प्रख्यात पर्यावरणविद् बोले- आ गया मातृभूमि की प्राकृतिक संपदा का अवैज्ञानिक दोहन रोकने का समय. File
संस, जागरण, द्वाराहाट । प्रख्यात पर्यावरणविद् (माउंटेनमैन) पद्मश्री एवं पद्मभूषण डा. अनिल प्रकाश जोशी ने हिमालय की बिगड़ती सेहत और पलायन पर चिंता जाहिर की। कहा कि अब समय आ गया है कि हमें मातृभूमि की प्राकृतिक संपदा का अवैज्ञानिक दोहन बंद कर देना चाहिए। उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद परिस्थितियां और ज्यादा नाजुक हुई हैं। विकास का नजरिया बदल चुका है, जो उत्तराखंड के पूरे तंत्र को प्रभावित कर रहा है। पहाड़ में पानी की बोतलों का इस्तेमाल गलत है। इसका कचरा हिमालय को प्रदूषित कर रहा है। उनका मानना था कि चारधाम यात्रा जैसे आयोजन पर्वतों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हमें प्राकृतिक स्रोतों व नदियों के पानी के सदुपयोग की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पद्मश्री डा. अनिल मंगलवार को बिपिन त्रिपाठी कुमाऊं प्रौद्योगिकी संस्थान सभागार में राज्य स्थापना की रजत जयंती के उपलक्ष्य में \“सशक्त उत्तराखंड के 25 वर्ष और भविष्य की संभावनाओं\“ पर पैनल डिस्कशन में आनलाइन जुड़ बेबाकी से बोले। आगाह किया कि हिमालय में मौलिक नियमों का ध्यान रखना ही होगा। पर्यावरणीय लिहाज से पानी की बोतलों का उपयोग और उच्च हिमालय तक इस कचरे को घातक करार देते हुए उन्होंने पहाड़ में मौजूद प्राकृतिक स्रोतों के रिसाइक्लिंग की नीति बना यमुनोत्री, गंगोत्री, कोसी आदि नदियों के नाम पर पेयजल को प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया।
खेती बचाने, वनों का दोहन रोकने पर जोर
पद्मश्री डा. अनिल प्रकाश ने कहा, वनों का दोहन कृषि को भी प्रभावित कर रहा। परंपरागत संसाधनों का त्याग भी नुकसानदायक साबित हो रहा है। उत्तराखंड में कृषि का दस हजार पुराना इतिहास बताते हुए पद्मश्री ने कहा कि वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि नाममात्र के लिए की जा रही है।
खेती किसानी बचाने की ओर ध्यान खींचा। उन्होंने जलवायु परिवर्तन जनित वैश्विक ताप वृद्धि को सबसे बड़़ा कारण बताया। कहा कि चिंपांजी जिराफ आदि के अस्तित्व पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। अन्य प्रजाति के जीव जंतुओं पर भी नकारात्मक प्रभाव दिख रहा है। डा. अनिल प्रकाश ने प्रकृति के साथ खिलवाड़ न करने की सलाह दी। कहा, अमेरिका व रसिया जैसे विकसित देश बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा का उपयोग कर रहे हैं। इसका प्रभाव हमारे देश खासतौर पर उत्तराखंड की जलवायु पर भी पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि इंजीनियरिंग के छात्रों को मानव प्रजाति के इतिहास के अतिरिक्त अन्य बिंदुओं को भी जानना चाहिए।
स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा और बाजार उपलब्ध कराने की जरूरत
निदेशक संस्थान प्रो. संतोष कुमार हम्पन्नावर के पलायन रोकने में संस्थान उद्योग आदि की भूमिका संबंधी सवाल पर पद्मश्री डा. अनिल ने साफ किया कि पलायन आयोग की रिपोर्ट पूरी नहीं है। रिसोर्स बेस्ड उद्योग लगाना आवश्यक है। स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने की पुरजोर वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि बाजार उपलब्ध कराने के लिए ठोस नीति बनानी ही होगी।
स्पेस विज्ञान व हाइटेक तकनीक से आपदा को कम करने की जरूरत : प्रो. दुर्गेश
महानिदेशक उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकास्ट) प्रो. दुर्गेश पंत भी आनलाइन पैनल डिस्कशन से जुड़े। तकनीकी शिक्षा को समय की जरूरत बताते हुए कहा कि तकनीक, एआइ, पर्यावरण से जुड़ा कोई भी उत्कृष्ट विचार आपके पास है तो भौगोलिक सीमाएं मायने नहीं रखती। सतत विकास में तकनीकी संस्थानों का योगदान जरूरी है। उन्होंने उत्तराखंड में प्रदूषण को सबसे बड़ी समस्या करार दिया। उत्तरकाशी की घटना का जिक्र करते हुए दुष्परिणाम गिनाए। तकनीकी का सहारा लेकर प्राकृतिक आपदाओं को कम करने का सुझाव देते हुए प्रो. दुर्गेश ने स्पेस विज्ञान का उत्तराखंड में समुचित प्रयोग किए जाने की जरूरत बताई।
ये रहे मौजूद
डा. उमेश कहालेकर, प्रो. उदयकुमार वाइआर, पूर्व उच्च शिक्षा निदेशक प्रो. जगदीश प्रसाद, पूर्व भू तकनीकी अभियंता डा. बीडी पाटनी, सचिव उच्च एवं तकनीकी शिक्षा डा. रंजीत सिन्हा, पूर्व कुलपति प्रो. आरके सिंह, पूर्व निदेशक प्रो. सत्येंद्र सिंह, रजिस्ट्रार डा. रवि कुमार, डा. कपिल चौधरी, डा. स्वेता रावत, डा. आरके भारती, डा. अंशुमन मिश्रा, डा. आरके पांडे, डा. कुलदीप खोलिया, डा. सचिन गौर, डा. आरपी सिंह, डा. पंकज सनवाल, डा. ललित गड़िया, डा. आनंदिता साहा, डा. भावना परिहार, डा. रचना, डा. स्वाति, डा. अर्चना, दीपक हर्बोला, हरीश पंत, निखिल उपाध्याय आदि। |