deltin51
Start Free Roulette 200Rs पहली जमा राशि आपको 477 रुपये देगी मुफ़्त बोनस प्राप्त करें,क्लिकtelegram:@deltin55com

आत्महत्या का प्रयास करने के दोषी को हाई कोर्ट से राहत, रद किया ट्रायल कोर्ट का फैसला

Chikheang 2025-11-8 01:37:35 views 513

  

हाई कोर्ट ने निर्णय रद करते हुए ट्रायल कोर्ट के निर्णय पर उठाए सवाल। आर्काइव



जागरण संवाददाता, नैनीताल। हाई कोर्ट ने मंगलौर पालिका के कर्मचारी को आत्महत्या के प्रयास दोषी करार देने के ट्रायल कोर्ट के निर्णय को रद कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि उसकी सजा नाममात्र की थी लेकिन दोष सिद्धि के कलंक ने उसके रोजगार और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करके गंभीर पूर्वाग्रह पैदा किया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि पहले से ही मानसिक संकट में जी रहे लोगों की पीड़ा और नहीं बढ़ानी चाहिए। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

ट्रायल कोर्ट ने 21 फरवरी 2011 को हरिद्वार जिले की मंगलौर नगरपालिका के कर्मचारी कमल दीप को आत्महत्या का प्रयास (धारा-309) के तहत दोषी करार दिया था। आरोप था कि कर्मचारी ने कार्यस्थल पर माचिस पकड़ स्वयं पर मिट्टी का तेल डाल दिया था। न्यायाधीश न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय को रद करते हुए कहा है कि कमल दीप को आत्महत्या की किसी भी प्रत्यक्ष कार्रवाई से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था। मेडिकल रिपोर्ट में कोई बाहरी चोट, जलने के निशान का संकेत नहीं था। केवल उसके ऊपरी शरीर से मिट्टी के तेल की गंध आ रही थी।

एकमात्र स्वतंत्र गवाह ने अभियोजन पक्ष का समर्थन नहीं किया। अभियोजन भी यह साबित करने में विफल रहा कि उसका कृत्य तैयारी से आगे बढ़कर प्रयास बन गया था, जो कि भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के तहत अपराध का एक आवश्यक तत्व है। एकलपीठ ने कहा कि ट्रायल और अपीलीय अदालत दोनों ने तैयारी और प्रयास के बीच के अंतर या घटना घटित होने की परिस्थितियों पर विचार किए बिना ही निर्णय दिया। कमल दीप की ओर से तर्क दिया गया कि उसे कार्यस्थल पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था। अपने वरिष्ठों के विरुद्ध शिकायतों के बाद अधिकारियों के दबाव के कारण वह गंभीर तनाव में था।

एकलपीठ ने यह भी कहा कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 की धारा 115 में निहित विधायिका के उदार और सुधारात्मक इरादे को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जिसके अनुसार आत्महत्या का प्रयास करने वाले किसी भी व्यक्ति को जब तक अन्यथा साबित न हो जाए उसे गंभीर तनाव में माना जाएगा। उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जाएगा या उसे दंडित नहीं किया जाएगा। यह प्रविधान अतीत के दंडात्मक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है, जिसमें आत्महत्या के प्रयासों को मानसिक कष्ट की अभिव्यक्ति के रूप में एक सहानुभूतिपूर्ण समझ की ओर ले जाया गया है। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि ट्रायल कोर्ट का कर्तव्य था कि इस कानूनी स्थिति पर विचार करती, लेकिन वह ऐसा करने में विफल रही।
like (0)
ChikheangForum Veteran

Post a reply

loginto write comments

Explore interesting content

Chikheang

He hasn't introduced himself yet.

210K

Threads

0

Posts

710K

Credits

Forum Veteran

Credits
78710