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Mahatma Gandhi : रांची में महात्मा गांधी को वो भाषण, जिसने जलाई थी स्वदेशी आंदोलन की मशाल; इस जगह हुई थी सभा_deltin51

LHC0088 2025-10-2 00:06:44 views 933

  सौ साल पहले 1925 में रांची में गांधी ने दिया था भाषण। फाइल फोटो





संजय कृष्ण, रांची। अपने जीवन काल में महात्मा गांधी रांची और झारखंड 1917 के चंपारण आंदोलन से लेकर अंतिम बार रामगढ़ में संपन्न रामगढ़ कांग्रेस में भाग लेने आए थे। इसके बाद आज से सौ साल पहले गांधीजी की दूसरी यात्रा 1925 में शुरू हुई। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

उन्होंने 1925 में 13 से 18 सितंबर तक झारखंड की यात्रा चार पहिया से की। इस दौरान वे पुरुलिया, चाईबासा, चक्रधरपुर, खूंटी, रांची, मांडर, हजारीबाग में रहे और इन स्थानों पर आयोजित अनेक बैठकों को संबोधित किया।



17 को उन्होंने रांची के संत पाल स्कूल के मैदान में तीन बजे सभा को संबोधित किया। उन्होंने चरखा की बात की और लोगों ने एक हजार रुपये की थैली उस सभा में गांधीजी को भेंट की। अपराह्न तीन बजे सभा को संबोधित किया था।

सभा में रांची की जनता की ओर से उन्हें एक मानपत्र तथा देशबंधु स्मारक कोष के लिए एक हजार एक रुपये की थैली भी भेंट की गई थी।
गांधीजी का भाषण

गांधीजी ने इस सभा में कहा था कि सिर्फ चरखा ही भारत के करोड़ों लोगों की भूख मिटा सकता है।बेशक खाली समय में करने को और भी धंधे हैं, परन्तु जिसे लाखों लोग अपना सकें, ऐसा उपयुक्त धंधा चरखे पर सूत कातने के अलावा और कोई नहीं है।



मैं पूरे देश में घूमता रहा हूं, लेकिन अभी तक किसी ने कोई ऐसा धंधा नहीं सुझाया, जो चरखे का स्थान ले सके। बिहार के पास एक लाख रुपये की खादी पड़ी है। यदि वह बिक जाए तो प्राप्त धन से दूनी खादी बन सकती है।

अकेला रांची ही आसानी से इतनी खादी खरीद सकता है। लोग मिल के कपड़े को स्वदेशी मान लेते हैं, लेकिन दिल्ली और बंबई के बने बिस्कुट क्या घर की रोटी का स्थान ले सकते हैं?

तब फिर आपको भी बंबई की मिलों में बने कपड़े के बजाय बिहार में बनी खादी क्यों नहीं पहननी चाहिए? यदि आपको अपनी निर्वसना मां-बहनों का तन ढंकना हो तो आपको खादी ही खरीदनी चाहिए।



खादी अपेक्षाकृत महंगी है तो क्या हुआ, उसके लिए दी गई हर पाई गांवों की गरीब स्त्रियों को मिलती है। बंबई के अंत्यजों की रक्षा इसी चरखे ने की है। अस्पृश्यता को समस्या का उल्लेख करते हुए गांधीजी ने कहा कि हिंदू धर्म में अस्पृश्यता जैसी कोई चीज नहीं है।

इसी अस्पृश्यता ने भारतीयों को सारे संसार में अस्पृश्य बना दिया है। आपको इन अस्पृश्य भारतीयों की दशा देखनी हो तो दक्षिण अफ्रीका जाइए, आपको मालूम होगा कि अस्पृश्यता क्या चीज है।west-champaran-general,Chief Minister Nitish Kumar, West Champaran, West Champaran News, Bihar News,Bihar news   



स्वर्गीय गोखले इसे अच्छी तरह जानते थे और अब भारत भी जान गया है। तुलसीदास ने आपको दया-धर्म की शिक्षा दी है, लेकिन आज आप उसके विपरीत आचरण कर रहे हैं।

आपको अस्पृश्यता की यह समस्या दूर करती ही है, अन्यथा स्वराज्य कभी नहीं मिल सकता। झारखंड से लौटने के बाद यंग इंडिया के आठ अक्टूबर 1925 के अंक में छोटानागपुर में शीर्षक से उन्होंने दो संक्षिप्त संस्मरण भी लिखा।
योगदा आश्रम में भी गए थे गांधीजी

गांधीजी लिखते हैं, छोटानागपुर प्रवास के दौरान और भी कई दिलचस्प बातें हुई जिनमें खद्दर पर एनके राय और उद्योग विभाग के एसके राव के साथ हुई चर्चा तो शामिल है। ब्रह्मचर्य आश्रम (अब योगदा सत्संग आश्रम) का विजिट भी स्मरणीय है, जिसकी स्थापना कासिमबाजार के महराजा की देन है।



मोटरगाड़ी से ही हम रांची से हजारीबाग गए, जहां पहले से तयशुदा कार्यक्रमों के अलावा मुझे संत कोलंबा मिशनरीज कालेज, जो बहुत पुराना शिक्षण संस्थान है, के छात्रों को भी संबोधित करने का आमंत्रण मिला।

गांधीजी ने वहां भी संबोधित किया और फिर पलामू आदि की भी यात्रा की। अंतिम बार गांधीजी ने रामगढ़ कांग्रेस में आए थे और करीब दस दिनों तक यहां रहे थे।
गांधी जयंती पर खादी वस्त्रों पर 30 प्रतिशत की छूट

दो अक्टूबर को गांधी जयंती पर है और गांधी संस्थानों की ओर से खादी पर 30 प्रतिशत की छूट दी जा रही है। शहीद चौक स्थित छोटानागपुर खादी ग्रामोद्योग संस्थान, जिसकी स्थापना डा राजेंद्र प्रसाद ने की थी, 30 प्रतिशत की छूट दी जा रही है।



सूती खादी, ऊनी खादी, रेशमी खादी, कंबल खादी पर छूट का लाभ ले सकते हैं। वहीं, वृंदावन कालोनी स्थित खादी इंडिया में भी अधिकतम चालीस प्रतिशत की छूट दी जा रही है। तिरिल आश्रम धुर्वा में भी छूट दी जाएगी। आश्रम के सभी स्टालों पर ग्राहक इसका लाभ उठा सकते हैं।

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