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वाराणसी में असि का संगम स्थल बदलने से गंगा में बढ़ गया सिल्ट का संकट

LHC0088 5 day(s) ago views 561

  

नगर निगम के सिल्ट बहाने से सरकार की मंशा को पलीता लग रहा है।



शैलेश अस्थानाl जागरण वाराणसी। गंगा के साथ छल पर छल हुआ। गंगा की स्वच्छता के नाम पर 80 के दशक से अब तक सरकारों ने अरबों रुपये खर्च कर डाले, लेकिन समस्या ज्यों की त्यों है। इधर एक दशक में थोड़े बहुत सुधार की उम्मीद जग रही थी तो नगर निगम के सिल्ट बहाने से सरकार की मंशा को पलीता लग रहा है।  विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

आज से लगभग 40 वर्ष पूर्व 1983 से 85 के बीच ऐसी ही एक अवैज्ञानिक सोच ने बिना नदी विज्ञान को समझे असि का संगम स्थल बदलकर आज के रविदास घाट के पास कर दिया। इस बदलाव के कारण गंगा में घाटों पर सिल्ट जमा होने की समस्या उत्पन्न हुई और उसका निस्तारण भी अवैज्ञानिक तरीके से गंगा में ही बहाकर किया जा रहा है।

यही नहीं असि को गंगा से सीधे 90 अंश के कोण पर मिला दिया गया। अब भारी मात्रा में सिल्ट जमने की कहानी यहीं से शुरू होती है। गंगा विज्ञानी प्रो. बीडी त्रिपाठी बताते हैं कि कोई छोटी नदी कहीं भी बड़ी नदी से समकोण पर संगम नहीं करती। यह नदी की प्रकृति है कि वह हमेशा न्यूनकोण पर संगम करती है और अपने प्रवाह को बड़ी नदी में विलीन कर उसका बहाव तेज कर देती है।

संगम कोण में एक से दो अंश का परिवर्तन भी नदी की स्थिरता को प्रभावित करता है। असि नदी भी असि घाट पर यही कार्य गंगा के साथ करती थी। संगम स्थल पर प्रवाह तेज होने से गंगा में पीछे से आ रहे अपशिष्ट, सिल्ट और असि के सिल्ट और गाद तेज प्रवाह से मध्य धारा की ओर धक्के के साथ बढ़ जाते थे तथा बहकर आगे निकल जाते थे, घाटों पर उनका जमाव नहीं होता था।

1983 से 85 के बीच असि के संगम को रविदास घाट ले जाकर उसे कृत्रिम रूप से समकोण कर दिया गया। दुष्परिणाम यह हुआ कि नाले में परिवर्तित हो चुकी असि के साथ शहर से जाने वाली गाद, कीचड़, कूड़े-कचरों के ढेर और सिल्ट वहीं मुहाने पर एकत्र होने लगे और असि का अवतल की ओर तेज प्रवाह तथा कूड़ा कचरा गंगा के प्रवाह में बाधक बन गया। गंगधार को असि की सीधी टक्कर मारती धारा ने मंद कर दिया। इस अवरोध से गंगा के साथ पीछे से आने वाली सिल्ट भी अब गंगा के नतोदर ढाल यानी घाटों की ओर जमा होने लगी। अब हाल यह कि असि से लेकर दशाश्वमेध तक हर घाट बाढ़ आने पर सिल्ट से पट जाते हैं।  

कहां से आती है सिल्ट

प्रो. त्रिपाठी बताते हैं कि हिमालय से आने वाली नदियों में पानी के साथ मैदानी क्षेत्रों में गाद का आना स्वाभाविक है। बाढ़ के समय नदियों में केवल पानी ही नहीं आता, उसके साथ नदी के ऊपरी जल ग्रहण क्षेत्र में जो भूमि का क्षरण होता है, उसके साथ वाली मिट्टी भी आती है जिसे हम गाद कहते हैं। प्रकृति ने नदियों को जो दायित्व सौंपा है उसमें भूमि निर्माण एक महत्वपूर्ण काम है जिसमें इस गाद की बहुत बड़ी भूमिका होती है।

अगर हम लोग गंगा या ब्रह्मपुत्र घाटी की बात करें तो इनका निर्माण ही नदियों द्वारा बरसात के समय लाई गई गाद ने ही किया है। ऊपर से आई हुई गाद ने पाट कर इस मैदानी इलाके का निर्माण कर दिया। फिर इसमें बसाहट हो गई और आज का इसका स्वरूप उभरा है। ऐसा होने में करोड़ों साल लगे होंगे, लेकिन यह प्रक्रिया आज भी रुकी नहीं है।

यह गाद पानी के माध्यम से ही सब जगह पहुंचती है। यह खेतों के लिए अत्यंत उपजाऊ है। गाद यदि नदी में जमा होगी तो वह जल संचयन क्षमता घटा देगी। पानी तो बह जाएगा, भाप बन कर उड़ जाएगा, जमीन में रिस जाएगा, पर गाद जहां ठहर गई, वहीं रहेगी और साल दर साल बढ़ती जाएगी। चिंता का विषय यही है।

नगर निगम की उलटबांसी और भी सत्यानाशी  

असि का संगम बदलकर चार दशक पूर्व जो अपराध किया गया था, उसके बाद नगर निगम विभाग उसे साल दर साल उसे बढ़ाने में लगा है। काशी में उत्तरवाहिनी गंगा के पुण्य प्रवाह, उनके अर्धचंद्राकार स्वरूप के साथ ही पूरी पारिस्थितिकी बदलने का उपक्रम बकायदा गंगा के प्रति अगाध आस्था रखने वाली आम जनता के खून-पसीने की कमाई के सरकारी धन से की जा रही है।

कहां सरकारी विभाग और प्रशासन लोगों को गंगा के बचाने के 
लिए जागरूक करते हुए लाखों रुपये खर्च कर जगह-जगह संदेश प्रसारित करते हैं कि गंगा में फूल माला, पूजन सामग्री के निर्माल्य न बहाएं, सुप्रीम 
कोर्ट ने मूर्ति विसर्जन तक पर रोक लगा दी है, वहीं नगर निगम लगातार लाखों टन बाढ़ में बहकर आई सिल्ट गंगा में बहा दे रहा है।  

गंगा की पारिस्थितिकी बदली तो बनारस का क्या होगा बीएचयू आइटी के पूर्व प्रोफेसर गंगाविद प्रो. यूके चौधरी कहते हैं कि गंगा की पारिस्थितिकी बदलेगी तो बनारस की पहचान बदल जाएगी। असि का संगम बदलने से आज असि घाट ही नही, हरिश्चंद्र, मणिकर्णिका, पंचगंगा और रामघाट तक सिल्ट जमाव होने लगा है।
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