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नीमन-पिक रोग ने बढ़ाई अभिभावकों की टेंशन, एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी में क्यों हो रही मुश्किल?

cy520520 2025-10-17 17:08:08 views 423

  



मुहम्मद रईस, नई दिल्ली। नीमन-पिक लाइसोसोमल जमा होना बीमारी का एक प्रकार है। इसमें लाइसोसोम यानी झिल्ली से घिरा कोशिकांग, जिसमें पाचक एंजाइम होते हैं, वह जमा होने लगते हैं।

टाइप-ए और बी स्फिंगोमायलिनेज होते हैं और ऊतकों में स्फिंगोमाइलिन बनने की वजह से होता है। टाइप सी लिपिडोसिस होता है, जो सेल में कोलेस्ट्रोल और अन्य वसा के बनने की वजह से होता है। इस बीमारी से कई तरह की न्यूरोलाजिक समस्याएं होती हैं। यह तब होता है, जब इस रोग को उत्पन्न करने वाले दोषपूर्ण जीन माता-पिता से उनके बच्चों में चले जाते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

दुनियाभर का आंकड़ा देखें तो यह दस लाख बच्चों में से किसी एक को होता है। इसका कोई इलाज तो नहीं है, पर लक्षणों के आधार पर एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी देकर जीवन को सुधारा जा सकता है। उपचार की यह प्रक्रिया बहुत महंगी है। राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति-2021 में अब तक शामिल न होने से पीड़ितों तक सरकारी सहायता की पहुंच भी नहीं है।

एम्स के बाल रोग विभाग ने बृहस्पतिवार को नीमन-पिक इंडिया चैरिटेबल ट्रस्ट के सहयोग से एसिड स्फिंगोमायलिनेज डेफिशिएंसी (एएसएमडी) और नीमन-पिक टाइप सी (एनपीसी) पर आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में इन्हीं मुद्दों पर विमर्श किया।

दुनियाभर में इस रोग के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 19 अक्टूबर को निमन-पिक दिवस मनाया जाता है। बाल रोग विभाग के जेनेटिक्स प्रभाग की प्रभारी अधिकारी व नीमन-पीक के सेंटर आफ एक्सीलेंस की नोडल अधिकारी प्रो. नीरजा गुप्ता ने कहा कि एम्स की यह पहल केवल चिकित्सा उपचार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परिवारों को एक साझा मंच देती है, जहां वे अपने अनुभव साझा कर सकें।

भारत में अल्ट्रा-रेयर बीमारियों के प्रति बढ़ती जागरूकता और एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी जैसे उपचारों की उपलब्धता से नई उम्मीदें जगी हैं। एएसएमडी (टाइप ए व बी) के उपचार में हुई प्रगति यह दर्शाती है कि ये बच्चे भी बेहतर जीवन जी सकते हैं। वहीं नीमन-पिक टाइप सी के लिए उपचार सुलभ कराने के प्रयास जारी हैं।

नीमन-पिक इंडिया चैरिटेबल ट्रस्ट की सह-संस्थापक नविनतारा कामत ने कहा कि देश में एएसएमडी के मरीज अब जीवन रक्षक एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी ले रहे हैं, जबकि एनपीसी मरीजों के लिए उपचार की स्वीकृति मिलनी शेष है।
गोरखपुर के दो भाइयों को दी जा रही ईआरटी

गोरखपुर निवासी जयप्रकाश के दो बच्चे हैं, आठ वर्ष का आर्यन और छह वर्ष का अभिनय। दोनों एएसएमडी से पीड़ित हैं। पिछले साल अक्टूबर में आर्यन आइसीयू में था, जबकि अभिनय की भी हालत ठीक नहीं थी। दोनों बच्चों को एम्स में कम्पैशनेट एक्सेस प्रोग्राम के तहत एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी दी जा रही है।

पिता जयप्रकाश ने कहा कि इस उपचार के बाद बच्चों का जीवन सामान्य हो गया है। दोनों स्वस्थ हैं और नियमित रूप से स्कूल भी जा रहे हैं। देश के अन्य कई बच्चे अभी भी उपचार की प्रतीक्षा में हैं। सरकार और नीति-निर्माताओं से अपील है कि इस रोग को ‘राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति 2021\“ में शामिल किया जाए, ताकि अधिकतम बच्चों तक इसका लाभ पहुंच सके।

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समस्या के बारे में आठ साल बाद चला पता

कार्यक्रम में आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम से डा. लावण्या अपने 16 वर्षीय बेटे विश्वास के साथ पहुंची। विश्वास एएसएमडी से पीड़ित है। डा. लावण्या ने बताया कि जब वह तीन-चार साल का था, तभी लिवर में समस्या थी। कई डाक्टर को दिखाया, लगातार जांच कराती रही पर कोई खास राहत नहीं मिली। जब वह 13 वर्ष का हुआ तो चेन्नई के रेला हास्पिटल में लिवर की बायोप्सी से बीमारी का पता चला। इसका उपचार बहुत महंगा था। एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी कराना सामान्य परिवार के लिए संभव नहीं है।

इसे राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति 2021 में शामिल न किए जाने से आर्थिक सहायता नहीं मिल पाती। सरकार इस बीमारी को नीति में शामिल करे ताकि किसी भी बच्चे को उपचार से वंचित न रहना पड़े।
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