बेटियों से अब उम्मीदें ज्यादा अभी से शुरू करनी होगी अगले विश्व कप की तैयारी- जगदाले
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय महिला क्रिकेट टीम के विश्व कप जीतने के बाद टीम में शामिल महिला क्रिकेटरों, कोच और सपोर्टिंग स्टाफ की जमकर सराहना हो रही है। इनके साथ-साथ पूर्व महिला क्रिकेटरों के योगदान को भी सराहा जा रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
ऐसे में बात उन चेहरों की भी होनी चाहिए, जिन्होंने महिला क्रिकेट को यहां तक पहुंचने के लिए नींव का कार्य किया, वह पहली पायदान तैयार की जिस पर पैर रखकर वे आज यहां तक पहुंची हैं। उन्हीं में से एक हैं भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) के पूर्व सचिव और पूर्व राष्ट्रीय चयनकर्ता संजय जगदाले।
जब बीसीसीआइ में कोई महिला क्रिकेट की जिम्मेदारी लेने के लिए बहुत उत्सुक नहीं था तो वे संजय जगदाले ही थे जिन्होंने सभी को इसके लिए राजी किया। महिला क्रिकेट टीम के प्रशिक्षण के लिए पहली अकादमी खुलवाई। उनके लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट दौरे की योजना बनाई और वर्ष 2013 का भारतीय महिला क्रिकेट विश्व कप आयोजित कर उन्हें बड़ा ‘एक्पोजर’ दिया।
लगभग 27 साल पहले महिला क्रिकेट टीम के लिए तैयार की गई यह जमीन अब ‘सुफल’ भी देने लगी है। इसे देखकर बेहद उत्साहित 75 वर्षीय जगदाले कहते हैं इस टीम को अभी से अगले विश्व कप की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। वह खुद को जेमिमा रोड्रिग्स जैसी नवोदित खिलाड़ियों का प्रशंसक बताते हैं तो कप्तान हरमनप्रीत कौर की नेतृत्व क्षमता की सराहना करते हुए उन्हें आगे और मौका देने की बात कहते हैं।
भारतीय राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के पूर्व चयनकर्ता माधवसिंह जगदाले के बेटे संजय जगदाले खुद भी क्रिकेट खिलाड़ी रहे हैं। दैनिक जागरण की समाचार संपादक रुमनी घोष ने उनसे महिला क्रिकेट टीम को यहां पहुंचाने के लिए हुए तमाम प्रयासों से लेकर वर्तमान टीम के लिए भविष्य की रणनीति पर चर्चा की। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश।
जब महिला क्रिकेट को पुरुष टीम के समान महत्व नहीं मिलता था तो आपने भगीरथी प्रयास किए। विश्व कप हाथ में लिए जब यह टीम दुनिया के सामने खड़ी है, तो आप क्या महसूस कर रहे हैं?
इस खुशी को शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है। यह वह बगिया है, जिसे कोई 27 साल पहले सींचना शुरू किया गया था और आज वह सफलता का गुलदस्ता बनकर हमारे सामने है। सींचना मैं इसलिए कह रहा हूं कि महिला क्रिकेट टीम की नींव इससे बहुत पहले पड़ चुकी थी। इसमें कई लोगों की भूमिका रही है, लेकिन बतौर बीसीसीआइ सचिव मुझे लगा कि इन खिलाड़ियों में बहुत क्षमताएं हैं और इन्हें भी पुरुष क्रिकेटरों के समान अवसर मिलना चाहिए। मैं अपने स्तर पर उस समय जो कुछ भी कर सकता था, उसकी पूरी कोशिश की।
कहा जाता है कि एक समय था जब बीसीसीआइ के सदस्य महिला क्रिकेट टीम की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहते थे। क्या यह सही है?
वह वर्ष 2011 से 2013 के बीच का दौर था। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) ने सभी देशों के क्रिकेट बोर्ड को बहुत पहले यह कहा था कि महिला क्रिकेट को भी शामिल किया जाए। हमारे यहां (भारत में) शुरू में कोई भी इसके लिए तैयार नहीं था। दरअसल उस समय महिला क्रिकेट के प्रति देश में भी रुझान कम था।
हमारे देश में क्रिकेट के प्रति दीवानगी पुरुष क्रिकेट तक ही सीमित रही है और महिला क्रिकेट के प्रति ऐसी गंभीरता का अभाव रहा है। मगर बतौर कोच मेरा मानना रहा है कि बेटियों को भी समान सम्मान और अवसर मिलना चाहिए। मैं आइसीसी की बैठकों में शामिल होता था तो वहां महिला क्रिकेट की चर्चा होती थी।
मैंने अपने बोर्ड बीसीसीआइ के सदस्यों से आग्रह किया कि दुनिया के सभी क्रिकेट बोर्ड अपने-अपने देश की महिला क्रिकेट को उनके बोर्ड में शामिल कर चुके हैं, सिवाय भारत के। यह अच्छा नहीं लगता है और हमारी अंतरराष्ट्रीय छवि पर असर पड़ रहा है। कोशिशों के बावजूद अधिकांश सदस्य इस बात पर एकमत हुए, लेकिन कोई भी जिम्मेदारी लेने के पक्ष में नहीं था। सुझाव आया कि हम 30 करोड़ रुपये की वित्तीय मदद देकर दूर रहें। मैं इससे बिल्कुल सहमत नहीं था। बतौर कोच मुझे उस समय महिला क्रिकेट टीम का हिस्सा रहीं खिलाड़ियों में क्षमता दिखती थी। मेरा दृढ़ विश्वास था कि भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम के खिलाड़ियों की तरह इन्हें भी अवसर मिलना चाहिए।
फिर कैसे आपने सभी को सहमत किया और कैसे बीसीसीआइ के जरिए महिला क्रिकेट के विकास की कहानी प्रारंभ हुई?
धीरे-धीरे मैंने सभी सदस्यों को तैयार किया और उन्हें समझाया कि सिर्फ धन देने से कोई परिणाम सामने नहीं आएगा। सच कहूं तो उस वक्त इस तरह की कोई व्यवस्था भी नहीं थी कि जो महिला क्रिकेट टीम को संभाल सके और उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुविधाएं जुटाकर संवार सकें। मेरे बार-बार के आग्रह के बाद सभी सदस्य इसके लिए तैयार हो गए और सभी ने सहयोग भी किया।
पुरुष टीम की तरह हमने महिला क्रिकेट के लिए भी पूरी योजना तैयार की। खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय अनुभव दिलाना महत्वपूर्ण होता है और इसके लिए विदेशी दौरे कराए गए। सहमति मिलने के दो-तीन महीने के भीतर ही ताबड़तोड़ इंग्लैंड, वेस्टइंडीज और बांग्लादेश के तीन अंतरराष्ट्रीय दौरे किए। महिला क्रिकेट टीम के लिए यह एक बड़ा एक्सपोजर (अवसर) था। फिर अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भागीदारी में सुविधाओं का विकास हुआ।
उसके बाद 2013 में महिला क्रिकेट विश्व कप आयोजित किया। इस बीच आंध्रप्रदेश क्रिकेट अकादमी का गुंटूर में एक केंद्र था। हमने उस केंद्र को टेकओवर किया और उसे महिला क्रिकेट अकादमी के रूप में विकसित किया। यहां भारतीय महिला क्रिकेट टीम की खिलाड़ियों को वही सुविधाएं दी गईं, जैसी पुरुष क्रिकेटरों को मिलती थी। किसी भी चीज को गढ़ने में समय लगता है। इसमें भी लगा, लेकिन 27 सालों की प्रगति आज विश्व कप खिताब के रूप में देख सकते हैं। पीछे मुड़कर देखता हूं कि अहसास होता है कि किस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी महिला क्रिकेटरों ने अपने गेम को सुधारा और देश को यह सर्वोच्च मान दिलाया।
क्या सुविधाओं और जरूरत के बारे में उस समय महिला खिलाड़ियों से चर्चा हुई थी?
हां, बिलकुल। उस समय मिताली राज भारतीय टीम की कप्तान थीं। उनसे टीम की जरूरतों और अपेक्षाओं के बारे में चर्चा की गई। हमने सभी के सुझावों को शामिल करते हुए अपनी भविष्य की योजनाएं तैयार कीं। अन्य सीनियर खिलाड़ी झूलन गोस्वामी सहित अन्य खिलाड़ियों से भी बात हुई। गार्गी बनर्जी तब मुख्य चयनकर्ता थीं। उन्होंने भी भारतीय महिला टीम के विकास के लिए काफी मेहनत की। महिला क्रिकेटरों को भी महसूस होने लगा था कि बीसीसीआइ उनके प्रति पूरी गंभीरता से प्रयास कर रहा है। सभी बदलाव को महसूस कर रही थीं और सभी ने समग्रता से भारतीय महिला क्रिकेट के विकास में अपना योगदान दिया।
भारतीय महिला खिलाड़ियों ने किस तरह की सुविधाओं की मांग की?
(हंसते हुए...) उस वक्त उन्हें मांग करने की जरूरत नहीं पड़ी। प्रारंभ में महिला क्रिकेट में बहुत पैसा नहीं था, सुविधाएं भी नहीं थीं। शायद उन्होंने सोचा नहीं था कि एक साल के भीतर इतने अंतरराष्ट्रीय दौरे और अकादमी जैसी सुविधाएं मिलना शुरू हो जाएंगी। मैं बीसीसीआइ में बतौर सचिव वर्ष 2013 तक रहा। इस दौरान मैंने महिला क्रिकेट के विकास के लिए हर संभव कोशिश की।
मैंने ऐसी संस्कृति विकसित करने का प्रयास किया, जिसमें महिला क्रिकेट के लिए भी समान अवसर, सुविधाएं और सम्मान का भाव हो। खास बात यह है कि उसके बाद भी बीसीसीआइ के सभी पदाधिकारियों ने लगातार इस दिशा में प्रयास किए। आज जो टीम है, आप उसका आत्मविश्वास देखिए, खिलाड़ियों की फिटनेस का स्तर देखिए और मैचों के दौरान इनकी तकनीक देखिए। आज यह टीम हर तरफ से परफेक्ट है, तो इसके पीछे लंबी मेहनत है।
अभी देश में उत्सवी माहौल है। भविष्य की ओर देखते हुए विश्व विजेता टीम को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
इस टीम ने साबित कर दिया है कि यह दुनिया की सर्वोत्तम टीम है। हमारी खिलाड़ियों ने हर परिस्थिति में जीत हासिल की है, मजबूत टीमों को हराया है और अपनी श्रेष्ठता मैदान में प्रदर्शन से साबित की है। इस टीम के पास बेहतरीन कोच (अमोल मजूमदार) हैं। हां, इतना जरूर कहना चाहता हूं कि अभी से अगले विश्व कप की तैयारी शुरू कर दें। अगला लक्ष्य वही है और उस यात्रा के लिए अभी से टीम को लाइनअप करना होगा। अगला विश्व कप अभी दूर है और उसके अनुसार टीम में कुछ बदलाव भी होंगे। जो बदलव करना हैं उसकी योजना बनाना होगी और योग्य विकल्प तलाशना होंगे। विश्व कप जीत पर ठहरना नहीं है, आगे बढ़ना है। अब भारतीय महिला टीम की जिम्मेदारी और अपेक्षाएं बढ़ गई हैं।
कई विशेषज्ञों का मत है कि अगले विश्व कप के मद्देनजर हरमनप्रीत कौर की जगह नेतृत्व की जिम्मेदारी स्मृति मंधाना को देना चाहिए?
देखिए, मैदान के बाहर बैठकर बहुत से सुझाव दिए जा सकते हैं, लेकिन यह इतना आसान नहीं होता है। मैं भी मैदान के बाहर हूं। फिर भी मुझे लगता है कि हरमनप्रीत को फिलहाल बदलने की जरूरत नहीं है। वह बेहतरीन लीडर है। उनका व्यक्तिगत प्रदर्शन भी ठीक रहा है। टीम में हर कोई उनका सम्मान करता है और उन पर विश्वास भी करता है। जिस खिलाड़ी के नेतृत्व में टीम ने विश्व कप जैसा दुनिया का सबसे बड़ा और प्रतिष्ठित टूर्नामेंट जीता है, उसे बदलने के असर पर बहुत गंभीरता से सोचना चाहिए। |