीगढ़ या उत्तराखंड में जगह रहने की सलाह दी थी । प्रदूषण से हालत खराब होने पर बेटे को स्कूल नहीं भेजता हूं। - लवकुश चौहान, लोटस बुलेवर्ड सोसायटी, सेक्टर 100, नोएडा
मेरी चार साल की बेटी है। उसको जुकाम की शिकायत शुरू हो गई है। चिकित्सकों को दिखाने पर बताया कि बच्चों का प्रदूषण से बचाव की जरूरत है। ऐसे में हमारी कोशिश रहती है कि उसे घर से बाहर कम से कम निकलने दे रहे हैं। मास्क का प्रयोग कर रहे हैं। - वसुंधरा, शिवपुरी, गाजियाबाद
मेरी दो साल की बेटी है। बच्ची को हल्का जुकाम सा महसूस हुआ। मुझे सामान्य लगा। जब तीन चार दिन में ठीक नहीं हुआ तो डाक्टर को दिखाया। उन्होंने बताया कि प्रदूषण के कारण ठीक होने में समय लगेगा। उन्होंने प्रदूषण से बचने की भी सलाह दी। इसके बाद हम लोग सावधानी बरत रहे हैं। - प्रीति शर्मा, विजयनगर, गाजियाबाद
हमारे डेढ़ साल के बेटे चक्षित को सांस लेने में दिक्कत आ रही थी। खांसी-जुकाम की वजह से बच्चे की आवाज ही बदल गई थी। सारी रात सो नहीं पाता था, इस तरह की तकलीफ़ का सामना करना पड़ा। डाक्टर को दिखाने पर पता चला कि इसकी वजह बदलता मौसम और बढ़ता प्रदूषण है। नेबुलाइजर का उपयोग करने और दवाओं से अब आराम है। - मनीष, अभिभावक, फरीदाबाद
दीवाली के बाद से ही प्रदूषण का स्तर बढ़ा हुआ है और बढ़ते प्रदूषण का असर सभी के स्वास्थ्य पर पड़ा है। खांसी-जुकाम होने पर लोगों की हालत खराब हो जाती है। बच्चों की परेशानी तो उससे ज्यादा होती है। कोई भी मां किस पीड़ा से गुजरती है। एक मां होने के नाते मैं बेहतर तरीके से जानती हूं। प्रदूषण का स्थायी समाधान निकलना चाहिए। - भावना, एनआइटी, फरीदाबाद
मेरे 10 महीने के बच्चे को अचानक सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी। डाक्टरों की जांच में पता चला कि सांस नली में सूजन है। चिकित्सकों की सलाह पर बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराया है। पिछले एक सप्ताह से उसका इलाज चल रहा है और अब स्थिति में सुधार है। डाक्टरों ने जल्द डिस्चार्ज देने की बात कही है। - निधि, निलोठी, बहादुरगढ़
19 दिन के मेरे बेटे को अचानक तेज-तेज सांस लेने लगी, जिस पर हम लोगों ने तुरंत उसे अस्पताल में भर्ती कराया। डाक्टरों ने जांच के बाद बताया कि प्रदूषण के कारण बच्चे को सांस लेने में दिक्कत हुई है। अब बच्चे की तबीयत में सुधार है। - सोनी, हरसाना, सोनीपत |