आर्थिक स्थिरता का उदाहरण बना भारत, स्थायी रिटर्न देने वाला बनता जा रहा है देश

cy520520 2025-10-18 04:36:49 views 1272
  



अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा जारी वर्ल्ड इकोनमिक आउटलुक रिपोर्ट में भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान बढ़ाया जाना भारत की नीतिगत स्थिरता, उपभोग शक्ति और आत्मनिर्भर विकास माडल पर दुनिया के बढ़ते भरोसे की गवाही है। दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं मुद्रास्फीति, ट्रेड वार और मंदी की आशंकाओं से जूझ रही हैं। इस बीच भारत ने एक बार फिर वैश्विक मंच पर अपनी आर्थिक क्षमता और नीतिगत संतुलन को साबित किया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

आईएमएफ ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर को 6.6 प्रतिशत तक संशोधित किया है, जो जुलाई में जारी अनुमान से 10 आधार अंक अधिक है। वैश्विक औसत वृद्धि दर जहां 3.2 प्रतिशत के आसपास ठहरी हुई है, वहीं भारत का प्रदर्शन लगभग दोगुना है। यह वृद्धि उस समय आई है, जब चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते टैरिफ विवादों ने वैश्विक व्यापारिक प्रवाह को अस्थिर कर दिया है और यूरोपीय अर्थव्यवस्थाएं ऊर्जा संकट और मंदी के दबाव से जूझ रही हैं। ऐसे माहौल में भारत की स्थिर आर्थिक गति अपने आप में असाधारण है।

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने पिछले एक दशक में जिस नीतिगत संरचना को अपनाया है, वह अल्पकालिक राहत योजनाओं से आगे जाकर दीर्घकालिक विकास को केंद्र में रखती है। सरकार का ध्यान उपभोग आधारित विकास से हटकर निवेश और उत्पादन आधारित माडल पर केंद्रित हुआ है। पूंजीगत व्यय में लगातार वृद्धि, मेक इन इंडिया और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआइ) जैसी योजनाओं ने घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को गति दी है। इसका परिणाम यह हुआ है कि भारत अब केवल कंज्यूमर मार्केट नहीं, बल्कि उत्पादन केंद्र के रूप में उभर रहा है।

इसका प्रभाव निर्माण, परिवहन, रक्षा और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों में साफ दिखता है। ग्रामीण भारत में बढ़ती क्रय शक्ति और शहरी क्षेत्रों में सर्विस सेक्टर का विस्तार भी आंतरिक मांग को स्थिर बनाए हुए है। आईएमएफ की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से यह मानती है कि भारत की वृद्धि मुख्यतः घरेलू मांग में वृद्धि से है, जो वैश्विक अनिश्चितताओं से अपेक्षाकृत सुरक्षित है।
आरबीआई की संतुलित मौद्रिक नीति भी देश की आर्थिक स्थिरता की बड़ी वजह रही है। वैश्विक स्तर पर जहां कई केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में असफल रहे, वहीं भारत ने ब्याज दरों के प्रबंधन और मुद्रास्फीति नियंत्रण के बीच संतुलन बनाए रखा।

मौद्रिक नीति समिति ने बार-बार यह दोहराया है कि वृद्धि और मूल्य स्थिरता, दोनों को समान प्राथमिकता दी जाएगी। इसके परिणामस्वरूप खुदरा मुद्रास्फीति अब नियंत्रित दायरे में लौट आई है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 650 अरब डालर से अधिक पर स्थिर है, जो बाहरी झटकों से सुरक्षा कवच की तरह काम करता है। वित्तीय अनुशासन और नीति निरंतरता का यह संयोजन भारत की विकास दर को न केवल टिकाऊ बनाता है, बल्कि निवेशकों के लिए भरोसेमंद माहौल भी तैयार करता है।

आईएमएफ की रिपोर्ट यह भी बताती है कि 2025-26 में भारत की विकास दर 6.2 प्रतिशत पर स्थिर रहेगी, जबकि चीन की वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत तक सीमित रहने का अनुमान है। यूरो जोन की औसत वृद्धि दर 1.5 प्रतिशत से नीचे है और अमेरिका भी 2 प्रतिशत के आसपास अटका हुआ है। इस संदर्भ में भारत का प्रदर्शन केवल एशिया में नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अलग दिखाई देता है।

अमेरिका और चीन के बीच चल रहे टैरिफ विवाद से जब अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं अस्थिरता का सामना कर रही हैं, तब भारत ने अपने व्यापारिक और कूटनीतिक समीकरणों को अत्यंत कुशलता से साधा है। भारत ने खुद को एक विश्वसनीय सप्लाई चेन सेंटर के रूप में स्थापित किया है। सेमीकान इंडिया, मेक इन इंडिया 2.0 और नेशनल लॉजिस्टिक्स पालिसी जैसे कदम इसी व्यापक रणनीति का हिस्सा हैं।

भारत की आर्थिक कहानी का एक और महत्वपूर्ण पक्ष इसका वित्तीय अनुशासन है। कोरोना के बाद जब अधिकांश देशों ने घाटा बढ़ाकर राहत पैकेजों पर खर्च किया, तब भारत ने राजकोषीय विस्तार को सीमित रखते हुए पूंजीगत निवेश को प्राथमिकता दी। आम बजट में सरकार ने उपभोग बढ़ाने के बजाय उत्पादक निवेशों को प्रोत्साहित किया। इस रणनीति का प्रभाव यह हुआ कि सरकार का ऋण से जीडीपी अनुपात नियंत्रित रहा और अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने भारत की स्थिरता पर भरोसा जताया।

विदेशी निवेशकों के लिए भारत अब केवल तेजी से बढ़ता बाजार ही नहीं, बल्कि एक ‘स्थायी रिटर्न डेस्टिनेशन’ बनता जा रहा है। भारत की आर्थिक सफलता का एक और महत्वपूर्ण आयाम उसकी आर्थिक कूटनीति है। आईएमएफ और विश्व बैंक जैसे मंचों पर भारत अब नीति-निर्माण की दिशा प्रभावित करने वाला देश बन चुका है। जी20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ने ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर’ के सिद्धांत के साथ जिस संतुलित आर्थिक दृष्टि को प्रस्तुत किया, उसने विकासशील देशों की आवाज को नया सम्मान दिलाया।

ऊर्जा सुरक्षा और हरित निवेश जैसे क्षेत्रों में भारत की पहल ने एक नए आर्थिक मॉडल का खाका खींचा है, जो पश्चिमी पूंजीवाद की नकल नहीं, बल्कि भारतीय परिस्थितियों से जन्मा आत्मनिर्भर मॉडल है। यही कारण है कि आईएमएफ जैसी संस्थाएं अब भारत की विकास गति को वैश्विक स्थिरता के लिए ‘महत्वपूर्ण स्तंभ’ मानने लगी हैं।

(लेखक प्रसार भारती के चेयरमैन हैं)
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