महिला वोटर नीतीश कुमार की सबसे मजबूत ढाल और तलवार दोनों।
डॉ चंदन शर्मा, पटना। बिहार की सियासत में एक खामोश क्रांति चल रही है, जिसका नाम है महिला वोट बैंक। यह कोई नई जाति नहीं, न कोई पारंपरिक समुदाय, बल्कि एक स्कीम आधारित, लाभार्थी-केंद्रित, सशक्तिकृत महिला शक्ति है। यह पिछले डेढ़ दशक से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सबसे मजबूत ढाल और तलवार दोनों बनी हुई है। 2025 के विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल्स में NDA को मिली प्रचंड बढ़त (130-165 सीटें) का सबसे बड़ा राज़ यही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
भारत निर्वाचन आयोग के अनुसार Bihar election 2025 में पहले फेज में कुल 65.08 प्रतिशत मतदाताओं में 61.56 प्रतिशत पुरुष एवं 69.04 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया। वहीं दूसरे चरण में हुए कुल 69.20 प्रतिशत मतदान में 64.41 प्रतिशत पुरुष तथा 74.56 प्रतिशत महिलाओं की सहभागिता रही। इस प्रकार द्वितीय चरण में 10.15 प्रतिशत महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा मतदान किया।
वहीं प्रथम चरण में पुरुषों की तुलना में 7.48 प्रतिशत अधिक महिलाओं ने मताधिकार का प्रयोग किया था। यह अतिरिक्त महिला वोट का फेवर का असली असर कल परिणाम में मालूम चलेगा। Exit poll का एनडीए के फेवर में दिखने की यही वजह है।
जब जातीय समीकरण टूटते हैं, गठबंधन डगमगाते हैं। एंटी-इनकंबेंसी की आंधी चलती है, तब यही महिला वोटर खामोशी से आती है, वोट डालती है और सत्ता की दिशा बदल देती है। नीतीश कुमार ने इसे समझा, इसे बनाया, और इसे \“लाभार्थी से भागीदार\“ का मॉडल देकर अटल कर दिया।
10,000 रुपए खाते में जाना बड़ा फैक्टर
चुनाव रणनीतिकार मनीष यादव कहते हैं, जब जीविका दीदी खुद वोट मांगने निकलती है, तो प्रचार की जरूरत नहीं पड़ती। यह विश्वसनीयता का सबसे बड़ा प्रमाण है। 2020 के चुनाव में भी महिलाओं के उच्च टर्नआउट वाली 167 सीटों पर NDA ने 92 जीतीं, जो कुल जीत का 55% से अधिक था। महिलाओं के खाते में 10,000 रुपए एकमुश्त जाना बड़ा कारक बना है।
लोकनीति-सीएसडीएस सर्वे में 2.08 करोड़ महिला वोटरों में NDA को 38% समर्थन मिला, जबकि महागठबंधन को 37% यानी 2.08 लाख अतिरिक्त महिला वोट NDA के पक्ष में हो सकता है।
बिहार में महिला नेतृत्व के मुद्दे पर दो दशक से कार्यरत शाहिना परविन कहती हैं- महिलाएं अब जाति की भाषा नहीं, स्कीम की भाषा बोलती हैं। नीतीश ने उन्हें सिर्फ़ लाभ नहीं दिया, बल्कि सत्ता में हिस्सेदारी दी। यही उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी है। हालांकि महिलाओं का वोट भी बंटा है। रिजल्ट का इंतजार करना चाहिए।
नीतीश को महिला वोट का फेवर कैस मिल रहा? 11 बिंदुओं से समझें।
1. 50% पंचायती आरक्षण का गांवों में सीधा असर
नीतीश सरकार का पहला मास्टरस्ट्रोक। बिहार में पहली बार महिलाओं को पंचायतों और नगर निकायों में 50% आरक्षण दिया गया। परिणाम? आज लगभग 1.35 लाख महिला सरपंच, मुखिया और पार्षद सत्ता के केंद्र में हैं। ये महिलाएं अब घर से बाहर नहीं, सत्ता के भीतर हैं। शाहिना परविन का मानना है कि यह आरक्षण महिलाओं को निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्थायी भागीदार बनाता है।
2. मुफ्त साइकिल योजना भावी वोटर बनाया
लड़कियों की स्कूल ड्रॉपआउट दर 40% से घटकर 18% हुई। 14 लाख से अधिक साइकिलें हर साल वितरित। यह योजना 2007 से लागू है। एक साइकिल ने न सिर्फ़ पढ़ाई, बल्कि गतिशीलता और आत्मविश्वास दिया। मां-बाप कहते हैं, नीतीश बाबू ने हमारी बेटी को पंख दिए। यह योजना महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बनी, जो उच्च टर्नआउट का आधार है।
3. शराबबंदी 2016 में लागू, महिलाएं तब से पक्की समर्थक
बिहार में शराबबंदी लागू करने वाला पहला बड़ा राज्य। सर्वे बताते हैं, घरेलू हिंसा में 35% कमी, महिलाओं की बचत में 22% वृद्धि। शराबबंदी कोई नैतिक नीति नहीं, बल्कि महिलाओं की सुरक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता का हथियार बना। यह महिलाओं को स्वतंत्र वोटिंग की आजादी देती है।
4. जीविका दीदी नेटवर्क
10 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूह से 1.2 करोड़ महिलाएं जुड़ीं। ये दीदियां अब सिर्फ़ लोन नहीं लेतीं, बल्कि NDA का डोर-टू-डोर कैंपेन चलाती हैं। 2025 में महिला संवाद अभियान में इन्हीं दीदियों ने दो करोड़ घरों तक नीतीश का संदेश पहुंचाया। महागठबंधन ने जीविका वर्कर्स को सरकारी नौकरी का वादा किया, लेकिन एनडीए की विश्वसनीयता भारी पड़ी।
5. मुख्यमंत्री महिला रोजगार ऋण योजना
हर पात्र महिला को 10,000 रुपए नकद सहायता के साथ 2 लाख तक बिना गारंटी लोन। 2024-25 में 18 लाख महिलाओं को लाभ मिला। यह योजना सिर्फ़ पैसा नहीं, स्वरोजगार की शुरुआत है। चुनाव से ठीक पहले 1.21 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपए वितरित। यही कैश ट्रांसफर NDA की जीत का फॉर्मूला बन सकता है।
6. मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना
जन्म से लेकर स्नातक तक 54,100 रुपए तक की सहायता। 1.8 करोड़ लड़कियों को लाभ। यह योजना सिर्फ़ आर्थिक नहीं, लैंगिक समानता की नींव है। महागठबंधन के 30,000 रुपए वार्षिक वादे के बावजूद, नीतीश की 20 साल पुरानी योजनाओं पर भरोसा कायम रहा।
7. छात्रा पोशाक योजना
हर साल 1.40 करोड़ छात्राओं को यूनिफॉर्म भत्ता। छोटी राशि, लेकिन नियमितता और विश्वसनीयता का प्रतीक। यह हर साल आता है, भरोसा है। यह छोटी-छोटी स्कीम्स ही महिला वोट को फेवर में करती हैं।
8. सुरक्षा का भाव: जंगलराज vs सुशासन
प्रधानमंत्री मोदी सहित एनडीए के तमाम नेताओं ने इसे मुद्दा बनाए रखा। 2005 से पहले रात 8 बजे के बाद सड़कें खाली। आज 22-24 घंटे बिजली, 26,000 किमी सड़कें, पुलिस थाने में महिला डेस्क। इसलिए अब महिलाएं कभी भी कहीं भी बाहर आ जा सकती हैं। महिला वोटर के टर्नआउट में यह बड़ा कारक बना।
9. महिला संवाद अभियान (2025)
चुनाव से 2 महीने पहले शुरू हुआ संवाद अभियान। सवा लाख जीविका दीदियां घर-घर गईं। संदेश साफ था, आपकी योजना, आपकी सरकार, आपका वोट। तेजस्वी का \“माई बहिन\“ प्लान इसके सामने फीका पड़ गया। राजनीतिक विश्लेषक डॉ शोभित सुमन कहते हैं कि कैश स्कीम्स 10 राज्यों में सत्ताधारी जीत का कारण बनीं।
10. वोटिंग टर्नआउट में लीड
2020: महिलाएं 59.69% vs पुरुष 54.1%
2025: महिलाएं 71.8% vs पुरुष 62.98%
8.82% का अंतर यानी लगभग 70 लाख अतिरिक्त महिला वोट। यही NDA की जीत का मार्जिन है। यह टर्नआउट बिहार का रिकॉर्ड है। 2020 की तुलना में इस बार 44 लाख से अधिक महिलाओं ने वोट दिया। 14 नवंबर को Eletion results 2025 बताएगा यह किसके फेवर में रहीं। असली असर।
11. लाभार्थी से भागीदार मॉडल नीतीश की सबसे बड़ी सफलता
महिलाए अब योजनाओं की प्राप्तकर्ता नहीं, संचालक हैं। जीविका दीदी मीटिंग चलाती है, साइकिल वितरण देखती है, शराबबंदी की निगरानी करती है। स्वामित्व की भावना मतलब वफादारी। जुलाई 2025 में 35% नौकरी आरक्षण और अगस्त में महिला रोजगार स्कीम ने इसे मजबूत किया। |