51 वर्षीय अधिवक्ता को ट्रायल कोर्ट से दी गई अग्रिम जमानत दिल्ली हाई कोर्ट ने रद कर दी।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। एक 27 वर्षीय महिला अधिवक्ता के साथ बार-बार दुष्कर्म और मारपीट करने के अलावा दो न्यायिक अधिकारियों के जरिए उसे प्रभावित करने का प्रयास करने के आरोपित 51 वर्षीय अधिवक्ता को ट्रायल कोर्ट से दी गई अग्रिम जमानत दिल्ली हाई कोर्ट ने रद कर दी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
न्यायमूर्ति अमित महाजन की पीठ ने साथ ही अधिवक्ता की मदद करने वाले संबंधित दो न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ प्रशासनिक जांच का भी आदेश दिया। न्यायिक अधिकारियाें पर आरोपित अधिवक्ता के कहने पर पीड़िता पर उसके मामले को कमजोर करने का दबाव डालने का आरोप है।
पीठ ने कहा कि अभियोक्ता के संपर्क में रहे संबंधित न्यायिक अधिकारियों के आचरण की भी प्रशासनिक जांच जरूरी है, ऐसे में इस संबंध में कानून के अनुसार उचित कार्रवाई का आदेश दिया जाता है। यह मामला तब सामने आया जब दिल्ली हाई कोर्ट की फुल कोर्ट ने एक न्यायिक अधिकारी संजीव कुमार सिंह को निलंबित करने निर्णय लिया और उनके व एक अन्य जिला न्यायाधीश के विरुद्ध अनुशासनात्मक जांच शुरू की।
शिकायतकर्ता महिला अधिवक्ता ने जून 2025 में नेब सराय पुलिस स्टेशन में 51 वर्षीय वकील पर दुष्कर्म, आपराधिक धमकी और मारपीट का आरोप लगाते हुए एक प्राथमिकी दर्ज कराई थी। महिला ने आरोप लगाया कि आरोपित ने शादी का झांसा देकर पांच वर्षों में कई बार उसके साथ जबरदस्ती की और इससे वह गर्भवती हो गई।
अभियोजन पक्ष के अनुसार आरोपित उसे गर्भपात के लिए एक अस्पताल ले गया और बाद में दक्षिण दिल्ली के एक कंट्री क्लब में उसके साथ मारपीट की, जहां सीसीटीवी फुटेज में झगड़े के कुछ हिस्से कैद हो गए। साकेत सत्र अदालत ने जुलाई में आरोपित अधिवक्ता को अग्रिम जमानत दे दी थी, लेकिन शिकायतकर्ता ने वाट्सएप संदेशों और फोन काल के माध्यम से उसे लगातार धमकियां देने और प्रभावित करने के प्रयासों का हवाला देते हुए अग्रिम जमानत रद करने की मांग करते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
उक्त तथ्यों को देखते हुए पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायिक अधिकारियों में से एक ने शिकायतकर्ता के साथ शिकायत वापस लेने पर आर्थिक समझौते और नौकरी के प्रस्ताव पर चर्चा की थी। पीठ ने कहा कि जब मुकदमे को प्रभावित करने या गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है, तो जमानत वापस ले ली जानी चाहिए। एेसे में आरोपित अधिवक्ता को एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया जाता है। |