दिलीप शर्मा, लखनऊ। वर्तमान वित्तीय वर्ष में किए जा रहे मृदा परीक्षण की रिपोर्ट खेती-किसानी के लिए गंभीर संकट का संकेत दे रही है। यूपी की मिट्टी में नाइट्रोजन की भारी कमी हो चुकी है। पूरे प्रदेश से लिए गए मिट्टी के साढ़े 11.60 लाख से ज्यादा नमूनों की जांच में 95 प्रतिशत में नाइट्रोजन की मात्रा कम (लो श्रेणी) में मिली है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इससे भी ज्यादा चिंता की बात ये है कि शेष लगभग पांच प्रतिशत नमूनों में नाइट्रोजन की मात्रा मध्यम (मीडियम श्रेणी) में है यानी इनसे संबंधित खेत भी लो श्रेणी की ओर बढ़ रहे हैं। संकट का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि पूरी रिपोर्ट में उच्च (हाई श्रेणी) नाइट्रोजन वाले नमूनों की संख्या एक प्रतिशत तक भी नहीं है।
बदायूं और खीरी में सभी के सभी सैंपल में नाइट्रोजन कम मिला। वहीं सात अन्य जिलों में भी हाई श्रेणी के नमूने शून्य निकले। फसलों की बढ़त और उत्पादन में नाइट्रोजन की अहम भूमिका होती है, ऐसे में उत्पादन के प्रभावित होने की भी आशंका है।
वर्तमान वित्तीय वर्ष में कृषि विभाग की ओर से खरीफ सीजन में मृदा परीक्षण के लिए 1.56 लाख से अधिक नमूने लिए गए थे। इसके बाद भी नमूने लेकर जांचने का क्रम चल रहा है। 17 दिसंबर तक लिए गए 11,65,623 नमूनों में से 9,83,015 नमूने लो श्रेणी (280 किलो प्रति हेक्टेयर से कम) में मिले जो कि कुल नमूनों का 95 प्रतिशत है।
वहीं 1,69,408 नमूनों में नाइट्रोजन की मात्रा मीडियम श्रेणी (280 से 560 किलो प्रति हेक्टेयर के बीच) और केवल 13,200 नमूनों में हाई (560 किलो प्रति हेक्टेयर से अधिक) मिली है। कृषि विभाग के अनुसार लगातार एक ही फसल उगाना, रासायनिक उर्वरकों का असंतुलित उपयोग, खेतों में गोबर खाद या फसल अवशेष न डालना आदि कारणों से यह स्थिति बन रही है।
नाइट्रोजन की कमी होने से पौधों की बढ़त प्रभावित होती है और दानों या फलों का विकास सही नहीं हो पाता। गेहूं, धान, मक्का और दलहन जैसी प्रमुख फसलों में उत्पादन पर इसका असर पड़ता है।
कृषि निदेशक डा. पंकज त्रिपाठी ने बताया कि किसानों को मृदा परीक्षण कराने और उसकी रिपोर्ट के अनुसार ही उर्वरक उपयोग के लिए जागरूक किया जा रहा है। उनको पोषक तत्वों की कमी दूर करने के उपाय और सहायता भी उपलब्ध कराई जा रही है। विभाग की ओर से वर्तमान में आयोजित की जा रही किसान पाठशालाओं में इसके बारे बताया जा रहा है।
वहीं, खरीफ सीजन में चले विकसित कृषि संकल्प अभियान में भी इसकी जानकारी दी गई थी। किसानों को यूरिया पर निर्भरता कम कर संतुलित एनपीके उर्वरक, जैव-उर्वरक, हरी खाद, गोबर खाद और वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग बढ़ाना चाहिए।
इन जिलों में नाइट्रोजन की सबसे ज्यादा कमी
नाइट्रोजन की कमी तो पूरे प्रदेश में मिली है। परंतु बदायूं और खीरी में सभी नमूने लो श्रेणी के है। इनके बाद भदोही व गोरखपुर में 99.99, देवरिया व मुरादाबाद में 99.97, बिजनौर व फर्रुखाबाद में 99.96, आगरा में 99.95, अमरोहा में 99.92, ललितपुर में 99.87 और बहराइच व कुशीनगर में 99.86 प्रतिशत नमूनों में लो नाइट्रोजन मिला है।
हाई नाइट्रोजन में सबसे पीछे
रामपुर, महोबा, खीरी, कासगंज, हमीरपुर, हापुड़्, बदायूं, बुलंदशहर और बहराइच ऐसे जिले हैं, जहां लिए गए एक भी नमूने में नाइट्रोजन की मात्रा हाई श्रेणी में नहीं मिली। इनके अलावा आगरा, अलीगढ़, इटावा, चित्रकूट, भदोही, बिजनौर, सिद्धार्थनगर, उन्नाव, शाहजहांपुर, मेरठ, ललितपुर और लखनऊ में केवल 0.01 प्रतिशत नमूनों में ही नाइट्रोजन हाई पाया गया है। |