क्या आपके \“मल्टीग्रेन\“ बिस्किट वाकई हेल्दी हैं? (Image Source: AI-Generated)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। क्या आप भी चाय का प्याला हाथ में लेते ही \“मल्टीग्रेन\“ बिस्किट का पैकेट ढूंढने लगते हैं? या फिर अपने बच्चे के हाथ में \“रागी कुकी\“ थमाकर यह सोचते हैं कि आप उसे दुनिया का सबसे पौष्टिक नाश्ता दे रहे हैं? अगर हां, तो आपको रुककर सोचने की जरूरत है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
जी हां, जिसे हम \“सेहत का साथी\“ समझकर बड़े चाव से खा रहे हैं, वह असल में सेहत का वह चोला ओढ़े हुए है जिसके पीछे कैलोरी का भारी बोझ छिपा है। न्यूट्रिशन एक्सपर्ट अमिता गादरे ने इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए बिस्किट के उस सच को उजागर किया है, जिसे अक्सर विज्ञापनों में छिपा लिया जाता है। आइए जानते हैं।
बिस्किट बनाने का गणित
चाहे बिस्किट घर पर बना हो या बाजार का, इसके बुनियादी ढांचे में कोई बड़ा बदलाव नहीं होता। किसी भी कुकी या बिस्किट को बनाने के लिए आमतौर पर एक खास अनुपात का पालन किया जाता है:
- 3 हिस्सा आटा: लगभग 50% से 70%
- 2 हिस्सा फैट: लगभग 15% से 35%
- 1 हिस्सा चीनी: लगभग 10% से 25%
इसका मतलब यह है कि आप चाहे कोई भी बिस्किट खाएं, उसमें भारी मात्रा में फैट और चीनी का होना तय है। View this post on Instagram
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क्या घी और गुड़ वाले बिस्किट सही हैं?
आजकल लोग रिफाइंड शुगर की जगह गुड़ और तेल की जगह घी से बने मिलेट्स (बाजरा, रागी आदि) के बिस्किट चुन रहे हैं। सुनने में यह सेहतमंद लग सकता है, लेकिन हकीकत यह है कि ये भी \“Empty Calories\“ का सोर्स हैं। इनमें वह एक्स्ट्रा शुगर और फैट होता है जिसकी हमारे शरीर को और खासकर बढ़ते बच्चों को, कोई जरूरत नहीं होती।
क्या बच्चों को बिस्किट देना सही है?
माता-पिता अक्सर सोचते हैं कि रागी या मल्टी-ग्रेन कुकीज बच्चों के लिए एक अच्छा स्नैक हैं। हालांकि, कभी-कभार स्वाद के लिए इन्हें देना ठीक है, लेकिन इसे रोजाना की आदत बनाना सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। कोई भी बिस्किट, चाहे वह कितना भी \“हेल्दी\“ होने का दावा करे, बैलेंस डाइट की जगह नहीं ले सकता।
बिस्किट या कुकीज को केवल कभी-कभार के \“ट्रीट\“ के तौर पर रखें। इन्हें अपनी या अपने बच्चों की रोज की डाइट का हिस्सा न बनने दें, क्योंकि शरीर को इनकी एक्स्ट्रा कैलोरी की जरूरत नहीं होती है।
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