प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की नाकामी का एक और बड़ा उदाहरण बुधवार को लद्दाख से सामने आया। जहां नाराज़ छात्रों ने भाजपा कार्यालय को ही आग लगा दी। लद्दाख के हालात नेपाल जैसे तो नहीं हैं, लेकिन नौजवानों का गुस्सा जिस तरह फूटा है, वह साधारण बात नहीं है। न ही इसे हल्के में लिया जाना चाहिए। कायदे से तो वादाखिलाफी करने पर नैतिक आधार पर नरेन्द्र मोदी और अमित शाह दोनों को इस्तीफा देना चाहिए। लेकिन जब इन लोगों ने ढाई सालों से अशांत मणिपुर के मामले में इस्तीफा नहीं दिया, पुलवामा, पहलगाम पर आगे बढ़कर जिम्मेदारी नहीं ली, तो अब इनसे किसी भी नैतिक पहल की उम्मीद बेकार ही है। फिर भी सत्ता की बागडोर अपने हाथों में रखकर सबसे शक्तिशाली बने इन दोनों लोगों को बार-बार ये याद दिलाना ही होगा कि आपकी मर्जी से लिया गया हर फैसला सही नहीं होता है, न ही अब वो जमाना है जिसमें लोग चुपचाप आपके मन की बात सुन लें। आज का युवा वादाखिलाफी को बहुत देर तक बर्दाश्त नहीं कर सकता है। लद्दाख हमेशा से एक शांत इलाका रहा है। बौद्ध धर्म की बहुलता वाले इस प्रांत में अपराध दर भी कम है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता दुनिया भर में प्रसिद्ध है और हर साल बड़ी संख्या में सैलानी इस दुर्गम इलाके तक पहुंचते हैं। अब तक सारी सकारात्मक बातों के लिए मशहूर लद्दाख में अब ये दुखद प्रसंग भी जुड़ गया है कि यहां नाराज युवा ने भाजपा कार्यालय में आग लगा दी।   
 
 
 
 
जुलाई में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक लेख में लिखा था कि, 'लद्दाख में उन्हें सबसे ज्यादा जो चीज प्रभावित करती है, वह असाधारण जीवंत रंग और शांति का भाव। उनके लेख पर प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से कहा गया था कि निर्मला सीतारमण लिखती हैं कि कैसे बेहतर कनेक्टिविटी और लद्दाख को उपलब्ध कराए जा रहे प्रचुर संसाधन केंद्र शासित प्रदेश को लाभ पहुंचा रहे हैं। श्री मोदी ने लद्दाख पर अपनी वाहवाही लूटने का कभी कोई मौका नहीं छोड़ा। अब देखना होगा कि हालात बिगड़ने पर भी वे उसी तत्परता से गलती स्वीकार करते हैं या नहीं।   
 
 
 
 
बता दें कि केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर लेह में बुधवार को हिंसक प्रदर्शन हुआ। छात्रों की पुलिस और सुरक्षाबलों से झड़प हो गई। छात्रों ने भाजपा ऑफिस में आग लगा दी। पुलिस पर पत्थरबाजी की, और सीआरपीएफ की गाड़ी में आग लगा दी। आंदोलनकारियों ने मंगलवार की रात को ही 24 सितंबर को लद्दाख बंद का आह्वान किया था। भीड़ जुटाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया। लोगों से लेह हिल काउंसिल पहुंचने की अपील की। इसका असर दिखा और बड़ी तादाद में लोग पहुंचे। लेह हिल काउंसिल के सामने आंदोलनकारियों को रोकने के लिए पुलिस ने बैरिकेड्स लगा रखे थे। जब आंदोलनकारी आगे बढ़े तो पुलिस ने आंसू गैस छोड़ी, इसके बाद हिंसा शुरु हो गई।   
 
 
 
 
आंदोलनकारी छात्र सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के समर्थन में उतरे थे। हालांकि पिछले 15 दिनों से लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने और पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे श्री वांगचुक ने इस हिंसा के बाद अनशन तोड़ दिया और कहा कि यह लद्दाख के लिए दुख का दिन है। हम पांच साल से शांति के रास्ते पर चल रहे थे। अनशन किया, लेह से दिल्ली तक पैदल चलकर गए। आज हम शांति के पैगाम को असफल होते हुए देख रहे हैं। हिंसा, गोलीबारी और आगजनी हो रही है। मैं लद्दाख की युवा पीढ़ी से अपील करता हूं कि इस बेवकूफी को बंद करें। हम अपना अनशन तोड़ रहे हैं, प्रदर्शन रोक रहे हैं।   
 
 
 
 
सोनम वांगचुक ने हिंसा का समर्थन न कर बिल्कुल सही फैसला किया है, क्योंकि हिंसा किसी मसले का समाधान नहीं कर सकती। अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में है कि वह एक अच्छे-खासे प्रांत को इस हाल में पहुंचा कर क्या फैसला लेती है। गौरतलब है कि  साल 2019 में अनुच्छेद 370 और 35 ए हटाते समय जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए थे। सरकार ने उस समय ही राज्य के हालात सामान्य होने पर पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने का भरोसा दिया था। लेकिन न जम्मू-कश्मीर को आज तक पूर्ण राज्य का दर्जा मिला, न लद्दाख को। जम्मू-कश्मीर में तो चुनाव भी तब जाकर हुए, जब सर्वोच्च अदालत ने अल्टीमेटम दिया था। लद्दाख की मांगों पर लेह एपेक्स बॉडी  और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस सरकार से कई दौर की बातचीत पहले ही कर चुके हैं, लेकिन ठोस नतीजा सामने नहीं आया, गृह मंत्रालय ने अब अगली बैठक 6 अक्टूबर को तय की है।   
 
एलएबी और केडीए का कहना है कि वे बिना समाधान के भूख हड़ताल खत्म नहीं करेंगे। एलएबी के सह-अध्यक्ष चेयरिंग दोरजे ने हाल ही में कहा था, हमारा आंदोलन शांतिपूर्ण है, लेकिन देरी से लोग अधीर हो रहे हैं। पता नहीं केंद्र सरकार इन लोगों की व्यग्रता और चिंता को समझ रही है या नहीं। लेकिन इस नासमझी को जितना ज्यादा खींचा जाएगा, उतना देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ेगा। इसी लद्दाख के जरिए चीन घुसपैठ के रास्ते तलाशता है। सोनम वांगचुक ने कहा है कि हम चीन की घुसपैठ पर चिंता जताएं तो हमें देशविरोधी कहा जाता है। इधर प्रधानमंत्री मोदी सोमवार को जब अरुणाचल प्रदेश में थे तो वहां उनके भाषण के बीच में एक युवा ने लद्दाख की मांग का पोस्टर लहराया था, जिस पर पुलिस ने उसे हिरासत में लिया और भाजपा ने इसे मामूली घटना बताया। लेकिन अब हालात मामूली नहीं रहे, यह बात मोदी-शाह समझ लें। आग भाजपा कार्यालय तक जा पहुंची है। 
 
  
 
 
  
Deshbandhu  
 
 
 
Violent protestspoliticsamit shahPM ModiLeh Ladakh 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
Next Story |