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मोहम भागवत ने दिया बड़ा बयान, कहा- भारतीयों ने विश्व को ज्ञान दिया, पर किसी पर अधिकार नहीं जमाया

deltin33 2025-10-19 23:38:15 views 899

  

भागवत का आह्वान विदेशी प्रभाव से मुक्त हो भारतीय चिंतन (फाइल फोटो)



डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारतीयों को अपनी सोच और शिक्षा को विदेशी प्रभाव से मुक्त कर भारतीय ज्ञान परंपरा को समझना होगा। मुंबई में \“आर्य युग\“ ग्रंथ के विमोचन कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि हम सबने मैकाले शिक्षा प्रणाली के तहत पढ़ाई की, जिससे हमारा विचार भारतीय होते हुए भी विदेशी हो गया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

उन्होंने जोर देकर कहा कि जब तक हम इस मानसिक गुलामी से पूरी तरह मुक्त नहीं होंगे, तब तक अपनी परंपरागत ज्ञान प्रणाली का मूल महत्व नहीं समझ पाएंगे।भागवत ने कहा कि प्राचीन भारत में शिक्षा का आधार राष्ट्र और मानवकल्याण था, जबकि वर्तमान शिक्षा केवल भौतिक सफलता तक सीमित है।
भागवत ने की पुरानी संस्कृति और परंपरा की बात

उन्होंने आधुनिक विज्ञान का उदाहरण देते हुए कहा कि इंद्रियों से दिखाई देने वाली दुनिया वास्तविक सत्य नहीं होती, उसे समझने के लिए हमें मस्तिष्क से आगे बढ़कर आध्यात्मिक चेतना को अपनाना होगा। प्रेट्र के मुताबिक, भागवत ने कहा कि भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों और ज्ञानियों ने मेक्सिको से साइबेरिया तक की यात्राएं कीं और विज्ञान, संस्कृति व आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार किया, लेकिन कभी किसी देश पर कब्जा नहीं किया और न ही धर्म परिवर्तन कराया।

भागवत ने कहा, “हमारी परंपरा सद्भाव और एकता का संदेश देती है। हमने दुनिया को जोड़ने का काम किया, तोड़ने का नहीं।\“\“उन्होंने यह भी कहा कि इतिहास में कई आक्रमणकारियों ने भारत को लूटा और गुलाम बनाया, लेकिन सबसे बड़ी क्षति तब हुई जब भारतीयों के मन और आत्मविश्वास को गुलाम बनाया गया। अब समय है कि हम अपनी मूल पहचान, आध्यात्मिक शक्ति और वैज्ञानिक दृष्टि को पुन: स्थापित करें और दुनिया को ज्ञान देने की अपनी भूमिका निभाएं।
गुलाम मानसिकता की जड़ मैकाले ज्ञान प्रणाली

मैकाले ज्ञान प्रणाली ब्रिटिश राज के समय भारत में लाई गई। इसकी शुरुआत अंग्रेजों ने 1835 में की ताकि भारतीयों को अपनी संस्कृति और ज्ञान से दूर करके अंग्रेजों जैसा सोचने वाला बनाया जा सके।

मैकाले ने क्या बदलाव किया 1800 के दशक में थामस बबिंगटन मैकाले नाम के ब्रिटिश अधिकारी ने रिपोर्ट तैयार की, जिसमें कहा गया कि भारत के संस्कृत, फारसी, गुरुकुल प्रणाली में ज्ञान न के बराबर है। 1835 में अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम के जरिये भारत में स्कूल-कालेजों का चलन शुरू किया गया और अंग्रेजी को मुख्य भाषा बना दिया गया।

भारतीय शिक्षा प्रणाली को हुआ नुकसान भारतीय भाषाओं और पारंपरिक ज्ञान को दरकिनार किया गया। इससे पीढि़यां अपनी जड़ों और संस्कृति से कट गईं। अंग्रेजी पर जोर देने से केवल धनाढ्य वर्ग को फायदा हुआ। गरीब और ग्रामीण बच्चे शिक्षा से वंचित रह गए। इससे समाज में असमानता बढ़ी। रचनात्मकता और गहराई के बजाय रटने और नौकरी केंद्रित शिक्षा को बढ़ावा मिला।
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