पर्यवेक्षकों के साथ चुनाव आयोग की बैठक।  
 
  
 
  
 
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले चुनाव आयोग ने शुक्रवार को पर्यवेक्षकों के साथ एक लंबी बैठक की है और उन्हें चुनाव के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों और उनकी जिम्मेदारियों से अवगत कराया है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
आयोग ने इस दौरान उन्हें राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और मतदाताओं की ओर से मिलने वाली शिकायतों को तत्परता से निपटाने के निर्देश दिए है। साथ ही चुनाव के दौरान निर्वाचन क्षेत्र में अपनी सहज उपलब्धता भी सुनिश्चित कराने को कहा है।  
 
  
425 पर्यवेक्षक ही पहुंचे बैठक में  
 
इस बीच जो संकेत मिल रहे है, उनमें बिहार चुनाव की घोषणा अगले हफ्ते में सात या आठ अक्टूबर को हो सकती है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की अध्यक्षता में हुई पर्यवेक्षकों की इस बैठक में वैसे तो कुल 470 पर्यवेक्षकों को बुलाया गया था लेकिन बैठक में 425 पर्यवेक्षक ही पहुंचे थे। इनमें सामान्य पर्यवेक्षक के लिए 287 आइएएस, पुलिस पर्यवेक्षक के लिए 58 आइपीएस और आय-व्यय पर्यवेक्षक के लिए 80 आइआरएस व अन्य भारतीय सेवा के अधिकारी शामिल थे। पर्यवेक्षक के लिए चयनित बाकी अधिकारियों से अपनी दूसरी व्यस्तताओं का हवाला देते हुए बैठक में शामिल नहीं हुए।  
 
  
\“पर्यवेक्षक हैं चुनाव आयोग के आंख और कान\“  
 
इस बीच मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने पर्यवेक्षकों को लोकतंत्र का प्रकाश स्तंभ बताते हुए कहा कि वही चुनाव आयोग के आंख व कान है। ऐसे में वह चुनाव से जुड़े सभी कानूनों, नियमों व दिशा-निर्देशों का ठीक तरीके से अध्ययन कर लें। बैठक में मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ उनके सहयोगी आयुक्त डॉ. सुखबीर सिंह संधू और डॉ. विवेक जोशी भी शामिल थे।  
 
  
 
मुख्य चुनाव आयुक्त कुमार ने इस दौरान पर्यवेक्षकों से चुनाव की घोषणा के बाद तुरंत मैदान में मोर्चा संभालने व मतदान केंद्रों का दौरा करने के निर्देश भी दिया है। इस दौरान मतदान केंद्रों पर चुनाव आयोग की ओर से हाल ही में दिए गए दिशा-निर्देशों के पालन को भी जांचने का सुझाव दिया है।  
बैठक में इस बात पर किया गया फोकस  
 
बैठक में आयोग को मुख्य फोकस इस बात पर था कि चुनाव के दौरान वह निर्वाचन क्षेत्र में उपस्थित रहे। साथ ही जहां रुके, उसकी जानकारी भी सार्वजनिक करें, ताकि यदि किसी राजनीतिक दल, उम्मीदवार और मतदाता को उनसे मिलना है वह आसानी से मिल सकें। गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने पर्यवेक्षकों से क्षेत्र में रहने और अपने रहने के स्थान को सार्वजनिक करने पर यह जोर तब दिया है, जब चुनाव में अक्सर पर्यवेक्षकों के क्षेत्र से गायब रहने और न मिलने की शिकायत मिलती है।  
 
  
 
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