deltin51
Start Free Roulette 200Rs पहली जमा राशि आपको 477 रुपये देगी मुफ़्त बोनस प्राप्त करें,क्लिकtelegram:@deltin55com

संघ के सौ साल पर प्रधानमंत्री की स्वीकारोक् ...

deltin55 2025-10-3 16:28:09 views 565


इस साल 15 अगस्त को लालकिले से भाषण देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की खुल कर सराहना की थी। श्री मोदी ने संघ को दुनिया का सबसे बड़ा गैर सरकारी संगठन बताया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी खुद को सांस्कृतिक संगठन ही बताता है, जिसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन यह खुला तथ्य है कि भारतीय जनता पार्टी संघ के कारण ही अस्तित्व में आई और आज सत्ता पर विराजमान है। इस तथ्य को पहले श्री मोदी के बयान से बल मिला और अब एक कदम आगे बढ़ते हुए सरकार ने ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी समारोह का आयोजन किया। विजयादशमी पर संघ की स्थापना के सौ साल पूरे होने से पहले 1 अक्टूबर को दिल्ली में संस्कृति मंत्रालय ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें खुद प्रधानमंत्री मोदी ने शिरकत की। 1 तारीख के अखबारों में संस्कृति मंत्रालय ने संघ के शताब्दी समारोह के बड़े-बड़े विज्ञापन जारी किए। मंत्रालय ने इन विज्ञापनों के लिए लाखों रूपए जनता की गाढ़ी कमाई से हासिल टैक्स से दिए होंगे। यहां सवाल बनता है कि किसी गैर सरकारी संगठन के लिए सरकार क्यों विज्ञापन दे रही है, उसके शताब्दी समारोह का आयोजन सरकार क्यों कर रही है और किस अधिकार से जनता के धन को एक गैर सरकारी संगठन के प्रचार पर खर्च किया जा रहा है। हालांकि ये सिलसिला केवल कार्यक्रम आयोजन और विज्ञापन तक ही सीमित नहीं रहा। बुधवार 1 अक्बूटर के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने संघ शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में नए 100 रुपये के सिक्के और डाक टिकट भी जारी किए, जिस पर भारत माता की तस्वीर छपी हुई थी।  




इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा कि संघ के सौ साल महज संयोग नहीं है, ये हजारों वर्षों से चली आ रही उस परंपरा का पुनरुत्थान था जिसमें राष्ट्र चेतना, समय-समय पर उस युग की चुनौतियों का सामना करने के लिए नए-नए अवतारों में प्रकट होती है।  
इन शब्दों का विश्लेषण करें तो इसमें वही ध्वनि सुनाई देगी, जिसमें नरेन्द्र मोदी खुद को नॉनबायलॉजिकल बताते हैं। भगवत गीता में लिखा है-  
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।  




अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ 4.7॥  
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।  
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥ 4.8 ॥  
अर्थात जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं प्रकट होता हूं (अवतरित होता हूं)। साधुजनों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना करने के लिए, मैं हर युग में प्रकट होता हूं।  
अब सवाल ये है कि क्या नरेन्द्र मोदी ने खुद को अवतरित बताने के साथ-साथ संघ के लोगों को भी अवतारी बताने की कोशिश की है। क्या श्री मोदी ये बताना चाह रहे हैं कि 1925 में जब संघ की स्थापना हुई, तब राष्ट्र चेतना जगाने और उस युग की चुनौतियों का सामना करने के लिए अवतार की जरूरत थी।  




अगर श्री मोदी की बात का यही अर्थ है, तब एक नया सवाल उठता है कि 1930 में जब गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु किया, या 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ शुरु हुआ, तब संघ के किसी भी सदस्य ने उसमें हिस्सेदारी क्यों नहीं की। क्या इन आंदोलनों से राष्ट्रचेतना जाग्रत नहीं हो रही थी, या फिर संघ उस युग की असली चुनौती गुलामी को नहीं बल्कि हिंदू राष्ट्र की स्थापना को मानता था। यह स्थापित तथ्य है कि संघ के लोगों ने किसी भी तरह आजादी की लड़ाई में हिस्सेदारी नहीं की। वी डी सावरकर भी अंग्रेजों से माफी मांगकर जेल से निकल गए थे, इसके प्रमाण मौजूद हैं। संघ के लोग महात्मा गांधी, भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे देशभक्तों और क्रांतिकारियों को अराजक कहकर ब्रिटिश शासन के पक्ष में काम करता रहे, यह भी इतिहास में दर्ज है।  




1948 में महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे ने अपनी पत्रिका अग्रणी के 1945 के अंक में एक कैरिकेचर प्रकाशित किया था, जिसमें रावण के सिर की जगह महात्मा गांधी, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आज़ाद, राजगोपालाचारी जैसे नेताओं के सिर दिखाए गए थे, और उन पर बाण चलाने वाले के रूप में वी डी सावरकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी को दर्शाया गया था। जब 1950 में संविधान लागू हुआ तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उसकी मुखालफत की और उसकी मनुस्मृति की वकालत की। नागपुर में संघ मुख्यालय में तिरंगा भी कुछ बरस पहले जाकर लग पाया है, इससे पहले संघ तिरंगे को भी नहीं मानता था।  

अब संविधान हत्या विरोधी दिवस, घर-घर तिरंगा अभियान, सरदार पटेल की आसमान छूती मूर्ति बनाना या गांधीजी के नाम पर स्वच्छता दिवस मनाकर इन तथ्यों को खारिज नहीं किया जा सकता कि संघ का यकीन कभी भी उस हिंदुस्तान में नहीं रहा, जो गंगा-जमुनी तहजीब से बना और जिसकी पहचान अनेकता में एकता रही है। बल्कि हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान के मकसद को लेकर संघ आगे बढ़ा। हिंदू-मुस्लिम विभेद को समाज में बढ़ावा दिया और ऐसे संघ के लिए सरकारी आयोजन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 वर्षों की गौरवशाली यात्रा त्याग, नि:स्वार्थ सेवा, राष्ट्र निर्माण और अनुशासन की अद्भुत मिसाल है। मैं संघ के शताब्दी समारोह का हिस्सा बनकर अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूं। ये हमारी पीढ़ी के स्वयंसेवकों का सौभाग्य है कि हमें संघ के शताब्दी वर्ष जैसा महान अवसर देखने को मिल रहा है।  
प्रधानमंत्री मोदी संवैधानिक मर्यादा को किनारे करते हुए खुद को गर्व से संघ का स्वयंसेवक बता रहे हैं। आज के भारत का यही न्यू नॉर्मल बना दिया गया है। लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या लोकतंत्र के लिए यह वाकई सामान्य बात है, या इस पर चिंतित होना चाहिए।






Deshbandhu



PM ModiBJPrsspolitics









Next Story
like (0)
deltin55administrator

Post a reply

loginto write comments

Explore interesting content

deltin55

He hasn't introduced himself yet.

5579

Threads

12

Posts

110K

Credits

administrator

Credits
16983
Random