AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी। फाइल फोटो
इलेक्शन डेस्क, भागलपुर। यूं तो सीमांचल की सभी 24 सीटों पर मुकाबला दिलचस्प बना हुआ है, लेकिन मुस्लिम बहुल सीटों पर बन रहे समीकरण ने इसे अधिक जटिल बना दिया है। यहां एआइएमआइएम फिर से पूरी ताकत के साथ मैदान में है। 2020 में ओवैसी की पार्टी ने पांच सीटें जीतकर अहम मौजूदगी बनाई थी। तब पार्टी ने सीमांचल में 14 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
कटिहार में सबसे ज्यादा पांच, किशनगंज में चार, पूर्णिया में तीन और अररिया में दों सीटों पर पार्टी मैदान में थी। AIMIM की उपस्थिति ने महागठबंधन के माय समीकरण को ध्वस्त कर दिया था। इस बार भी वही आधार महागठबंधन के समीकरण को चुनौती दे रहा है।
मुस्लिम मतदाताओं को प्रभावित कर रहे ओवैसी?
पार्टी 15 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं, इनमें किशनगंज और पूर्णिया में चार-चार, कटिहार में पांच और अररिया में दो प्रत्याशी मैदान में हैं। इन सीटों पर वह मुस्लिम मतदाताओं की नाराजगी को अपनी दिशा में मोड़ने की कोशिश कर रही है। उसके प्रचार में यह बात बार-बार दोहराई जा रही है कि राजद और कांग्रेस ने मुसलमानों को हमेशा वोट बैंक की तरह देखा।
यह सवाल उठाया जा रहा है कि जब दो प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले उपमुख्यमंत्री बन सकते हैं, तो 18 प्रतिशत वाले मुख्यमंत्री क्यों नहीं। किशनगंज जिले में एआइएमआइएम ने 2020 में बहादुरगंज और कोचाधामन से जीत दर्ज की थी।किशनगंज और ठाकुरगंज में वह पीछे रही, लेकिन 2025 में उसने चारों सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं।
इस बार कैसा है समीकरण?
कोचाधामन का मुकाबला खास तौर पर रोचक है। यहां एआइएमआइएम छोड़कर राजद में आए इजहार असफी का टिकट काटकर राजद ने जदयू से आए मुजाहिद आलम को उतारा है, जबकि एआइएमआइएम ने सरवर आलम पर भरोसा जताया है।
लगभग 68 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाली इस सीट पर प्रचार पूरी तरह उसी आधार पर टिका है। बहादुरगंज में एआइएमआइएम के तौसीफ आलम और कांग्रेस के मुसब्बिर आलम आमने-सामने हैं। ठाकुरगंज और किशनगंज में पार्टी इस बार कमजोर दिख रही है, हालांकि किशनगंज में उसने 2019 के उपचुनाव में जीत दर्ज की थी।
पूर्णिया में एआइएमआइएम की पकड़ सबसे ज्यादा मजबूत अमौर और बायसी में है। अमौर में अख्तरूल ईमान 2020 में 52 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे और इस बार भी पार्टी ने उन्हें टिकट दिया है। यहां कांग्रेस और जदयू के साथ त्रिकोणीय मुकाबला बन गया है।
बायसी में 2020 में एआइएमआइएम के रूकनुद्दीन जीते थे, हालांकि अब वह राजद में हैं और टिकट भी नहीं मिला। राजद ने हाजी अब्दुस सुब्हान पर दांव लगाया है, जबकि एआइएमआइएम ने गुलाम सरवर को उतारा है। भाजपा के विनोद यादव भी मैदान में हैं, जिससे सीट त्रिकोणीय हो गई है। कसबा में एआइएमआइएम के मोहम्मद शहनवाज आलम महागठबंधन के वोट में सेंध लगा सकते हैं।
धमदाहा में एआइएमआइएम के इश्तियाक अहमद जदयू की लेशी सिंह और राजद के संतोष कुशवाहा के बीच मुकाबले को और पेचीदा बना रहे हैं। कटिहार की मुस्लिम बहुल सीटों पर भी एआइएमआइएम ने अपना दम लगाया है। प्राणपुर में 2020 में उसे केवल 508 वोट मिले थे, लेकिन इस बार आफताब आलम को उतारकर स्थिति बदलने की कोशिश की जा रही है।
इसके अलावा एआइएमआइएम ने कटिहार, बरारी, कदवा और बलरामपुर में भी उम्मीदवार उतारे हैं। अररिया जिले की दोनों मुस्लिम बहुल सीटें अररिया और जोकीहाट एआइएमआइएम की महत्वाकांक्षा के केंद्र में हैं। अररिया से मंजूर आलम पार्टी के उम्मीदवार हैं, जबकि 2020 में कांग्रेस यहां 47 हजार वोटों के अंतर से जीती थी।
जोकीहाट का मुकाबला सबसे दिलचस्प है। यहां तस्लीमुद्दीन के दोनों बेटे आमने-सामने हैं। राजद से शाहनवाज आलम और जनसुराज से सरफराज आलम मैदान में हैं। इनके साथ एआइएमआइएम के मुर्शीद आलम और जदयू के मंजर आलम भी हैं, जिससे लड़ाई चौतरफा हो गई है। |