महाराजा चंद्रविजय सिंह का निधन। फोटो जागरण
संवाद सहयोगी, डुमरांव (बक्सर)। डुमरांव राज परिवार की आन-बान-शान और अपनी बेबाक छवि से शहर ही नहीं, पूरे जिले में लोकप्रिय रहे महाराजा चंद्रविजय सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। 78 वर्ष की उम्र में वे शनिवार की शाम दिल्ली के अपोलो अस्पताल में अंतिम सांस ली। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पिछले कई दिनों से उनकी तबीयत खराब चल रही थी और वे वेंटिलेटर पर थे। निधन की खबर मिलते ही पूरे डुमरांव में शोक की लहर दौड़ गई। राज परिवार के नजदीकी मो. मुमताज ने बताया कि उनके पुत्र शिवांग विजय सिंह के मोबाइल पर शनिवार शाम डॉक्टरों ने निधन की पुष्टि की।
तीन-चार वर्ष पहले कोलकाता में प्रोस्टेट कैंसर का सफल इलाज हुआ था और उसके बाद वे पूरी तरह स्वस्थ हो गए थे, लेकिन हाल ही में एक सामान्य जांच के दौरान डेंगू का संक्रमण सामने आया और प्लेटलेट्स तेजी से गिरने लगे। अचानक स्थिति बिगड़ने पर उन्हें दिल्ली ले जाया गया, जहां अपोलो अस्पताल में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।
भोजपुर कोठी में उमड़े लोग
महाराजा के निधन की खबर जैसे ही डुमरांव पहुंची, बड़ी संख्या में शुभचिंतक और आम नागरिक शोक व्यक्त करने भोजपुर कोठी पहुंचे। शहर के गणमान्य लोगों, बुद्धिजीवियों और विभिन्न राजनीतिक-सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों ने महाराज चंद्रविजय सिंह के निधन को अपूरणीय क्षति बताया। हर किसी की आंखें नम थीं और लोग एक स्वर में कह रहे थे \“आज डुमरांव ने अपनी धड़कन खो दी।\“
बेबाकी और सरलता ने जीता लोगों का दिल
महाराज चंद्रविजय सिंह अपनी स्पष्टवादिता और बेबाक स्वभाव के लिए जाने जाते थे। बड़े मंचों से भी वे भोजपुरी में ही बोलना पसंद करते थे, जिससे आम लोगों में उनके प्रति विशेष लगाव था। उनकी सहजता और सरलता ने उन्हें लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय बनाया।
वे केवल एक राजघराने के सदस्य नहीं, बल्कि आम आदमी के बीच बैठकर उनकी समस्याओं को सुनने और समझने वाले इंसान थे। यही वजह थी कि समाज के हर तबके से उनके निधन पर गहरी संवेदनाएं व्यक्त की जा रही हैं।balia-general,Balia news,environmental protection,Purvanchal districts,river conservation,pollution control,waste management,environmental awareness,district forest officer,government budget,air pollution control,up news,uttar pradesh news,up news in hindi,Uttar Pradesh news
राज परिवार और ताजपोशी की यादें
15 जून 1947 को जन्मे महाराज चंद्रविजय सिंह अपने दो भाइयों में सबसे बड़े थे। उनके पिता महाराजा कमल बहादुर सिंह, जो स्वतंत्र भारत के पहले सांसद भी थे, की अस्वस्थता को देखते हुए राजगढ़ परिसर स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर में चंद्रविजय सिंह का ताजपोशी कर उन्हें वर्तमान महाराजा घोषित किया गया था।
उनके जीवन में राजसी ठाठ तो रहा, लेकिन उससे कहीं अधिक उनका झुकाव आम लोगों की ओर था। परिवार के साथ उनका आत्मीय संबंध और लोगों के साथ सीधा संवाद उनकी पहचान बन गया था।
हर दिल में याद रहेंगे
महाराज चंद्रविजय सिंह के आकस्मिक निधन ने डुमरांव को गहरे शोक में डुबो दिया है। शहर ही नहीं, पूरे जिले में उन्हें एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में याद किया जाएगा, जिन्होंने अपनी मातृभूमि और मातृभाषा से कभी दूरी नहीं बनाई। उनकी सहजता, बेबाकी और भोजपुरी प्रेम पीढ़ियों तक प्रेरणा का स्रोत बनेगा।
लोगों का कहना है कि भले ही आज महाराज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके आदर्श और संस्कार हमेशा जीवित रहेंगे। डुमरांव की पहचान और स्वाभिमान के रूप में उनका नाम इतिहास के पन्नों में हमेशा दर्ज रहेगा।
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