विश्व हृदय दिवस पर दिल को स्वस्थ रखने के टिप्स। प्रतीकात्मक फोटो
तरसेम सैनी, टांडा (कांगड़ा)। World Heart Day, प्रतिदिन सुबह और शाम कम से कम 40 मिनट सैर या व्यायाम करें और दिल को तंदुरुस्त रखें। जब आयु 40 से पार कर जाती है तो सैर की अहमियत और बढ़ जाती है। आयु बढ़ने के साथ शारीरिक क्षमता क्षति क्षीण होने लगती है। ऐसी स्थिति में सैर करना या किसी भी तरह का व्यायाम फायदेमंद होता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
रात को पार्टी कर सुबह व्यायाम का जोखिम न लें
देर रात तक पार्टी करने वाले या मादक पदार्थ का सेवन करने वाले सुबह उठकर व्यायाम करने का जोखिम न लें। ऐसा करना जानलेवा साबित हो सकता है।
कमर के ऊपर किसी भी तरह के दर्द को न लें हलके में
डा. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कालेज एवं अस्पताल कांगड़ा स्थित टांडा के हृदय रोग विशेषज्ञ डा. मुकुल भटनागर ने \“दैनिक जागरण\“ से विशेष बातचीत में बताया कि कमर के ऊपर किसी भी तरह के दर्द को हल्के में नहीं लेना चाहिए। जरूरी नहीं है कि शरीर के बायें तरफ यानी हृदय की तरफ ही दर्द हो। दर्द दायीं तरफ भी हो सकता है, बाजू में भी हो सकता है, पेट में भी हो सकता है।
ऐसे दर्द को नजरअंदाज न करें। यह हृदयाघात के लक्षण हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में एक ईसीजी जरूर करवाएं।
हृदयाघात के छह घंटे के भीतर अस्पताल पहुंचा दें रोगी
हृदयाघात के छह घंटे के भीतर रोगी को अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो बेहतर उपचार और रिकवरी में मदद मिलती है। जितनी देर करेंगे अस्पताल पहुंचने में उतना मुश्किल होगा हृदयाघात से मांसपेशियों को पहुंचे नुकसान को ठीक करना। टांडा मेडिकल कालेज में प्रतिवर्ष 40,000 हृदय रोगी उपचार के लिए आते हैं। दिन में पांच से 10 हृदयाघात पीड़ित आपातकाल में मेडिकल कॉलेज पहुंचते हैं।
हृदय रोग है या नहीं, कैसे पहचानें, कौन सा टेस्ट करवाएं?
हृदय रोग के किसी भी लक्षण को नजरअंदाज न करें। दिल की धड़कन बढ़ना, बेहोश हो जाना, चक्कर आना, चलने पर छाती में दर्द होना या सांस फूलना। पांच संकेत हृदय की बीमारियों के संबंध में हैं। ऐसा कोई भी संकेत शरीर में दिखे तो तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में जाकर दिखाएं। अगर हृदय की बीमारी का कोई भी लक्षण नहीं है तो भी अगर चाहें तो टीएमटी या ईको टेस्ट करवा सकते हैं।
आजकल युवा भी हृदय रोगों की चपेट में आ रहे हैं। क्या कारण हैं, कैसे बचें?
युवाओं में आजकल व्यसन बढ़ गए हैं। धूमपान व शराब, जंक फूड व ज्यादा घी-तेल वाली चीजें खा रहे हैं और व्यायाम भी नहीं कर रहे हैं। यही वजह है कि 25 से 30 वर्ष में युवा हृदय रोग की चपेट में आ रहे हैं। हृदयाघात के अलावा हृदय से संबंधित अन्य बीमारियों से घिर रहे हैं। इनमें कार्डियोमायोपैथी या हृदय की मांसपेशियों से संबंधित रोग जैसे हृदय की दीवारों का सख्त, मोटा या पतला हो जाना जिससे रक्त पंप करने में कठिनाई होती है। खेलते-खेलते या कुछ भी कर रहे होंं तो अचानक मृत्यु हो जाती है।
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डा. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कालेज एवं अस्पताल कांगड़ा स्थित टांडा के हृदय रोग विशेषज्ञ डा. मुकुल भटनागर। जागरण
हृदय रोग के मामले बढ़ने के क्या कारण हैं?
सर्दियों में भी हृदयाघात के मामले बढ़ जाते हैं। मानसिक दबाव भी हृदयाघात का एक बड़ा कारण है। अध्ययन से पता चला है कि सोमवार के दिन दिल का दौरा पड़ने के ज्यादा मामले सामने आते हैं। इसका कारण भी मानसिक दवाब ही है क्योंकि उस दिन लोगों को नौकरी या व्यापार का दबाव ज्यादा होता है।
हृदयाघात और कार्डियक अरेस्ट में क्या अंतर है?
हृदयाघात और कार्डियक अरेस्ट दोनों अलग-अलग हैं। हृदयाघात में हृदय की नसें बंद हो जाती हैं, जिसकी वजह से ईसीजी में बदलाव आना शुरू हो जाता है। रक्त हृदय तक नहीं पहुंच पाता है। इससे दर्द शुरू हो जाता है। कार्डियक अरेस्ट का मतलब है हृदय की धड़कन रुक जाती है। यह किसी भी कारण से हो सकता है। हृदयाघात के बाद भी हो सकता है, किसी बीमारी के कारण भी हो सकता है। इसमें सांस लेने की बीमारी हो, पेट की बीमारी हो या कैंसर समेत अन्य बीमारियों के अंतिम चरण में हृदय की धड़कन रुक जाती है तो उसे कार्डियक अरेस्ट कहते हैं।
स्टेंट डालने, पेसमेकर डालने या बाईपास सर्जरी की जरूरत कब पड़ती है?
हृदयाघात के रोगी की जब एंजियोग्राफी करते हैं। ब्लाकेज 70 प्रतिशत से अधिक आती है तो उस स्थिति में स्टेंटिंग करनी पड़ती है। अगर ब्लाकेज बहुत ज्यादा हो। तीनों नसों में हो और रोगी को शुगर की बीमारी हो तो उस स्थिति में बाईपास सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है। जिन लोगों की दिल की धड़कन आयु के हिसाब से कम होनी शुरू हो जाती है। अगर धड़कन 40 से कम हो जाए, साथ में रोगी को चक्कर आता है या बेहोश हो जाता है तो उस स्थिति में पेसमेकर डालने की जरूरत होती है। पेसमेकर की तरह ही एक उपकरण जिसे आइसीडी कहते हैं, की जरूरत उन रोगियों में पड़ती है जो कार्डियोमायोपैथी या हृदय की मांसपेशियों से संबंधित रोग से पीड़ित हैं। इनमें रोगियों में अचानक कार्डियक अरेस्ट को रोकने के लिए आइसीडी की जरूरत पड़ती है।
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हृदय रोगों से कैसे बचें?
हृदय रोगों से बचाव के लिए सबसे जरूरी है दिनचर्या में बदलाव। सबसे पहले हमें अपने खान-पान को ठीक करना है। हरी सब्जियों की मात्रा को बढ़ाएं, फल अधिक खाएं, फाइबरयुक्त खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करें। भोजन थोड़ा-थोड़ा यानी दो-दो घंटे के अंतराल में खाना है। ऐसा कभी न करें कि एकदम सबकुछ ठूंस लें।सबसे जरूरी है व्यायाम। चाहे सैर करें, रनिंग करें या जिम में जाकर व्यायाम करें, लेकिन प्रतिदिन सुबह-शाम 40 मिनट व्यायाम करना है।
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