डॉ. मनीष दाभाडे। जोहरान ममदानी की न्यूयार्क में मेयर पद पर विजय को अमेरिकी प्रगतिशील राजनीति की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है और इसी कारण पूरी दुनिया में उनकी चर्चा है, परंतु इस विजय के साथ-साथ राष्ट्रपति ट्रंप के साथ उनका जो राजनीतिक टकराव उभर रहा है, वह केवल शहर के शासन के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गहरी हलचल का संकेत देता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
ममदानी ने चुनाव जीतते ही राष्ट्रपति ट्रंप को ललकारते हुए खुद को उनके ‘सबसे बड़े दु:स्वप्न’ के रूप में पेश किया। इससे वह युवाओं में और लोकप्रिय हो सकते हैं, लेकिन संघीय सत्ता से टकराव की यह रणनीति अंततः न्यूयार्क के लिए आत्मघाती सिद्ध हो सकती है। ममदानी के घोषणापत्र में नीतिगत साहस अवश्य है। उन्होंने मुफ्त सार्वजनिक परिवहन, किराया नियंत्रण, ट्रांसजेंडर अधिकारों की रक्षा करने का वादा किया है, पर इन्हें लागू करने के लिए संघीय सरकार से संसाधनों की आवश्यकता अनिवार्य है।
ट्रंप पहले ही सार्वजनिक रूप से ममदानी को ‘कम्युनिस्ट’ कह चुके हैं और न्यूयार्क शहर को मिलने वाले संघीय फंड को न्यूनतम तक सीमित करने की धमकी दे चुके हैं। यह केवल बयानबाजी नहीं है। ट्रंप का प्रशासन पहले भी डेमोक्रेटिक राज्यों और शहरों के प्रति दंडात्मक रुख अपनाता रहा है। ऐसे में एक ऐसे राष्ट्रपति से सीधी टकराव की नीति अपनाना, जो राजनीतिक प्रतिशोध में संकोच नहीं करता, क्या व्यावहारिक है?
न्यूयार्क की बजट व्यवस्था संघीय अनुदान पर निर्भर है- शिक्षा, आवास, सामाजिक सेवाओं के कई विभागों को अपने कुल बजट का बड़ा हिस्सा वाशिंगटन से प्राप्त होता है। अगर संघीय सरकार सहयोगी नहीं रही तो स्थानीय निकाय की योजनाओं का धरातल पर उतारना असंभव हो सकता है। इस संदर्भ में, अंतरराष्ट्रीय अनुभव भी चेतावनी स्वरूप हैं। बार्सिलोना की पूर्व मेयर अदा कोलाउ ने जब ‘नागरिक मंच’ और सामाजिक आंदोलन के बूते सत्ता संभाली थी, तब उन्होंने पूंजीवाद के विरुद्ध एक नई नगर प्रशासन की कल्पना की थी, लेकिन राष्ट्रीय सरकार की वित्तीय बाधाओं और यूरोपीय संघ की कठोर नीतियों के आगे उनके अधिकांश वादे अधूरे रह गए।
आखिरकार उन्हें जनता ने हटा दिया। लंदन के मेयर सादिक खान ने भी कंजर्वेटिव सरकारों से लगातार टकराव लिया, खासकर सार्वजनिक परिवहन और किराया नियंत्रण जैसे मुद्दों पर, लेकिन वे भी केंद्र सरकार की विधायी सीमाओं से बाहर कुछ कर नहीं सके। परिणामतः उनकी कई नीतियां या तो रुकी रहीं या पूरी तरह लागू नहीं हो सकीं। स्पष्ट है कि नगर राजनीति में वैचारिक ऊर्जा पर्याप्त नहीं होती, प्रशासनिक अधिकार और संसाधन उसकी अनिवार्य शर्तें हैं।
ट्रंप के दृष्टिकोण से देखें तो ममदानी का उभार उन्हें एक नया प्रतीक देता है, जिसके माध्यम से वे डेमोक्रेटिक पार्टी को चरमपंथी के रूप में चित्रित कर सकते हैं। ममदानी के समाजवादी रुख, खुले ट्रांसजेंडर समर्थन और जनकल्याणकारी घोषणाओं को लेकर ट्रंप उन्हें ‘शहरी चरम वामपंथी’ के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। इससे वे अपने रूढ़िवादी ग्रामीण और उपनगरीय आधार को फिर से संगठित कर सकते हैं। यदि ममदानी इस जाल में फंसते हैं और ट्रंप से सार्वजनिक रूप से निरंतर भिड़ते रहते हैं तो इससे ट्रंप को ही लाभ होगा।
इतिहास गवाह है कि जब भी ट्रंप को कोई प्रबल वैचारिक विरोधी मिला है, उन्होंने उसे राष्ट्रीय विमर्श में प्रतीकात्मक ‘दुश्मन’ बना कर अपनी स्थिति मजबूत की है। ट्रंप और उनके प्रवक्ता खुले तौर पर न्यूयार्क को एक ‘असफल शहर’ कहने लगे हैं। ममदानी के उग्र भाषण और ट्रंप विरोधी प्रतीकों का उपयोग इस ध्रुवीकरण को और भी तेज करेगा। ममदानी को चाहिए कि वे ट्रंप की आलोचना से ज्यादा अपने वैकल्पिक दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करें। यदि वे ट्रंप के हर बयान पर प्रतिक्रिया देंगे तो उनका प्रशासनिक एजेंडा खो जाएगा। उन्हें यह दिखाना होगा कि वे सिर्फ विरोधी नहीं, बल्कि सक्षम प्रशासक भी हैं। उन्होंने जोश और विचारधारा के संयोग से एक नया मतदाता वर्ग उभारा है, लेकिन यही वर्ग अब उनसे ऐसी योजनाएं चाहता है, जो वास्तव में लागू की जा सकें।
न्यूयार्क की नगर प्रशासनिक मशीनरी को संभालना एक बड़ी चुनौती है। वहां की नौकरशाही, संघीय अनुदानों की जटिलता और न्यायिक प्रक्रियाएं एक आदर्शवादी नेता की परिकल्पनाओं को कसौटी पर कसेंगी। बिना वाशिंगटन के सहयोग से बड़े बुनियादी सुधार करना लगभग असंभव है। राजनीति में प्रतीकों का महत्व अवश्य होता है, लेकिन शहरों को नारे नहीं चलाते, उन्हें चलाती हैं व्यावहारिक नीतियां, वित्तीय अनुशासन और केंद्र-राज्य समन्वय की सूझबूझ।
अगर ममदानी प्रशासनिक व्यावहारिकताओं को नजरअंदाज करते हैं और केवल ट्रंप-विरोधी प्रतीक बने रहते हैं तो यह न केवल उनकी विफलता होगी, बल्कि यह पूरे डेमोक्रेटिक आंदोलन को भी नुकसान पहुंचा सकता है। ममदानी को चाहिए कि वे अपनी रणनीति को टकराव के बजाय समाधान की दिशा में मोड़ें। उन्हें शहरी प्रशासन के तौर-तरीकों को गहराई से समझना होगा। वरना वे न तो ट्रंप को टक्कर दे पाएंगे, न ही न्यूयार्क को वह परिवर्तन दे पाएंगे, जिसका उन्होंने वादा किया है।
(लेखक जेएनयू में एसोसिएट प्रोफेसर हैं) |