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दिल्ली में प्रदूषण से बढ़े ड्राई आई सिंड्रोम और एलर्जी के मामले, पढ़ें क्या कहते हैं डॉक्टर

LHC0088 2025-11-8 15:37:21 views 995

  

दिल्ली में प्रदूषण ने स्वच्छ हवा को तो खराब किया ही, अब वह आंखों की रोशनी पर भी बुरा प्रभाव डाल रहा है।



अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। दिल्ली में प्रदूषण ने स्वच्छ हवा को तो खराब किया ही, अब वह आंखों की रोशनी पर भी बुरा प्रभाव डाल रहा है। यह सिर्फ स्वास्थ्य नहीं, मानव दृष्टि के भविष्य का संकट है। क्योंकि दिल्ली की हवा सिर्फ फेफड़ों नहीं, आंखों के लिए भी खतरनाक हो गई है। लगातार बढ़ा हुआ एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) लोगों की आंखों में जलन, सूखापन और धुंधलेपन की शिकायत पैदा कर रहा है। इसने अदृश्य महामारी का रूप अख्तियार कर लिया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

साइंटिफिक रिपोर्ट्स 2025 के अनुसार पीएम 2.5 में हर एक प्रतिशत की बढ़ोतरी ढाई लाख से अधिक नए नेत्र रोगी पैदा कर रही है। अध्ययन बताता है कि देश के विभिन्न प्रदूषित शहरों के 10 करोड़ से अधिक लोग ड्राई आई बीमारी से पीड़ित हैं।

दिल्ली के अस्पतालों में दो सप्ताह में आंखों से पीडि़त मरीजों की संख्या 60 प्रतिशत बढ़ गई है। सबसे ज़्यादा ड्राई आई सिंड्रोम (सूखी आंख), एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस (आंखों की एलर्जी) व कार्निया क्षति के। दिल्ली के करीब दस लाख लोग इस समय इन तकलीफों से गुजर रहे हैं, जिनमें दो लाख के करीब संख्या बच्चों की बताई जा रही है।

एम्स के सामुदायिक नेत्र विज्ञान विभाग के प्रभारी अधिकारी प्रो. प्रवीण वशिष्ठ ने बताया कि ‘प्रदूषित हवा दिल्ली के लोगों की आंखों की नमी छीन रही है, जिससे संक्रमण व जलन का खतरा दोगुना हो जाता है। यह स्थिति रेटिना और मैक्युला की कोशिकाओं को धीरे-धीरे नष्ट कर रही हैं, जिससे दृष्टि स्थायी रूप से धुंधली होती जा रही है।’

बताया कि नवंबर 2024 में जब एक्यूआई बेहद खराब स्तर पर था तब भी आंखों के संक्रमण के मामले दोगुने हो गए थे। इन दिनों दिल्ली में मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) के केस 30 प्रतिशत तक बढ़े हैं। ग्लूकोमा का खतरा आठ प्रतिशत तक बढ़ गया है। मांग की जा रही है कि आंखों को बचाना अब व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय जिम्मेदारी बन जानी चाहिए।
प्रमुख आंकड़े

-दिल्ली की हवा में पीएम2.5 का स्तर ग्रामीण इलाकों से 24 गुना अधिक पाया गया।
-ट्रैफिक, औद्योगिक धुआं और निर्माण कार्य आंखों के लिए जहरीले साबित हो रहे हैं।
-अस्पतालों में हर दिन औसतन आठ सौ से एक हजार मरीज आंखों की जलन या सूखापन लेकर पहुंच रहे हैं।
-लगातार प्रदूषण में रहने से कार्निया (आंख की बाहरी झिल्ली) पर महीन दरारें पड़ती हैं, जिससे संक्रमण और दृष्टि क्षति की संभावना बढ़ जाती है।
जागरण सलाह

-स्माग और धूल भरे दिनों में पारदर्शी चश्मा पहनें।
-दिन में दो बार ठंडे पानी से आंखें धोएं और आइ ड्राप का प्रयोग करें।
-घर और कार्यालय में एयर प्यूरिफायर लगाएं।
-व्यावसायिक चालकों के लिए नियमित नेत्र जांच अनिवार्य हो।
-इलेक्ट्रिक वाहनों और स्वच्छ ऊर्जा उपकरण को प्राथमिकता मिले।
-बायोमास और खुले में कूड़ा जलाने पर हो कड़ी कार्रवाई
-आंखों को बचाना अब व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय जिम्मेदारी हो
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