रामगढ़ ने पार्टी को एक नई पहचान और पहली स्पष्ट झलक दी
डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार विधानसभा चुनावों में इस बार एक ऐसी सीट रही, जिसने पूरे राज्य में राजनीतिक चर्चाओं को नई दिशा दे दी। यह सीट है रामगढ़, जहां बहुजन समाज पार्टी (BSP) के उम्मीदवार सतीश कुमार सिंह यादव ने बेहद रोमांचक मुकाबले में जीत हासिल की। यह जीत इसलिए खास है क्योंकि बिहार की राजनीति में BSP को अक्सर हाशिये पर माना जाता रहा है और उसका प्रभाव सीमित दिखाई देता था, लेकिन इस बार रामगढ़ ने पार्टी को एक नई पहचान और पहली स्पष्ट झलक दी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
सतीश कुमार सिंह यादव ने 72,689 वोट हासिल कर भाजपा के अशोक कुमार सिंह को मात्र 30 वोटों से हराया है।
यह अंतर इतना कम था कि रातभर गिनती के दौरान सीट बार-बार पलटती रही। कई बार ऐसा लगा कि भाजपा बाजी मार लेगी, लेकिन अंतिम चरण में BSP प्रत्याशी ने मामूली अंतर से इतिहास रच दिया।
भाजपा उम्मीदवार अशोक कुमार सिंह को 72,659 वोट मिले। यह परिणाम खुद इस बात की गवाही है कि मतदाताओं के बीच मुकाबला अत्यंत कड़ा था। इतने कम अंतर से जीत दर्ज होना बिहार के चुनाव इतिहास में दुर्लभ है।
इस सीट पर आरजेडी प्रत्याशी अजीत कुमार तीसरे स्थान पर रहे, जिन्हें 41,480 वोट मिले। उनके और विजेता के बीच अंतर 31,209 वोट का रहा। इससे साफ है कि रामगढ़ का मुकाबला दो ध्रुवों BSP और BJP के बीच सिमट गया था।
अन्य उम्मीदवारों में जन सुराज पार्टी के आनंद कुमार सिंह को 4,426 वोट, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के घुरेलाल राजभर को 1,779 वोट, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार रामप्रवेश सिंह को मात्र 657 वोट मिले।
NOTA ने भी इस सीट पर 1,154 वोट हासिल किए, जो स्थानीय मतदाताओं की असंतुष्टि का संकेत माना जा रहा है।
BSP के लिए यह जीत केवल एक सीट नहीं, बल्कि राज्य में संभावनाओं का नया द्वार है। पिछले कई चुनावों में पार्टी को नगण्य वोट या उपस्थिति मिलती थी।
परंतु रामगढ़ की इस जीत ने संकेत दे दिया है कि सामाजिक समीकरण और स्थानीय रणनीतियों के आधार पर BSP अब बिहार में अपना आधार बढ़ाने की दिशा में कदम रख सकती है।
राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह जीत दलित–पिछड़ा–अल्पसंख्यक समीकरण की ओर इशारा करती है, जिसे BSP ने इस क्षेत्र में मजबूत तरीके से साधा।
इसके साथ ही भाजपा को मिली बेहद करीबी हार बताती है कि राज्य की राजनीति में छोटे दल भी निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
कुल मिलाकर, यह मुकाबला न केवल चुनावी आंकड़ों के लिहाज़ से ऐतिहासिक रहा, बल्कि इसने BSP को बिहार की राजनीति में पहली बड़ी पहचान भी दिलाई, एक ऐसी पहचान, जो आने वाले चुनावों में नए समीकरणों का आधार बन सकती है। |