वेगस नर्व स्टिमुलेशन थेरेपी से मिर्गी का होगा बेहतर उपचार (Image Source: Freepik)  
 
  
 
संग्राम सिंह, वाराणसी। देश में मिर्गी के उपचार में वेगस नर्व स्टिमुलेशन थेरेपी शीघ्र ही असरदार होगी। यह उन मरीजों पर कारगर होगी, जिनकी बीमारी दवा से नियंत्रित नहीं हो पाती। इस थेरेपी में छोटी बैटरी से चलने वाला उपकरण तैयार किया गया है, जिसे पेसमेकर की तरह सर्जरी से छाती की त्वचा के नीचे प्रत्यारोपित किया जाता है। यह उपकरण एक तार के माध्यम से गर्दन में बाईं वेगल तंत्रिका से जुड़ा होता है । वेगल तंत्रिका के माध्यम से यह मस्तिष्क को नियमित, हल्के विद्युत आवेग भेजता है । ये विद्युत आवेग मस्तिष्क की अनियमित विद्युत गतिविधि को शांत करने में मदद करते हैं, जो दौरे का कारण बनती है। चिकित्सक अब इन आवेगों की शक्ति, अवधि और आवृत्ति को प्रोग्राम कर सकेंगे । इस थेरेपी से मिर्गी के दौरों की संख्या, अवधि और गंभीरता को कम कर सकेंगे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
होटल ताज में भारतीय न्यूरोलाजिकल एसोसिएशन के वार्षिक सम्मेलन में मुंबई के केईएम अस्पताल के न्यूरोलाजी विभाग की प्रो. संगीता एच. रावत ने बताया कि इस थेरेपी से मिर्गी के दौरे के बाद ठीक होने में लगने वाले समय को कम किया जा सकेगा जबकि कुछ रोगियों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा । देश के कुछ मेडिकल कालेजों और चिकित्सा संस्थानों में इस थेरेपी के जरिये दौरे की समस्या 70 प्रतिशत तक घटाने में मदद मिली है। यह थेरेपी मिर्गी - रोधी दवाओं के साथ अतिरिक्त इलाज के रूप में इस्तेमाल की जाएगी । यह थेरेपी उन लोगों के लिए विकल्प है जो दवाएं लेने के बावजूद दौरों को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं या जो मस्तिष्क की सर्जरी के लिए उपयुक्त नहीं हैं। 20 प्रतिशत मरीज ऐसे होते हैं, जिन पर दवाएं असर नहीं करती हैं।  
क्यों बढ़ रहे हैं शिशुओं में न्यूरो डिसऑर्डर?  
 
प्रो. संगीता एच. रावत ने बताया कि प्रसव के दौरान शिशु को आक्सीजन की कमी होने से मस्तिष्क की नसों व कोशिकाओं को गंभीर नुकसान होता है। ऐसे मामले देश में अधिक आ रहे हैं, क्योंकि इससे कई तरह के न्यूरो (तंत्रिका) संबंधी विकार उत्पन्न हो रहे हैं। इस स्थिति को बर्थ एसफिक्सिया या हाइपोक्सिक इस्कीमिक एन्सेफेलोपैथी कहते हैं। मस्तिष्क के क्षतिग्रस्त होने से शिशु में दीर्घकालिक समस्याएं हो रही हैं। इसमें सेरेब्रल पाल्सी और विकासात्मक देरी ( शिशु का देर से बैठना, चलना, बोलना आदि), बौद्धिक अक्षमता, मिर्गी, दृश्य और श्रवण दोष शामिल हैं। मस्तिष्क को होने वाले नुकसान की गंभीरता को कम करने में थेरेप्यूटिक हाइपोथर्मिया या कूलिंग थेरेपी मदद कर सकती है।  
मिट्टी में उगीं कच्ची सब्जियों के सेवन में बरतें सावधानी  
 
प्रो. संगीता कहती हैं कि \“सिस्टीसरकोसिस\“ नामक रोग फीताकृमि के लार्वा (सिस्टिसेरकस) के कारण होता है और यह दूषित मिट्टी या पानी के माध्यम से फैलता है। यह भी बड़ी संख्या में न्यूरो संबंधित विकारों का कारण बन रहा है। मिट्टी में उग कच्ची सब्जियां या पानी का सेवन करने में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि इससे यह लार्वा शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और रक्तप्रवाह के माध्यम से मांसपेशियों, आंखों और मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं।  
 
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